tag:blogger.com,1999:blog-20428261898981721792024-03-18T21:41:35.916-07:00नया ज़मानानज़र नहीं, नज़रिया बदलिएAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-6052578572900721732017-11-17T18:58:00.000-08:002017-11-18T00:53:15.725-08:00कुरान, इस्लाम और मुसलमान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi32MZoCP1igI-FZfLQYjHzsIeVMrTsBrNLiiumbk3wMfXkyk-w1DnrTnHdeSZgH65TQ0TxGLC-xtvoMENM5o99OpvFsaYm77N4qYmUIqOBWKrHUY7RsvzXWWzHuhJ8KtFCF9vNxGq2XLI/s1600/shalini+tiwari.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="250" data-original-width="250" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi32MZoCP1igI-FZfLQYjHzsIeVMrTsBrNLiiumbk3wMfXkyk-w1DnrTnHdeSZgH65TQ0TxGLC-xtvoMENM5o99OpvFsaYm77N4qYmUIqOBWKrHUY7RsvzXWWzHuhJ8KtFCF9vNxGq2XLI/s1600/shalini+tiwari.jpg" /></a></div>
वर्ष 2010 के एक अध्ययन के मुताबिक, दुनियाँ के दूसरे सबसे बड़े धार्मिक सम्प्रदाय इस्लाम के तकरीबन 1.6 अरब अनुयायी हैं. जोकि विश्व की आबादी की लगभग 23% हिस्सा हैं, जिसमें 80-90 प्रतिशत सुन्नी और 10-20 प्रतिशत शिया हैं. मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, अफ्रीका का हार्न, सहारा, मध्य एशिया एवं एशिया के अन्य कई हिस्सों में इस्लाम अनुयायी प्रमुखता से पाए जाते हैं.<br />
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राष्ट्र की एक छोटी लेखिका होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि उन प्रत्येक समाजिक मुद्दो पर लिखूँ, जो सम-सामयिक हों, सामाजिक बेहतरीकरण के हिस्सेदार हों और हम सबको एक नई राह दिखलाने में सहायक हों. लिखने से पहले मै पवित्र मज़हबी पुस्तक कुरान-ए-शरीफ़ एवं हदीश को तसल्ली से पढ़ी, गहराई से समझने की कोशिश के साथ साथ एक व्यापक मनन-चिंतन भी किया. खैर, कुछ तथाकथित सेक्युलर लोग यह जरूर बोल सकते हैं कि यह अनावश्यक विषय है, मज़हबी मामला है, इसमें हिन्दू लेखिका द्वारा लेख लिखा जाना ठीक नहीं है. मुझसे कई लोग अक्सर बोलते भी हैं कि आप एक हिन्दू लेखिका होकर भी मुस्लिम, सिक्ख, इसाई धर्म को क्यूँ पढ़ती हो ?. खैर, साहब आपकी सोच आपको मुबारक हो. मै एक कालजयी लेखिका नही बनना चाहती, समाज की बिसंगतियों पर मै सतत् कलम चलाती रहूँगी, जिससे समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव आ सके. मेरा इससे दूर दूर तक लेना देना नहीं है कि आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं ? आप स्वतंत्र हैं, सोचते रहिए साहब. मै एक स्वतंत्र लेखिका हूँ, सतत् लिखती रहूँगी, न तो मैने कभी कलम को नीलाम किया है और न ही आगे करूँगी. सर कट जाए, मगर कलम नहीं बिकनें दूँगी.<br />
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अल्लाह के द्वारा उतारी गयी एवं देवदूत जिब्राएल द्वारा हजरत मुहम्मद को पहली बार सुनायी गयी पवित्र कुरान मुस्लिम धर्म की नींव है. कुरान में कुल 114 सूरह, 540 रूकू, 14 सज्दा, 6666 आयत, 86423 शब्द, 32376 अक्षर, 24 नबियों का जिक्र है. किवदन्तियों की मानें तो , आदम को इस्लाम का पहला नबी यानी पैगम्बर माना जाता है. जिस प्रकार हिन्दू धर्म में मनु की सन्तानों को मनुष्य कहा जाता है, उसी प्रकार इस्लाम में आदम की सन्तानों को आदमी कहा जाता है और आदम को ही इसाइयत में एड़म कहा जाता है.<br />
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विशेष ध्यातव्य है कि अल्लाह धरती पर किसी को भेजनें से पहले ठीक ठीक नसीहत देकर भेजता है और कहता है कि सीमित समय के लिए धरती पर जा रहे हो, वहाँ जाकर नेक कर्म ही करना. कुरान में भी कहा गया है कि सकारात्मक कार्य करो, जीव हत्या, पेड़ काटना, किसी को तकलीफ पहुँचाना, व्यर्थ पानी बहाना, अन्य गलत कार्य कुरान के मुताबिक पाप हैं. प्रत्येक आदमी को वापस अल्लाह के पास ही जाना पड़ेगा, कभी न कभी उसके अच्छे बुरे कार्यो का हिसाब जरूर होगा. अल्लाह के सारे खलीफ़ा या नबियों का एक ही पैगाम रहता है कि खुदा के बताए हुए राह पर कायम रहो, ईमान रखो और अल्लाह पर भरोशा रखो.<br />
<br />
जो हज़ यात्रा करके वापस आते हैं, उन्हे हाज़ी कहा जाता है. मगर हज़ तभी कुबूल होती है जब हज करने वाला शख्स जकात और फितरा को जीवन में उतारकर अल्लाह के रसूलो के मुताबिक कार्य करता है. जो कुरान को अच्छी तरह से जानते, समझते और उसकी आयतों को जुबान पर रखते हों, उन्हे हाफ़िज़ कहा जाता है. रमजान के महीनें में मुसलमान अक्सर नमाज अदा करते हैं, रोजा रखते हैं, तकरीर भी करते हैं. कुरान शरीफ़ को आसानी से समझने और रसूलों से वाकिफ़ होनें के लिए मौलवियों ने अपने अपने तरीके से हदीश की विवेचना की है.<br />
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कुरान अरबी भाषा में लिखी गयी है और इस्लाम एकेश्वरवादी धर्म है. विश्व के कई देशों एवं करोड़ों लोगो द्वारा पढ़ी जाने वाली कुरान के मुख्यत: पाँच स्तम्भ है -<br />
1- शहादा (साक्षी होना)- गवाही देना. "ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूल अल्लाह", मतलब अल्लाह के सिवाय और कोई परमेश्वर नही है और मुहम्मद, अल्लाह के रसूल हैं. इसलिए प्रत्येक मुसलमान अल्लाह के एकेश्वरवादिता और मुहम्मद के रसूल होने के अपने विश्वास की गवाही देता है.<br />
2- सलात (प्रार्थना)- इसे फारसी में नमाज कहते हैं. इस्लाम के अनुसार नमाज अल्लाह के प्रति कृतज्ञता दर्शाती है. मक्का की ओर मुँह करके दिन में पाँच वक्त की नमाज हर मुसलमान को अदा करना होता है.<br />
3- रोजा (रमजान)- यानी व्रत, इसके अनुसार रमजान के महीनें में प्रत्येक मुसलमान को सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रत रखना अनिवार्य है. भौतिक दुनियाँ से हटकर ईश्वर को निकटता से अनुभव करना एवं निर्धन, गरीब, भूखों की समस्याओं और परेशानियों का अनुभव करना ही मुख्य उद्देश्य है.<br />
4- जकात- यह वार्षिक दान है, इसके अनुसार प्रत्येक मुसलमान अपनी आय का 2.5% निर्धनों में बाँटता है क्योंकि इस्लाम के अनुसार पूँजी वास्तव में अल्लाह की देन है.<br />
5- हज़ (तीर्थ यात्रा)- इस्लामी कैलण्ड़र के 12 वें महीने में मक्का में जाकर की जाने वाली धार्मिक यात्रा है. परन्तु हज़ उसी की कुबूल होती है जो आर्थिक रूप से समान्य हो और हज़ जाने का खर्च खुद उठा सके.<br />
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गौरतलब है कि कुरान के प्रत्येक सूरा के शुरूआत में "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम" आता है. इसका मतलब है कि प्रत्येक मुसलमान प्रार्थना ( अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला ) करता है और कहता है कि हे अल्लाह ! तू मुझे अपने बताए हुए उसूलों और ईमान पर चला, तू ही सारे जहान का मालिक है, रहमत वाला है, हम तुझी पर न्यौछावर हैं, हमको सीधा रास्ता चला परन्तु रास्ता तुझे पानें का हो, न कि बहकाने वालों का हो. राम, रहीम एवं हनुमान, रहमान के पैगाम में कोई फर्क नहीं है. बसर्ते उसकी प्रार्थना और पाने का रास्ता भिन्न भिन्न है. जिस कुरान के प्रत्येक सूरा में खुदा से रहमत की बात कही गयी हो, वह कभी हिंसात्मक हो ही नही सकता. प्रत्येक धर्म में कुर्बानी की बात कही गयी है परन्तु उसका यह कतई अर्थ नही है कि आप जीव, जन्तु, पशु, पक्षी की हत्या करें. कुर्बानी का मतलब यह है कि आप अपनी आवश्यकता से अधिक धन-दौलत एवं विद्या गरीबो और जरूरतमंदों के लिए समर्पित यानी कुर्बान करें.<br />
<br />
अशफाक उल्ला खाँ, इलाहाबाद से लियाकत अली, बरेली से खान बहादुर खाँ, फैजाबाद से मौलवी अहमद उल्ला, फतेहपुर से असीमुल्ला, मौलाना अबुल कलाम, ब्रिगेड़ियर एम उस्मान, मेजर अनवर करीम व अन्य ऐसे तमाम क्रान्तिकारी राष्ट्रभक्त थे, जिन्होने जाति धर्म से ऊपर उठकर भारत माँ के आन-मान-शान की रक्षा करने हेतु प्राणों को न्यौछावर कर दिया. इस सब महान आत्माओं के लिए धर्म से बढ़कर राष्ट्र था. इन्होनें सही मायने में जीवन को समझा और कुर्बानी दी.<br />
<br />
अहिंसा, प्रेम, सद्भाव ही सभी धर्मों का मूल है और सबका मालिक भी एक है. फर्क इतना ही है कि हम उसे अलग अलग नामों से जानते हैं. आप ही बताइए कि गर दुनियाँ को चलाने वाला एक है तो उसका पैगाम अलग अलग कैसे हो सकता है ? मानवता ही हम सबका का पहला धर्म है. अच्छाइयाँ, बुराइयाँ प्रत्येक जगह होती हैं, मगर समयोपरान्त हम बुराइयों को छोड़कर अच्छाइयों का आत्मसात् करते हैं. इसलिए आज बाकी धर्मों के साथ साथ इस्लाम धर्म के अनुयायियों को चाहिए कि वो अपने मजहबी दुनियाँ से बाहर निकलकर मानवता एवं संविधान को सर्वोपरि समझें, मज़हबी खामियों को दूर करें, सुप्रिम कोर्ट द्वारा तत्कालिक तीन तलाक पर रोक इसकी एक बानगी है और यह फैसला सचमुच काबिले तारीफ भी है. बेहतर होगा कि इस्लाम धर्म के जानकार और अनुयायी चिंतन करके कौम एवं मानव हित में सकारात्मक बदलाव लाएँ, कुरान-ए-शरीफ के बताए हुए सही मार्गो पर चलें. समय के साथ बदलाव अवश्यमंभावी है और होना भी चाहिए.<br />
*******<br />
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लेखिका परिचय -<br />
"अन्तू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की निवासिनी शालिनी तिवारी स्वतंत्र लेखिका हैं । पानी, प्रकृति एवं समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र लेखन के साथ साथ वर्षो से मूल्यपरक शिक्षा हेतु विशेष अभियान का संचालन भी करती है । लेखिका द्वारा समाज के अन्तिम जन के बेहतरीकरण एवं जन जागरूकता के लिए हर सम्भव प्रयास सतत् जारी है ।"<br />
सम्पर्क - shalinitiwari1129@gmail.com<br />
ब्लाग - http://nayisamajh.blogspot.in/?m=0<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-55324356491128570462017-07-19T17:44:00.002-07:002017-07-19T17:44:39.110-07:00वर्तमान हालात पर नवयुवकों के नाम खुला खत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiybl9uP98IRbsNOgA_R9ufVFONfJgw5Jpz_nfsXRFS8kVcKbIQ2eIf-Ob6PgksTuoFWQ-87q79ibDsESWoZfzaxpi5nk8sRpzAoXs23rHVsKOXgeux-2tBvS45E9ZwOzkRIY79SeJOEkg/s1600/IMG_20170719_123217_356.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="641" data-original-width="528" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiybl9uP98IRbsNOgA_R9ufVFONfJgw5Jpz_nfsXRFS8kVcKbIQ2eIf-Ob6PgksTuoFWQ-87q79ibDsESWoZfzaxpi5nk8sRpzAoXs23rHVsKOXgeux-2tBvS45E9ZwOzkRIY79SeJOEkg/s320/IMG_20170719_123217_356.jpg" width="263" /></a></div>
<br />
<br />
विषय : बिगड़ते वर्तमान हालात नवयुवकों एवं राष्ट्र के भविष्य के लिए बेहद चिंतनीय है.<br />
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मेरे प्रिय नवयुवक साथियों,<br />
मुझे पता है कि वर्तमान हालात को उजागर करते मेरे इस खत को पढ़कर आप या तो इस पर गौर नहीं करेंगे या इसको पूर्णत: निरर्थक समझेंगे. हाँ, यह भी हो सकता है कि आप मेरे विचारों को पढ़कर मुझे बुरा भला कहें, पुराने खयालातो वाली लेखिका कहकर इस चिंतनीय मुद्दे को सिरे से ख़ारिज कर दें, खैर यह कहने का तो आपका हक भी बनता है, स्वतंत्र होकर कहिए. जब आप इस पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे, मेरी आलोचना होगी, इस पर चिंतन होगा, तभी इसका कुछ सार्थक परिणाम भी निकलेगा. भविष्य आपका है, सार्थक, निरर्थक का विचार आपको ही करना होगा. एक राष्ट्र चिंतक और टमटमिया (छोटी) लेखिका होने के नाते यह मेरा फ़र्ज बनता है कि मै दूरदृष्टि से वर्तमान हालात पर अपने विचार रखते हुए कलम की अस्मिता को जीवित रखूँ.<br />
<br />
ध्यातव्य है कि दुनियाँ में बढ़ रही काल्पनिक वैचारिक भीड़ बेहद खतरनाक एवं चिंतनीय है. काल्पनिक इस लिए कह रही हूँ कि इस भीड़ के पीछे सोशल मीड़िया को हथियार बनाकर कुछ छद्म मान्सिकता वाले लोगों की हमारे नव स्वर्णिम समाज को दिशाहीन करने की एक सोची-समझी साजिश है. आज की आपाधापी भरी जिन्दगी में हम इतने अस्त व्यस्त हैं कि हम समाज में हो रही गतिविधियों के मूल को जानने की कोशिश ही नहीं करते. मुझे इस बात को कहनें में कोई गुरेज नहीं हैं कि हिन्दुस्तान में फल फूल रहे बड़े टी. वी. चैनलों एवं बड़ी सोशल साइट्स के आँका विदेशों में बैठकर अपने मंसूबों से स्वर्णिम हिन्दुस्तान को तोड़ने की साज़िस कर रहें हैं. उन्हें भली भाँति पता है कि यदि सबसे बड़े लोकतंत्र वाले इस देश को तोड़ना है तो इसके युवाओं को बर्गलाना पड़ेगा, दिशाहीन करना पड़ेगा और उनको सोशल साइट्स द्वारा काल्पनिकता के दलदल में ढ़केलना पड़ेगा, गर देश की बुनियाद कमजोर हो जाएगी तो मजबूत राष्ट्र अपने आप ढ़ह जाएगा. आज खामियाज़ा भी हमारे सामने है, जो बेहद चिंतनीय है.<br />
<br />
"सन् अस्सी के दशक में भारत के महान दार्शनिक ड़ा रजनीश (ओशो) ने भी इस दिशाहीन काल्पनिक भीड़ पर चिन्ता जाहिर की थी और 'अस्वीकृति में उठा हाथ' पुस्तक में उन्होने साफ़ तौर पर कहा था कि भीड़ के भय के कारण हम असत्यों एवं गलत कदम को स्वीकार कर लेते हैं, जिसको हम सत्य मानकर बैठे हैं वह सत्य है ? या सिर्फ भीड़ का भय है कि चारों तरफ के लोग क्या कहेंगे ? चारों तरफ के लोग जिस दिशा में चल रहें हैं, उसी दिशा में तो मै भी चल रहा हूँ. ऐसा व्यक्ति सच तक कभी नहीं पहुँच सकता, जो भीड़ को स्वीकार कर लेता है. वास्तविकता (सत्य) की खोज भीड़ से मुक्त होती है. भीड़ में तो लोग एक दूसरे से ही भयभीत रहते हैं. सीधे तौर पर यह असत्य (काल्पनिक) को सत्य (वास्तविक) बनाने की तरकीबें हैं. सत्य (वास्तविकता) अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है, लेकिन असत्य ( काल्पनिकता) को भीड़ का सहारा चाहिए, उसके बिना वह खड़ा नहीं हो सकता......." <br />
<br />
आजकल हम यह मान बैठें हैं कि गर हमें ज़माने में रहना है तो ज़माने के रूख को स्वीकारना होगा. बात बिल्कुल सौ टके की है, ज़मानें का रूख करो, कौन मना कर रहा है ? परिणाम भी तो हमें ही भुगतना है. लगातार नैतिक पतन और संस्कारों का हनन हो रहा है, जिससे गरीबी, भुखमरी, आत्महत्या, वृद्धाश्रम , अनाथाश्रम.... की संख्या में लगातार इजाफ़ा हो रहा है. ज़मानें के साथ चलने में मुझे कोई गुरेज नहीं है, अत्याधुनिकता को अपनाओं, मगर उसके अच्छे बुरे पहलुओं को भी जानों और फिर उसका आत्मसात् करो, साथ ही साथ अपने अध्यात्म, संस्कार और सभ्यता को भी जीवित रखो. जो सदियों से सारे विश्व के लिए अनुकरणीय था और इसी वजह से आज भी वैश्विक स्तर पर दुनियाँ की निगाहें भारत पर ही टिकी हैं.<br />
<br />
एक वाकया सचमुच हम सबको गौरवान्वित कर देने वाला है. एक बात यह साफ कर दूँ कि न तो मै किसी राजनीतिक पार्टी से हूँ और न ही किसी का महिमा-मण्ड़न कर रही हूँ. उस पल को याद दिलाना चाहती हूँ, जब हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री किसी मुल्क के राष्ट्राध्यक्ष को गीता भेट की थी और कहा था कि मेरे पास इससे ज्यादा देने को कुछ भी नहीं है और विश्व के पास इससे ज्यादा लेनें को भी कुछ नहीं है. परन्तु आज हमारी युवा पीढ़ी चौबीसो घड़ी सोशल साइट्स पर इतनी व्यस्त है कि उसके पास गीता जैसा नीतिशास्त्र और रामायण जैसा प्रयोगशास्त्र पढ़नें की फुरसत ही नहीं है.<br />
<br />
आज हमारे नवयुवकों के मन पर सोशल साइट ऐसी परत जमा चुकी है कि वह उसी काल्पनिक दुनियाँ को ही वास्तविक दुनियाँ समझ बैठा है. खेलना- कूदना, मिलना-जुलना, निमंत्रण देना, किसी से बातें करना, प्रेम सम्बंध बनाना, शोक व्यक्त करना, गलत बात को सच साबित करना और तो और अपना बहुमूल्य समय व्यर्थ में गवानें का एक अहम माध्यम बन गया है. वजह साफ है, आज हम सोशल साइट्स की दुनियाँ में इतने मशगूल हैं कि हमारे पास वास्तविक जीवन जीने का वक्त ही नहीं बचा है. आज सोशल मीड़िया पर धर्म, अध्यात्म, तकनीक, प्रेरणा व अन्य प्रकार के अच्छे-बुरे पोस्ट प्रसारित होते रहते हैं कि हमें गूढ़ से गूढ़ चीजें भी बिल्कुल आसान सी लगती हैं, हम उसका कुछ अंश भी आत्मसात् नही करते परन्तु उन पोस्टों पर अपनी लम्बी चौड़ी प्रतिक्रिया देकर स्वयं को अच्छा साबित करने का प्रयत्न हर पल जरूर करते हैं. सार्थक बदलाव तब तक नहीं हो सकता जब तक कि हम किसी भी विषय पर चिंतन मनन न करें और उसका अमल न करें. सच्चाई यह है कि सोशल मीड़िया पर अच्छे अच्छे पोस्ट एवं प्रतिक्रिया करने वाला नवयुवक बाहर से तो बड़ा योग्य, समझदार और सफलता को अपनी मुठ्ठी में समेटकर रखने वाला प्रतीत होता है परन्तु अन्दर ही अन्दर वह उतना ही अयोग्य, कुत्सित मान्सिकता एवं भीड़ के भय से भयभीत रहता है. यही तो दुनियाँ की भीड़ और काल्पनिक संसार है, जो हमें सच से कोसों दूर रखता है.<br />
<br />
यह बेहद चिंतनीय है कि आज सोशल साइट्स पर तकरीबन 20 करोड़ पोर्न वीड़ियो एवं क्लीपिंग उपलब्ध हैं, जोकि सीधे तौर पर इंटरनेट से ड़ाउनलोड़ किया जा सकता है. कई बार इस गंभीर मुद्दे पर भारत सरकार और विपक्षी दलों में बहस होती रही है, परन्तु बेनतीजा ही रही है. साल 2015 में राष्ट्रहित में भारत सरकार द्वारा 857 पोर्न कन्टेंट वाली बेबसाइट की लिस्ट इंटरनेट सर्विस प्रदाताओं को सौंपी थी और इनको ब्लाक करने का आदेश दिया गया था. सरकार के इस फैसले के खिलाफ विपक्षी लोगों द्वारा बड़ा हंगामा किया गया था और सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा था. खैर यह तो साफ तौर पर सरकार की नैतिक हार ही थी. विभिन्न शोधों और अपराधियों के बयानों से यह स्पष्ट हो चुका है कि देश में बढ़ रही बलात्कार की घटनाएँ, अश्लील गतिविधियों व अन्य अमानवीय घटनाओं में पोर्न साइट्स की विशेष भूमिका रही है. एक तरफ सेक्स जहाँ शारीरिक और मानसिक जरूरतों को पूरा करनें में सहायक है, वहीं दूसरी ओर पोर्न सेक्स के प्रति एक वहशीपन एवं उन्माद पैदा करता है. जहाँ इन्सान मानसिक तौर पर जानवरों जैसा वर्ताव करनें लगता है.<br />
<br />
दुनियाँ के ऐसे तमाम देश हैं जिन्होंने पोर्न साइट के विरूद्ध अभियान छेड़ा हुआ है और हमारे यहाँ जब सरकार संजीदा हुई तो तथाकथित बौद्धिक प्रगतिशाली लोगों ने अपनी ओछी दलीलें देकर सरकार को घुटने टिका दिए. इन्दौर के एक वकील कमलेश वासवानी पोर्न साइटों के खिलाफ कोर्ट पहुँचे, तो यह मुद्दा कुछ तथाकथित नैतिक लोगों को आर्टिकल 21 "राइट टू पर्सनल लिबर्टी" का हनन लगनें लगा. अन्तत: चीफ जस्टिस ने इस मुद्दे को फिर सरकार के पाले में ड़ाल दिया. साल 2014 में चीन ने 180000 अस्लील कन्टेंट वाली आनलाइन बेबसाइटों पर प्रतिबन्ध लगाकर समूचे विश्व के सामने एक बानगी पेश की, तो भारत क्यूँ नहीं कर सकता ?<br />
<br />
एक शोध बड़ा चौकाने वाला है कि आज हमारे नवयुवक सोशल साइट्स की दुनियाँ में इतने मशगूल हो चुकें हैं कि उनका अधिकांश समय इसी पर व्यतीत होता है. एक अच्छे स्वस्थ्य नवयुवक को गर तीन दिन के लिए मोबाइल और सोशल साइट्स से दूर कर दिया जाए तो उसका ब्लड़प्रेसर स्वतः बढ़ जाएगा और सिकन उसके चेहरे से साफ झलकने लगेगी. यह सिर्फ और सिर्फ इस सोशल साइट्स की देन है. जिस वक्त हमारे नवयुवकों को आत्मसंयम के साथ अपनी काबिलियत को बढ़ाने की आवश्यकता रहती है, उस वक्त वो अपना बहुमूल्य समय सोशल साइट्स की इस काल्पनिक दुनियाँ में ज़ाया करते हैं.<br />
<br />
अन्त में मै यह साफ कहना चाहती हूँ कि आप सोशल साइट्स से सार्थक बाते जरूर आत्मसात् कीजिए, सार्थक प्रयोग कीजिए, अत्याधुनिकता अपनाइए, टेक्नोंलाजिकल एड़वांस बनिए, कोई गुरेज़ नहीं है. परन्तु आप कुछ भी उपयोग करने से पहले उसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर विचार कीजिए. एक सुदृढ़ समाज और राष्ट्र बनाने के लिए हम सबको यह आवश्यकता है कि मानसिक रूप से संयमित बनें, दूरदृष्टि एवं निर्णय शक्ति ठोस रखें और सकारात्मक दिशा में गतिशील रहें. जिससे कि प्रत्येक नवयुवक राष्ट्र को बेहतर बनाने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सकें.<br />
<br />
आपकी<br />
शालिनी तिवारी</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-44085134855174772892017-05-10T06:35:00.000-07:002017-05-10T06:35:06.064-07:00मेरे लफ़्ज तुझसे यकीं माँगें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJIyHuiPIYXamwGz_3Nt7C4y0dJqjDmcgVyaQ6hRqcdK4PiYvs25KAajS9ob5dFjRiX-SeHBETsr2st7BUXLNMIQhzTYSgGW5r_05yfwRH8TGLl5u0U4Kbbz97_cbtDtKNCW6YqZ6800s/s1600/images+%252856%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="280" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJIyHuiPIYXamwGz_3Nt7C4y0dJqjDmcgVyaQ6hRqcdK4PiYvs25KAajS9ob5dFjRiX-SeHBETsr2st7BUXLNMIQhzTYSgGW5r_05yfwRH8TGLl5u0U4Kbbz97_cbtDtKNCW6YqZ6800s/s320/images+%252856%2529.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
मेरे लफ़्ज तुझसे यकीं माँगें<br />
<br />
झुरमुट में दिखती परछाइयाँ<br />
घुँघुरू की मद्दिम आवाज<br />
लम्बे अर्से का अन्तराल<br />
तुझसे मिलने का इन्तजार<br />
चाँद की रोशन रातों में<br />
पल हरपल थमता जाए<br />
ऐसा लगता है मानो तुम<br />
मुझसे आलिंगन कर लोगी<br />
पर कुछ छण में परछाइयाँ<br />
नयनों से ओझल हो जायें<br />
दिन की घड़ी घड़ी में बस<br />
बस तेरी ही याद सताये<br />
सच कहता हूँ मै तुमसे<br />
मेरे लफ़्ज तुझसे यकीं माँगें.<br />
<br />
सच में सच को समझ न पाना<br />
यह मेरी ऩादानी थी<br />
एक दीदार को मेरी ऩजरें<br />
हरपल प्यासी प्यासी थी<br />
वक्त के कतरे कतरे से<br />
एक झिलमिल सी आहट आई<br />
मेरी रूहें कांप उठी<br />
जब उसने इक झलक दिखाई<br />
चन्द पलों तक मै खुद को<br />
उसकी बाहों में पाया था<br />
यही वक्त था जिसने मुझको<br />
गिरकर उठना सिखाया था<br />
सच कहता हूँ मै तुमसे<br />
मेरे लफ़्ज तुझसे यकीं माँगें.<br />
<br />
दिल की चाहत एक ही है<br />
तुम मेरी बस हो जाओ<br />
गर इस जनम न मिल पाओ तो<br />
अगले जनम तुम साथ निभाओ<br />
जग सूना सूना है तुम बिन<br />
तुम ही मेरी खुशहाली हो<br />
मेरे आँका खुदा तुम्ही हो<br />
मेरी रूह की धड़कन तुम हो<br />
साथ में मरना साथ ही जीना<br />
दो होकर भी एक हो जाऊँ<br />
जनम जनम तक साथ मिले बस<br />
इससे ज्यादा क्या बतलाऊँ<br />
सच कहता हूँ मै तुमसे<br />
मेरे लफ़्ज तुझसे यकीं माँगें.</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-69218055155460609962017-04-20T08:12:00.002-07:002017-04-20T08:12:36.505-07:00अल्लाह का दूसरा रूप है : पंचमहाभूत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEis89elkuHOU-lsSc453AG9W74KkP-fk-nGKSTDvfXYFApqIUrbXkHi4dabUGvEiSLPo5n9cWiJkRpl8Q-aLa3HRBtdeBgVoilmxdXficvEgfU5UPE-rYn2cmYQhNTRdsXB_KubIMAtEUM/s1600/images+%252847%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEis89elkuHOU-lsSc453AG9W74KkP-fk-nGKSTDvfXYFApqIUrbXkHi4dabUGvEiSLPo5n9cWiJkRpl8Q-aLa3HRBtdeBgVoilmxdXficvEgfU5UPE-rYn2cmYQhNTRdsXB_KubIMAtEUM/s1600/images+%252847%2529.jpg" /></a></div>
लेखिका - शालिनी तिवारी<br />
email - shalinitiwari1129@gmail.com<br />
<br />
<br />
अल्लाह ( अलइलअह ), यदि हम इसका विश्लेषण करें तो पाएगें कि अ- आब यानी पानी, ल- लब यानी भूमि, इ- इला यानी दिव्य पदार्थ अर्थात् वायु, अ- आसमान यानी गगन, ह- हरक यानी अग्नि. ठीक इसी तरह भगवान भी पंचमहाभूतों का समुच्चय है, भ- भूमि यानी पृथ्वी, ग- गगन यानी आकाश, व- वायु यानी हवा, अ- अग्नि यानी आग और न- नीर यानी जल. यह बिल्कुल सच है कि अल्लाह या भगवान ही इन पंचमहाभूतों का महान कारक है, जिससे समूचा ब्रह्माण्ड़ गतिमान है. हम सब एक दूसरे के पूरक घटक बनकर आपस में जुड़े हैं. यदि इन पंचमहाभूतों का संतुलन बिगड़ जाता है तो हमारे अन्दर भिन्न- भिन्न प्रकार का विकार उत्पन्न होने लग जाते हैं.<br />
बड़े आश्चर्य की बात है कि आज का आधुनिक समाज, जिससे वह बना है उसी को नही जानता है. शायद मेरी इस बात पर आपको यकीन नहीं हो रहा होगा. इस बात की आप स्वयं ख़बर ले सकते हैं. बड़े बड़े स्कूलों और अंग्रेजी माध्यम में पढ़ रहे नवयुगलों से जरा पूछिए, आपको अपने आप ख़बर हो जाएगी. भारतीयता से दूर हटनें का नतीज़ा यही हो रहा है कि हम अपने मूल को ही भूलते चले जा रहें हैं. वह भारतीय संस्कृति ही थी, जो हमें आत्मकेन्द्रियता नहीं, वरन समग्रता का पथिक बनाती थी. परन्तु अन्धी भौतिकता की क्षणिक लोलुपता में हमने अपने आदर्श को ही ठुकरा दिया. आप स्वयं जवाब दीजिए, गर हम अपने मूल को ही नही जानते तो स्वयं को कितना जानते होंगे .....?<br />
<br />
भारतीय दर्शन, सांख्य दर्शन एवं योगशास्त्र के मुताबिक पंचमहाभूतों को सभी पदार्थों का मूल माना गया है. पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु इन पंचतत्व से ही सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है. आमतौर पर हम लोग इसे क्षिति-जल-पावक-गगन-समीरा कहते हैं. इतना ही नहीं, हिन्दू विचारधारा के समान ही यूनानी, जापानी और बौद्ध मतों ने भी पंचतत्व को महत्वपूर्ण माना है. समूचा ज्योतिष शास्त्र भी इसी पर टिका है, गर इन पंचतत्वों में एक का भी संतुलन बिगड़ जाता है तो हमारा दैनिक जीवन भी प्रभावित नज़र आता है. परन्तु आजकल हम लोग रोग के जड़ को खत्म करने के बजाय रोग को खत्म करना चाहते हैं. यही वजह है कि आजकल अधिकतर व्यक्ति एक बिमारी से निजात पाते ही दूसरी बिमारी से ग्रसित हो जाता है.<br />
<br />
पृथ्वी मेरी माता, आकाश मेरा पिता, वायु मेरा भाई, अग्नि मेरी बहन, जल निकट सम्बंधी है. परन्तु आज आलम यह है कि हम इन पंच परिवार को अपना मानकर संरक्षण नहीं कर रहें हैं, नतीज़न ये पाँचों दिन-ब-दिन हमसे रूठते नज़र आ रहे हैं. ये पाँचों स्वंय बिमार भी हैं और तन्हा होकर अपनें वजूद की लड़ाई लड़ रहें हैं. हमनें अपने निजी स्वार्थ के लिए बिना विचार किए अपने मन मुताबिक बिल्ड़िंग बनाए, कारखानें लगाए, रोड़ पसारे , नदियों का पानी रोके, वृक्ष काटे और स्वयं को ही सर्वोंसर्वा मानकर इनका हर सम्भव तरीके से दोहन किए. कभी ये तो सोचा ही नहीं कि अब तक हमने इन पंचमहाभूतों को क्या दिया, जो इनसे मैं लेने जा रहा हूँ. खैर कुछ लोगों की बात भी बिल्कुल जायज़ है कि इनको समझनें के लिए कोई कोर्स तो होता नहीं है तो फिर हम इनको समझें ही कैसे ? जी हाँ, यकीनन आपको लगता होगा कि आपकी बात बिल्कुल ठीक है परन्तु जब समझने का मौका मिला था तो वह आप ही तो थे, जो हमारी अतुलनीय पावन भारतीय सांस्कृति का मज़ाक उड़ाकर पाश्चात्य सांस्कृति को अपनाने में तनिक भी देर नहीं लगाए थे, आपने अपने नव निहालों को भारतीय परम्परा वाले विद्यालय में शिक्षा हेतु न भेजकर शहर के बड़े कान्वेंट और अग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में भेजा था, जो सरेआम हमारे भारतीय संस्कार और सांस्कृति की धज्जियाँ उड़ातें हैं. फिर आज आप क्यूँ कहते हो कि क्या ज़माना आ गया है कि विद्यालयों में आधुनिक शिक्षा के साथ साथ नैतिक शिक्षा नहीं दी जा रही है ?<br />
<br />
एक बात बिल्कुल साफ है कि समूची सृष्टि के जड़- चेतन इन्हीं पंचमहाभूतों से बनते हैं और अन्ततः इन्हीं में समाहित भी हो जातें हैं. गर हम अपने वैदिक या स्वर्ण भारत की बात करें तो हमें जन्म से ही इन पंचमहाभूतों के साथ सम्बंध स्थापित करना बताया जाता था. पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि, वायु इन सबको हम अपना मानकर इन पूजन, वंदन और संरक्षण करते थे. इतना ही नहीं, समाज का लगभग प्रत्येक व्यक्ति पंचतत्व के लिए अपना हर सम्भव योगदान देता ही था. क्योकि आज की तरह वह आधुनिक उपकरणों पर आश्रित न होकर पंचमहाभूतों पर ही पूर्णरूपेण आश्रित था.<br />
<br />
पंचमहाभूत को वैदिक परिभाषा में वाक् कहते हैं. क्योकि इनमें सूक्ष्मतम भूत 'आकाश' है, उसका गुण शब्द या वाक् है. यह सूक्ष्म भूत 'आकाश' ही सब अन्य भूतों में अनुस्यूत होता है. इसलिए वाक् को ही पंचमहाभूत कहा जाता है. आपने सुना ही होगा कि नैनीताल हाईकोर्ट ने गंगा नदी को देश की पहली जीवित इकाई के रूप में मान्यता दी और गंगा और यमुना को जीवित मनुष्य के समान अधिकार देनें का फैसला किया. भारत ही नहीं, अपितु न्यूजीलैण्ड़ ने भी अपनी वागानुई नदी को एक जीवित संस्था के रूप में मान्यता दी थी. खैर यह कोई नई बात नहीं है, हमारा वेद सदियों पहले से ही पंचमहाभूत को जीवंत मानता आया है. इसके हजारों प्रमाण आपको मिलेगें. ऋग्वेद का एक श्लोक - ' इमं मे गंगे यमुने सरस्वती....' हे गंगा, यमुना, सरस्वती मेरी प्रार्थना सुनों. यानी नदियों को जीवित मानकर हमारे वेदों में प्रार्थना की गई है. यह बिल्कुल सच है कि सनातन धर्मियों ने प्रकृति और मनुष्य के बीच कभी भेदभाव नहीं माना, क्योकि दोनों सजीव हैं.<br />
<br />
दौर इस कदर बदला कि हम अधिकतर नवयुवक अपनें वैदिक, पौराणिक वैज्ञानिक तथ्यों को स्वीकार करने में तौहीनी महशूस करने लगे. इतना ही नहीं, प्रत्येक विषय पर अपने व्यक्तिगत मत को थोपनें और आधुनिक फूहड़पन को अपनाने में फक्र महशूस करने लगे. मुझे इससे कोई गुरेज नहीं है कि आप आधुनिकता को न स्वीकारें या फिर अपने व्यक्तिगत मत न व्यक्त करें. बसर्ते आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि अध्यात्म एक सुपर विज्ञान है और यह भी शोध और सिद्धान्तों पर टिका है, हाँ यह बात जरूर है कि यह आम लोगों की समझ से थोड़ा परे है. अध्यात्म विज्ञान यानी वेद ही आधुनिक विज्ञान का जन्मदाता है. जिन विषयों पर आज शोध किया जा रहा है, अध्यात्म विज्ञान सदियों पहले उन पर शोध करके प्रयोग भी कर चुका है. इसके एक दो नहीं असंख्य प्रमाण एवं दर्शन हैं. अध्यात्म विज्ञान ने भी पंचमहाभूत को ही जड़-चेतन का मूल माना है.<br />
<br />
यकीनन हम यह कह सकते हैं कि यह आधुनिक विज्ञान का ही ख़ामियाजा है कि हम जिससे बनें हैं, आज उसी से दूर होते जा रहें हैं. परिणाम भी सामने है, बाढ़, सुखाड़, प्रदूषण एवं कई अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से आए दिन हम सब प्रभावित हो रहें हैं. क्योंकि पंचमहाभूत को संजोयें भारतीय अध्यात्म विज्ञान को हमनें सिरे से नकार दिया. अब आए दिन इन्ही पंचमहाभूतों के प्रबन्धन, संरक्षण के लिए सरकार तरह तरह की नीतियाँ एवं जागरूकता अभियान चला रही है. आज हम सबके दिमाक में सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि हम समझते हैं कि विज्ञान प्रत्येक विषय का हल ढ़ूढ़ सकता है. बात कुछ हद तक जायज है , लेकिन यह तभी सम्भव है, जब हम सबके बीच पंचमहाभूतों की समुचित उपस्थिति रहेगी.<br />
<br />
आप इस बात को अच्छी तरह से गठिया लीजिए, पंचमहाभूत विज्ञान नहीं, वरन संस्कार का विषय हैं. हमारे संस्कार ही इनको संरक्षित एवं संचित कर सकते हैं. बसर्ते जरूरत यह है कि हमारे नवनिहालों को प्रारम्भिक स्तर से ही वास्तविकता को मद्देनजर रखकर शिक्षित किया जाए और आधुनिकता के साथ साथ एक नैतिकता का भी पाठ पढ़ाया जाए. ताकि वो समग्रता की सोच से एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कर सकें.</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-35497812885684177872017-04-07T02:03:00.003-07:002017-04-07T02:06:52.140-07:00तुमसे ही सवाल क्यूँ ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0s1lSMCeUcGulIlIVx5KmfdZqJIZ4BWZwVLZg0bqgGj4o4iNsls7dwXyJvmKvzclPLNUk47V01A-rd8FUKXhec_fXxVMhci1JkNI8r8ny8WBnl95TFP7CVpG_AyoT1bNvxdJyGxNziy0/s1600/download+%25281%2529.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0s1lSMCeUcGulIlIVx5KmfdZqJIZ4BWZwVLZg0bqgGj4o4iNsls7dwXyJvmKvzclPLNUk47V01A-rd8FUKXhec_fXxVMhci1JkNI8r8ny8WBnl95TFP7CVpG_AyoT1bNvxdJyGxNziy0/s1600/download+%25281%2529.png" /></a></div>
लेखिका - शालिनी तिवारी<br />
Email - shalinitiwari1129@gmail.com<br />
*******************************<br />
जय जवान जय किसान<br />
दोनों आज बेहाल हैं<br />
एक सीमा पर खड़ा है<br />
दूजा खेत में ड़टा है<br />
अन्न और रक्षा से ही<br />
देश आज भी खड़ा है<br />
देश के जवानों की<br />
वेतन इतनी कम है क्यूँ ?<br />
अन्नदाता आत्महत्या और<br />
भुखमरी का शिकार क्यूँ ?<br />
सबका साथ सबका विकास<br />
इसका उल्टा दिखता क्यूँ ?<br />
फिर तुम मुझसे क्यूँ पूछते हो<br />
तुमसे ही सवाल क्यूँ .....?<br />
<br />
यह तो गर्व का विषय है<br />
हिन्द नौजवान है<br />
आज दशा देखकर<br />
सत्ता से सवाल है<br />
पीएम साहब कहते हो कि<br />
मै तो पहरेदार हूँ<br />
पढ़ लिखकर नौजवान<br />
ज्यादातर बेरोजगार क्यूँ ?<br />
तुम तो कहते हो कि ये<br />
गरीबों की सरकार है<br />
फिर गरीब अमीर में दूरियाँ<br />
लगातार बढ़ रही हैं क्यूँ ?<br />
फिर तुम मुझसे क्यूँ पूछते हो<br />
तुमसे ही सवाल क्यूँ .....?<br />
<br />
अन्ना जी के आन्दोलन की<br />
रोज दुहाई देते थे<br />
लोकपाल के तरफदार बन<br />
खुद को गाँधीवादी कहते थे<br />
सत्ता में जब आऊँगा तो<br />
जन लोकपाल बनाऊँगा<br />
हिन्दुस्तान के हर खाते में<br />
पन्द्रह लाख भेजवाऊँगा<br />
बीत चले इन तीन बरस में<br />
तुम अपने वादे भूल गए<br />
ललित मोदी और माल्या पर<br />
कार्यवाही क्यूँ न कर पाए तुम ?<br />
फिर तुम मुझसे क्यूँ पूछते हो<br />
तुमसे ही सवाल क्यूँ .....?<br />
<br />
लोकतंत्र का चौथा खम्भा<br />
भी अब बिकता दिख रहा है<br />
सस्ती लोकप्रियता पर आज<br />
सत्ता का सिरमौर खड़ा है<br />
मै तो छोटी कलमकार हूँ<br />
सच पर मरने वाली हूँ<br />
कलम प्रथा की मर्यादा को<br />
कायम रखनें वाली हूँ<br />
नहीं चाहिए वाह मुझे इन<br />
चोरों और लुटेरों से<br />
गर तुम कर न सकते हो तो<br />
जुम्लेबाजी करते क्यूँ ?<br />
फिर तुम मुझसे क्यूँ पूछते हो<br />
तुमसे ही सवाल क्यूँ .....?</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-27274615430561599022017-03-20T22:03:00.000-07:002017-03-20T22:03:10.226-07:00यकीऩ मानिए, आपके शब्द आपको महान बना देंगे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtojXmvtK6swVBQ7nJw0YlUHCvuJq1g01p5xhunGIfBz2eSDww5tPp40NKEi8ufnYSfPfFKzkC7OCVlI91gH6itbQp_Fsq6Oogj-YuF9etQZHBs2SMKKFAnoLEsYcx8K2LPFLvFoE_dzY/s1600/download+%25289%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtojXmvtK6swVBQ7nJw0YlUHCvuJq1g01p5xhunGIfBz2eSDww5tPp40NKEi8ufnYSfPfFKzkC7OCVlI91gH6itbQp_Fsq6Oogj-YuF9etQZHBs2SMKKFAnoLEsYcx8K2LPFLvFoE_dzY/s1600/download+%25289%2529.jpg" /></a></div>
लेखिका - शालिनी तिवारी<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioGrDxP7N0gZovBpZsYqKYs1ZdK1NIxpz4kLsen27ZdIwZWlqH5bI1zOLRvYyP1AUgRy5feuIgDwZ90DPzurOWx00Hqu8A-Ie8jkOW1-CaZwSRYk8K1pbB3_aLZESi-E0Zvc3zXMafZu8/s1600/IMG_20161223_212700_277.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioGrDxP7N0gZovBpZsYqKYs1ZdK1NIxpz4kLsen27ZdIwZWlqH5bI1zOLRvYyP1AUgRy5feuIgDwZ90DPzurOWx00Hqu8A-Ie8jkOW1-CaZwSRYk8K1pbB3_aLZESi-E0Zvc3zXMafZu8/s320/IMG_20161223_212700_277.jpg" width="202" /></a></div>
<br />
यह कोई नई बात नही है कि शब्दों में अथाह ऊर्जा होती है. गर हम गौर करें तो पाएगें कि हमारा सम्पूर्ण जीवन ही उस तरफ प्रवाहित होता है, जिस तरफ की अधिक ऊर्जा हमारे अन्दर सन्चित होती है. हाँ यह जरूर है कि वह सकारात्मक ऊर्जा भी हो सकती है और नकारात्मक ऊर्जा भी. यदि हमारे अन्दर सकारात्मक ऊर्जा अधिक है तो हम स्वतः हर रोज कुछ न कुछ नया सीखते समझते हुए आगे बढ़ते जाते हैं और इसके विपरीत यदि हमारे अन्दर नकारात्मक ऊर्जा अधिक है तो हम दिन प्रतिदिन वक्त की उठा-पटक से परेशान होकर अवनति की ओर बढ़ते जाते हैं. वास्तविकता तो यह है कि हम अधिकतर लोग इस मनोवैज्ञानिक सच को भलीभाँति समझ ही नही पातें हैं और सिर्फ अपनी किस्मत को कोसते हुए जिन्दगी को जैसे तैसे व्यतीत करते रहते हैं.<br />
<br />
अच्छा, व्यवहारिक तौर पर जरा विचारिए. यह शब्द ही है जो जोड़ भी सकता है और तोड़ भी, अपना भी बना सकता है और अपनों को दूर भी कर सकता है, बहुत कुछ दिला भी सकता है और गवाँ भी सकता है. परन्तु एक अहम सवाल यह है कि ये शब्द आते कहाँ से हैं ? सवाल बिल्कुल वाज़िब है. आप शायद यह महसूस किए होंगे कि जैसा हमारा अन्तःकरण होता है ठीक वैसा ही हम बाह्य आचरण भी करते हैं. यानी हम सीधे तौर पर यह कहें कि हमारे शब्द हमारे अन्तःकरण की ही अभिव्यक्ति हैं. सन्त कबीर दास जी ने बिल्कुल ठीक कहा था - एक शब्द सुखरास है, एक शब्द दुखरास. एक शब्द बन्धन करै, एक करै गलफाँस. यानी आपके शब्द आपको सुख, दुःख, बन्धन और मुक्ति सब कुछ दिला सकते हैं.<br />
<br />
शब्दों के सम्बंध में कई महान विचारकों के मत् निम्न है-<br />
1- कन्फ्यूशियस : शब्दों को नाप तौल कर बोलें, जिससे तुम्हारी सज्जनता टपके.<br />
2- ऋषि नैषध : मितं च सार वाचो हि वाग्मिता, अर्थात् थोड़ा और सारयुक्त बोलना ही पाण्ड़ित्य है.<br />
3- जे कृष्णमूर्ति : कम बोलो, तब बोलो जब यह विश्वास हो जाए कि जो बोलने जा रहे हो, उससे सत्य, न्याय और नम्रता का नाश नही होगा.<br />
4- संत तिरूवल्लुवर : जो लोग बिना सोचे विचारे बोलते है, वे उस मूर्ख व्यक्ति की तरह होते हैं, जो फलों से लदे वृक्ष से पके फलों को छोड़कर कच्चे फलों को तोड़ते रहते हैं.<br />
5- आचार्य चाणक्य : वाणी की पवित्रता ही सच्चा धर्म है.<br />
<br />
जरा गौर कीजिए, श्री कृष्ण ने महाभारत में बिना अस्त्र-शस्त्र लिए ही अपने शब्दों के बल पर पूरे युद्ध को अपने हिसाब से चलाते गए. इतना ही नहीं, हम यह कह सकते हैं कि महाभारत का युद्ध ही पूर्णतया शब्दों पर केन्द्रित था. गर श्री कृष्ण जी ने अपने शब्द ऊर्जा का प्रवाह इस प्रकार न किया होता तो रणभूमि में होकर भी अर्जुन शायद अपना अस्त्र शस्त्र रखकर मैदान छोड़कर हट जाते. जब एक युद्ध में शब्दों की इतनी बड़ी महत्ता हो सकती है तो हमारे व्यक्तिगत जीवन में निश्चित रूप से शब्दों का बहुत बड़ा योगदान होता है, बस इसे समझने की आवश्यकता है.<br />
<br />
विशेष ध्यातव्य है कि जीवन का एक चक्र होता है. सकारात्मकता हमें अग्रसित करती है और साथ ही साथ सबको आकर्षित भी करती है. सकारात्मक शब्द, सकारात्मक विचारों से उत्पन्न होते हैं. सकारात्मक विचार हमारे सकारात्मक वातावरण और संस्कार से मिलते हैं. सकारात्मक वातावरण हमारे सत्कर्मों से बनते हैं. शब्द ही सत्कर्म की प्रेरणा होते हैं. कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि अपनी एक नई दुनिया बनाइए, उसी में व्यस्त रहिए, मस्त रहिए, अच्छे बुरे रहनुमा तमाम मिलते जाएगें, कारवाँ बढ़ता जाएगा. अन्ततः आप एक महानता के पथिक बन जाएगें और आपके पद्चिन्हों का दुनियाँ अनुशरण करेगी.<br />
<br />
खैर यह जरूर है कि आज की आपाधापी भरी जिन्दगी में हमें संयमित एवं सकारात्मक वातावरण रखना थोड़ा मुस्किल सा हो गया है. अत्याधुनिकता के चलन में जहाँ देखो वहाँ अश्लीलता, फूहड़पन, द्विअर्थी संवाद और बेशर्में लोगों का कुनबा दिखाई देता है. पर क्या यह सच नही कि ऐसे लोग कहीं न कहीं मानसिक अस्थिरता एवं अशान्ति में जी रहे हैं ?. मै यह बिल्कुल नही कह रही हूँ कि आप आधुनिकता को मत अपनाइए, अपनाइए पर जरा सम्भल कर, आधुनिकता के दलदल में कहीं आपके पैर फिसल न जाए, जिससे आप दुबारा सम्भलने के काबिल ही न रह जाएँ. अच्छाइयों का आत्मसात् कीजिए, मानव हित में कार्य कीजिए, सतत् चलते जाइए. सुशब्दों के गीत गाते जाइए, यही एक अच्छा इंसान बनने का सूत्र भी है.<br />
<br />
गर हम गौर करें तो शब्दों की ऊर्जा और महानता को आसानी से समझ सकते हैं. दुनियाँ के तकरीबन प्रत्येक धर्म भिन्न भिन्न भाषाओं में कुछ न कुछ मंत्र संजोये हुए हैं. शब्दों के संयोग से बना मंत्र अपने अन्दर अथाह ऊर्जा संचित किए रहता है, यानी जब उनका उच्चारण किया जाता है तब उनसे एक सकारात्मक ऊर्जा निकलती है जोकि किए जा रहे निमित्त संकल्प को लाभ पहुँचाती है. आपके दिमाक में यह प्रश्न भी उठ रहा होगा कि यदि हम मंत्रों के शब्दों में बदलाव या उलटफेर कर दें तो क्या होगा ?. शंका बिल्कुल वाजिब़ है. एक बात तो यह साफ है कि दुनियाँ के प्रत्येक जड़ चेतन स्वयं में अद्वितीय हैं, यानी उनके जैसा दूसरा कोई नहीं है. सबकी अपनी अपनी महत्ता है. ठीक इसी प्रकार शब्द भी अपने अन्दर अद्वितीय ऊर्जा का भण्ड़ार रखते हैं. यदि आप मंत्रों के शब्दों में बदलाव या उलटफेर कर देंगे तो निश्चित रूप से उसकी ऊर्जा में बदलाव आ जाएगा.<br />
<br />
यकीनन् यह हमें मानना ही होगा कि हम सब कुछ विशेष कार्य के निमित्त जन्में हैं. जीवन को व्यसनों, कुविचारों और अन्धकार में बिताने से तो ठीक ही है कि अपने मनो-मस्तिष्क एवं शब्दों को पवित्र रखें. हाँ कुछ लोग आज यह जरूर बोलते हैं कि अब इमानदारी का जमाना नहीं रहा. वह शायद आज यह भूल चुके हैं कि दुनियाँ को चलाने वाला सर्वशक्तिमान पहले भी वही था और आज भी वही है. आप गलतफहमियों में मत पड़िए. अपने शब्दों को तराशिए, तोलिए फिर बोलिए. परिणाम आपको स्वतः दिख जाएगा. वह पल दूर नहीं, जब आप महानता के मुसाफिर बन जाएंगें. बस इतना जरूर कीजिए कि आप महानता को धन, सम्पत्ति, वैभव या यश से मत आकिए. महानता का सही मतलब तो यह है कि आपकी अपनी एक दुनियाँ होगी, उस दुनियाँ के आप ही पथ प्रदर्शक होंगे, आपके पद्चिन्हों पर चलने वाले लोगों की एक लम्बी फेहरिस्त होगी. आप नेक काम करते जाएंगें और सत्कर्मों का कारवाँ आगे बढ़ता जाएगा. यही सच्ची महानता होगी. इसलिए आप शब्दों की महत्ता समझकर उसको तोलिए, मोलिए फिर बोलिए.</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-27856171723247152012017-03-12T23:03:00.004-07:002017-03-12T23:03:46.886-07:00आवा हो भइया होली मनाई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFHcolK3gx0QJxD-a3_3stTz4XEuAIHRWOPode2F-PMFU4gxd61jojqJGaY_TqI3VTvTb-UjlW-J6sS8fn31tFLe8hdtRUfdyhrPbsM8Mv96FoLqit_dvNw-qVZGM6iEulDGZ_CWgP8fw/s1600/download+%25288%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFHcolK3gx0QJxD-a3_3stTz4XEuAIHRWOPode2F-PMFU4gxd61jojqJGaY_TqI3VTvTb-UjlW-J6sS8fn31tFLe8hdtRUfdyhrPbsM8Mv96FoLqit_dvNw-qVZGM6iEulDGZ_CWgP8fw/s1600/download+%25288%2529.jpg" /></a></div>
<br />
अब तो गावन कै लड़िका भी पप्पू टीपू जानि गएन,<br />
'यूपी को ये साथ पसन्द है' ऐह जुम्ला का वो नकार दहेन,<br />
माया बुआ भी सोचतै रहिगै बबुआ के संग होरी खेलब,<br />
पर 'मुल्ला यम ' कै साइकिलिया का लउड़ै हवा निकार देहेन,<br />
बूढ़ी हाथी बैठ गई और साइकिल भी पंचर होइ गै,<br />
जिद्दी दूनौ लड़िकै मिलिके माया मुलायम कै रंग अड़ाय गै,<br />
राजनीति छोड़ा हो ननकऊ आवा हम सब गुलाल लगाई,<br />
फगुनाहट कै गउनई गाय के आवा हो भइया होली मनाई,<br />
<br />
भउजी कब से कहत रहीं कि आवा हो देवर होली खेली,<br />
साल भरे के रखे रंगन कै तोहरे ऊपर खूब ढ़केली,<br />
होली अऊतै अपने काका खटिया से तुरन्तै उठि गएन,<br />
फगुनाहट कै गीत गाइकै सबका वो खूब मगन केहेन,<br />
मोदी मोदी कै एकै धुन अब लउड़न में सवार अहै,<br />
खूब खरीदेन केसरिया रंग सराबोर वो देखात अहै,<br />
दिल कै दर्द भुलावा भइया आवा हम सब गले मिल जाई,<br />
प्यार के रंग से रंगि के भइया आवा हो भइया होली मनाई,<br />
<br />
साल भरे से लखतै रहिगै उनका रंग लगाउब ऐह बार,<br />
नैना नैना चार करब और उनका बनाउब आपन ऐह बार,<br />
फागुन कै गउनई सुनिके वो अपने आप निकरि आई,<br />
देखतै देखत एक पलन मै वो हमका आपन बनाय गई,<br />
अब तो घर से निकरा भइया आवा रंग गुलाल उड़ाई ,<br />
मथुरा के पानी में रंगिके बनारसी लाल गुलाल लगाई,<br />
मन का मैल छुडावा भइया आवा अब रंगीन बनाई,<br />
अवधी रंग में रंगि जा भइया आवा हम सब होली मनाई.....!</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-1131913962558447992017-02-17T15:29:00.003-08:002017-02-17T15:29:57.685-08:00 गीत सुनाने निकली हूँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="clearfix" id="tp-section-wrap" style="background: rgb(255, 255, 255); border: 0px; color: #666666; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 30px 0px 0px; padding: 0px 10px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="thirteen columns post-245648 post type-post status-publish format-standard has-post-thumbnail hentry category-1601" id="tp-section-left" style="border: none; display: inline; float: left; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px 15px 0px 0px; vertical-align: baseline; width: 336px;">
<div class="post-content" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<div class="post-outer clearfix" style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<div class="post_content entry-content" style="border: 0px; color: #222222; font-family: inherit; font-size: 15px !important; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 20px; margin: 10px 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjexEfVigNiWvZlhzspo61RIGIBeq7NrxAs7bfgJQLj85rnudydl7P77aAXhsZhAreW-P3sD-uMak3Mf33318SDmvFJOzuhczQZRBCaFEz_T2p61XY6cKtE6khi256XYUTu11L8AyHkgCc/s1600/images-21-1-236x160.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjexEfVigNiWvZlhzspo61RIGIBeq7NrxAs7bfgJQLj85rnudydl7P77aAXhsZhAreW-P3sD-uMak3Mf33318SDmvFJOzuhczQZRBCaFEz_T2p61XY6cKtE6khi256XYUTu11L8AyHkgCc/s1600/images-21-1-236x160.jpg" /></a></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<span style="font-family: inherit; font-size: inherit; font-style: inherit; font-variant-caps: inherit; font-variant-ligatures: inherit; font-weight: inherit;"><br /></span></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<span style="font-family: inherit; font-size: inherit; font-style: inherit; font-variant-caps: inherit; font-variant-ligatures: inherit; font-weight: inherit;">भारत माँ की बेटी हूँ और गीत सुनाने निकली हूँ,</span></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
वीरों की गाथा को जन जन तक पहुँचाने निकली हूँ,<br />भारत माँ के शान के खातिर सरहद पर तुम ड़टे रहे,<br />सर्दी गर्मी बरसातों में भी तुम अड़िग वीर बन खड़े रहे,<br />कोई माँ कहती है कि मेरा लाल गया है सीमा पर,<br />दुश्मन को हुँकारों से ललकार रहा है सीमा पर,<br />उनकी देशभक्ति एक सच्ची मिशाल दिखाई देती है,<br />हर सरहद पर जय हिन्द की एक गूँज सुनाई देती है,<br />मेरी कलम सतत् चल करके गौरव गाथा लिखती है,<br />वीरों की अमर शहादत पर ये आँसू आँसू दिखती है,<br />अड़तालीस पैसठ इकहत्तर के बरस सुहाने बीत गए,<br />पाक तुम्हारी गुस्ताखी पर कड़ा प्रहार हर बार किए,<br />वीर शहीदों की यादों में दीप जलाने निकली हूँ,<br />भारत माँ की बेटी हूँ और गीत सुनाने निकली हूँ .</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
पाक कभी तुम न भूलो की हिन्द वतन के बेटे हो,<br />ठण्ड़ी चिंगारी को क्यों हर बार जला तुम देते हो,<br />तुम्हे गुरूर है उन सांपों पर जिनको दूध पिलाते हो,<br />समय समय पर उन सांपों से तुम खुद काटे जाते हो,<br />एक बात बताऊ पाक तुम्हे तुम कान खोलकर सुन लेना,<br />यदि जीना है तुमको तो जेहादी मंसूबों को छोड़ ही लेना,<br />वरना वीरों की टोली इस बार लाहौर तक जाएगी,<br />इतिहास नहीं इस बार भूगोल बदल दी जाएगी,<br />इन वीरों के शौर्य गान को गर्व समझकर गाती हूँ,<br />अदना सी मै कलमकार हूँ दिनकर की परिपाटी हूँ,<br />सच कहती हूँ ऐ वीरों तुम हिन्द वतन की शान हो,<br />गौरव और अमिट गाथा की तुम ही एक पहचान हो,<br />हिन्द वतन के वीरों की ललकार सुनाने निकली हूँ,<br />भारत माँ की बेटी हूँ और गीत सुनाने निकली हूँ.</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
भारत माता – अमर रहें</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-59140770207191533032017-02-17T15:25:00.000-08:002017-02-17T15:25:08.079-08:00आंतरिक जीवन ही महानता का सच्चा मार्गदर्शक है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="post-title" style="background-color: white; border: 0px; color: #666666; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIDwGDMITPZO55Q3nf3lWevx38kVnAZxfMm8z7VLdBsWgb-wqyUinZdwxuAt4snWS8UiokRnl3d8kiOSyaGyGod61QuRxp3_vuiYR4L5i7fdtEi9dsGn59cN-AsKhQYCVT3sfhaZbvhts/s1600/images-266x160.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIDwGDMITPZO55Q3nf3lWevx38kVnAZxfMm8z7VLdBsWgb-wqyUinZdwxuAt4snWS8UiokRnl3d8kiOSyaGyGod61QuRxp3_vuiYR4L5i7fdtEi9dsGn59cN-AsKhQYCVT3sfhaZbvhts/s1600/images-266x160.jpg" /></a></div>
<h1 class="entry-title" style="border: 0px; color: #333333; font-family: "PT Sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 30px; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: normal; line-height: 1.2; margin: 10px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline; word-break: normal; word-wrap: break-word;">
<br /></h1>
</div>
<div class="post-meta-blog" style="background-color: white; border-bottom-color: rgb(228, 228, 228); border-bottom-style: solid; border-image: initial; border-left-color: initial; border-left-style: initial; border-right-color: initial; border-right-style: initial; border-top-color: rgb(228, 228, 228); border-top-style: solid; border-width: 1px 0px; color: #707070; font-family: "PT Sans", sans-serif; font-size: 13px; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 10px 0px; padding: 3px 0px; vertical-align: baseline;">
<span style="color: #222222; font-family: inherit; font-size: inherit; font-style: inherit; font-variant-caps: inherit; font-variant-ligatures: inherit; font-weight: inherit;">गौरतलब है कि हममें से अधिकतर लोग “जीवन की यथार्थता” को या तो समझने की कोशिश नही करते, या फिर जब समझना चाहते है तो सुनहरा वक्त गुजर चुका होता है । कुछ लोगों का यह भी कहना है कि ” जब जगो तभी सवेरा” । बात तो उनकी भी ठीक है कि जागृति आए तो सही, भले ही देर से आए परन्तु यदि सूर्य देव प्रात:काल के बजाय मध्यान:काल में अपनी लालिम किरणों को हमारे बीच में बिखेरें , तो दिन तो होगा ही, मगर वह दिन शायद आधा-अधूरा ही होगा ? ध्यातव्य यह है कि यदि व्यक्ति वक्त रहते स्वयं को जागृत नहीं करता तो एक न एक दिन वक्त स्वयं ही उस व्यक्ति को जागृत कर ही देता है । यह भी सच है कि विलम्ब से जागृत हुआ व्यक्ति उस स्व-जागृति का उतना समर्थ्य उपयोग नहीं कर पाता, जितना की समय रहते स्व-जागृति होकर कर सकता था ।</span></div>
<div class="post_content entry-content" style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px !important; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: 20px; margin: 10px 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
महान चिंतक हेनरी फेड़रिक ने ठीक कहा था –<br />“वह व्यक्ति जिसका आंतरिक जीवन नहीं है, अपनी परिस्थितियों का गुलाम है ।”<br />आंतरिक जीवन की समृद्धि अन्तःकरण के द्वारा ही सम्भव है । अन्तःकरण हृदय को कहा गया है । मानव शरीर के सभी अंगो में हृदय का स्थान सर्वोपरि है । मानव तन का मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार मानव रूपी मंदिर के आभूषण हैं । मन प्रेरक है, बुद्धि का कार्य चिंतन है, हृदय का कार्य उद्गार व्यक्त करना है एवं चित्तवृत्ति का सम्बंध सचेतन से है । जब ये सब मिलते हैं तो रचनात्मकता लाते है और अलग अलग रहते हैं तो विकृति पैदा करते हैं । ऐसी स्थिति में इन्हें हृदयस्थ करना अनिवार्य है, तभी आंतरिक जीवन की असीम ऊर्जा का संचार सम्भव है । इसके माध्यम से ही मानवता के साथ नैतिकता का समावेश किया जा सकता है । नैतिक शक्ति मानव में मनुष्यता को कायम रखती है, जिसके द्वारा मानव सार्वभौमिक बनकर कल्याणकारी भावना के प्रति उत्प्रेरित होता है ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
आंतरिक व्यक्तित्व के विकास द्वारा ही मनुष्य मानव विभूतियों से परिपूर्ण होता है । भरत परिजात जी ने सत्य ही कहा है –<br />” जो आत्मशक्ति का अनुशरण करके संघर्ष करता है, उसे महान विजय अवश्य मिलती है ।”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
व्यक्ति अन्तर्मन, अन्तर्दृष्टि तथा अन्तःकरण के आधार पर ही बाह्य आचरण करता है । हम अपने भीतर आंतरिक जीवन के आधार पर ही चलते हैं । अन्तर्दृष्टि समृद्ध होने पर ही हम दूसरो को बेहतर समझ सकते है । जीवन की वास्तविक सफलता के लिए आंतरिक क्षमता बेहद जरूरी है । वास्तविकता तो यह है कि बाह्य क्षमता के सारे प्रदर्शन खोखले एवं आधार विहीन होते हैं । दृष्टि से ही सकारात्मक सृष्टि बनती है । अतः जीवन में आंतरिक दृष्टिकोण का बड़ा महत्व है ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
जीवन कितना भी निष्ठुर एवं कठोर क्यूँ न हो, मनुष्य की वैचारिक प्रबलता के समक्ष सब असहाय है । व्यक्ति यदि विचार कर ले कि उसे जीवन में सर्वोच्य शिखर का वरण करना है, तो निश्चय ही असम्भव सम्भव में परिणत हो जाता है । हाँ यह जरूर है कि जो भी संकल्प लिया जाए या जो भी प्रण किया जाए, उसमें इमानदार प्रयास का होना अत्यंत आवश्यक है ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
महान विचारक एफ वाई रार्ब्टशन ने भी बिल्कुल सटीक कहा था – ” It is not the situation which makes the man, but man makes the situation. The slave may be free man, the monarch may be slave ”<br />अर्थात् ” स्थिति एवं दशा मनुष्य का निर्माण नहीं करती, अपितु मनुष्य ही स्थिति का निर्माण करता है । एक दास स्वतंत्र व्यक्ति हो सकता है और सम्राट एक दास बन सकता है । ”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
वह व्यक्ति जिसका आंतरिक जीवन सुचितापूर्ण नहीं है, वह पशु समान है । वह परिस्थितियों का गुलाम है और उसकी अपनी कोई व्यक्तिगत पहचान नही है । हाँ यह जरूर है कि वह येन-केन प्रकारेण कुत्ते की तरह पेट जरूर भर लेता है । वहीं दूसरी तरफ ऐसा व्यक्ति जिसका अन्तःकरण पवित्र है , वह जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को नजरअंदाज करके सभ्य समाज के निर्माण का भागीदार बनकर राष्ट्रोन्नयन द्वारा ” वसुधैव कुटुम्बकम् ” की संकल्पना को सार्थक रूप प्रदान करता है ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
रामकृष्ण, ईशामसीह, मुहम्मद साहब, कबीर, सूर, तुलसी, अरस्तु, नेलसन मण्ड़ेला, मदर टेरेसा, स्वामी विवेकानन्द एवं गाँधी जी आदि इस संकल्पना के प्रमाण हैं । हाँ यह जरूर हुआ कि इनमें से किसी को फाँसी पर लटका दिया गया, तो किसी की हत्या कर दी गई, तो किसी को जेल में ड़ाल दिया गया । फिर भी इन महान विभूतियों ने हार नहीं मानी, निरन्तर जीवन में संघर्ष करते रहे । इतना ही नही, इस धरा के गतिशील रहने तक ये अमर आत्माएँ प्रासंगिक रहेगी । इन विभूतियों से प्रेरणा लेकर मानवता की रक्षा में तत्पर रहते हुए मानव कल्याण करना तथा उसके प्रति सच्ची श्रद्धा होनी आवश्यक है ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
वास्तविक जीवन बाह्य नहीं आंतरिक होता है । जिसका अन्तः जितना ही स्वच्छ, पवित्र, परोपकारी, प्रेमपूर्ण तथा प्रशन्न होगा । उसका जीवन उतना ही उत्कृष्ट माना जाएगा । इसके विपरीत जिसका अन्तः मलिन, स्वार्थी, छली तथा असन्तुष्ट होगा । यहाँ तक कि उसके पास क्यूँ न कुबेर का भंड़ार हो और क्यूँ न वह इन्द्र जैसा भोग- विलास से पूर्ण विभ्रामक जीवन जी रहा हो । वह पशुवत ही समझा जाएगा । जीवन की उत्कष्टता का मूल्यांकन बाह्य से नहीं बल्कि अन्दर से किया जाएगा ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
व्यक्तित्व का निर्माण व्यक्ति की आंतरिक कृतित्व की बुनियाद पर होता है । जिस पर वह भावी जीवन का सुनहरा भविष्य रचता है । यदि व्यक्ति का आन्तरिक जीवन खूबसूरत, सद्गुण युक्त, सुविचार, स्वतंत्र, प्रतिभावान न हुआ तो बाह्य जगत में वह इंसान पशुवत जीवन जीता है । आंतरिक मजबूती दासवत जीवन से मुक्ति दिलाने से जहाँ कुँजी सिद्ध होती है, वहीं अन्तः कमजोरी जैसे – ईष्या, लोभ, मोह, मद्, क्रोध, मत्सर, ये छः अन्तःशत्रु व्यक्तित्व निर्माण में काले धब्बे का कार्य करते हैं । सुखद् जीवन के लिए हेनरी फेड़रिक इसे बेड़ी मानते थे ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
योग प्रवर्तक महर्षि पतंजलि जी ने भी कहा है – ” स्वतंत्र जीवन ही सुखद जीवन की रचना कर सकता है । इसलिए आत्मबली होकर जीवन यापन करना चाहिए । ”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
प्रकृति का अनुपम विधान ब्रह्माण्ड़ और उसकी अनुपम कृति मानव है । भूतल पर प्रकृति द्वारा सभी वस्तुएँ प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से उसी के निमित्त है । इनका अनुकूलम उपयोग करके मानव कल्याण सम्भव है । अगर आज सारी दुनियॉ उद्दाम भोगवादी कार्यों से ग्रस्त है, तो यह महान चिंता का विषय है । विश्व गुरू का दर्जा प्राप्त भारत भी आज इससे अछूता नहीं है । आज का मानव भागने और दोड़ने के अन्तर को भूल गया है । आज सारी दुनियॉ की निगाह दुरूह छेत्र अंटार्कटिका पर लगी है । आज का मानव खतरनाक मोड़ पर खड़ा है, जो अधिक पाने की होड़ में दिन-रात लगा है । जोकि मानवता के लिए यह बिल्कुल भी शुभ संकेत नहीं है । वर्तमान परिवेश में यह आशावादी किरण दुनियॉ के तमाम देशों की मिशनरियाँ – रामकृष्ण, रामचन्द्र के साथ साथ आर्य समाज, गायत्री परिवार, मानव कल्याण सेवा संस्थान एवं अन्य निरंतर चिंतनशील होकर मानवता की रक्षा के साथ साथ कल्याण के प्रति सजग हैं ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
वाशिंगटन इराविन ने भी कहा है – ” Little minds are tamed and subdued by misfortune but great minds are rise about it ”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
ऊपर वर्णित विश्लेषण के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि समय के माँग के परिप्रेक्ष्य अमन, सुख, शान्ति हेतु उद्दाम भोगवाद से बचकर समझ का सहारा लेते हुए प्राणियों को ” माता भूमिः पुत्रोअहं पृथिव्याः ” की भावना से ओतप्रोत होकर वसुधैव कुटुम्बकम् को ध्यान में रखते हुए मानव कल्याणकारी भावना द्वारा मानवता की रक्षा करना हम सबको धर्म समझना चाहिए । जोकि अध्यात्मिक सोच एवं प्राच्य दर्शन से ही सम्भव है ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
अस्तु सर्वविदित है कि व्यक्ति का अच्छा जीवन ही अच्छे पल की रचना कर सकता है । अतः हम स्वयं परिस्थितियों को अनुकूल या प्रतिकूल बनाते है । बुरा जीवन व कार्य व्यक्ति को पतन की गहरी खाईं में ढ़केलकर परतंत्र जीवन जीने के लिए विवश कर देता है । अतः यह कहना सार्थक है कि –<br />“पोथी पढ़ पढ़ जगमुआ, पण्ड़ित भया न कोय ।<br />ढ़ाई आखर प्रेम का , पढ़ै सो पण्ड़ित होय ।। “</div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-88894296842290961582017-02-17T15:22:00.000-08:002017-02-17T15:22:15.878-08:00सलामती की दुआ मै करती रहूँगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="post-title" style="background-color: white; border: 0px; color: #666666; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNoK4CAs37IgsIx9_JWLnvNJzFnUyZEjUPm0r1y7qxcbRl7XV9hW7CIkJDePCsQDbFq_wjPSL3EN6_g2uhVuT3CGVEoCNsC9ZqRyZsIFGJdRuQAsbRZcpQr-CYY5IC5r8Cr61tWVByFcA/s1600/images-12-340x160.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNoK4CAs37IgsIx9_JWLnvNJzFnUyZEjUPm0r1y7qxcbRl7XV9hW7CIkJDePCsQDbFq_wjPSL3EN6_g2uhVuT3CGVEoCNsC9ZqRyZsIFGJdRuQAsbRZcpQr-CYY5IC5r8Cr61tWVByFcA/s320/images-12-340x160.jpg" width="320" /></a></div>
<h1 class="entry-title" style="border: 0px; color: #333333; font-family: "PT Sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 30px; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: normal; line-height: 1.2; margin: 10px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline; word-break: normal; word-wrap: break-word;">
<br /></h1>
</div>
<div class="post-meta-blog" style="background-color: white; border-bottom-color: rgb(228, 228, 228); border-bottom-style: solid; border-image: initial; border-left-color: initial; border-left-style: initial; border-right-color: initial; border-right-style: initial; border-top-color: rgb(228, 228, 228); border-top-style: solid; border-width: 1px 0px; color: #707070; font-family: "PT Sans", sans-serif; font-size: 13px; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 10px 0px; padding: 3px 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; color: #222222; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><em style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">मंगलकामना के साथ रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ</em></strong></div>
<div class="post_content entry-content" style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px !important; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: 20px; margin: 10px 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
***************************************<br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">सलामती की दुआ मै करती रहूँगी</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
तुम्हारी कलाइयों में रक्षा की राखी,<br />बरस दर बरस मैं बाँधती रहूँगी,<br />दिल में उमंगे और चेहरे पर खुँशियाँ,<br />हर एक पल मै सजाती रहूँगी,<br />कभी तुम न तन्हा स्वयं को समझना,<br />कदम से कदम मैं मिलाती रहूँगी,<br />तुम हर इक दिन आगे बढ़ते ही रहना,<br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><em style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">सलामती की दुआ मै करती रहूँगी ।</em></strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
खुदा ने हम दोनों का ये रिस्ता बनाया,<br />शुक्रिया उसको अदा करती रहूँगी,<br />लम्बी उमर दे और रण में विजय दे,<br />हमेशा ये कामना करती रहूँगी,<br />जन्म दर जन्म हम मिले साथ साथ,<br />भइया मै बहना बनती रहूँगी,<br />जीवन में नेंकी हरदम करते रहो तुम,<br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><em style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">सलामती की दुआ मै करती रहूँगी ।</em></strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
हर एक दिन इतिहास रचते ही जाना,<br />प्रेम की स्याही से मै लिखती रहूँगी,<br />समय भी गवाही ये देगा सदा ही,<br />रिस्ते की मिशाल मै बुनती रहूँगी,<br />अपनों के संग रक्षाबन्धन की खुँशियाँ,<br />राखी बाँधकर मनाती रहूँगी,<br />भइया अपना प्यार हमेशा देते ही रहना,<br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><em style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">सलामती की दुआ मै करती रहूँगी ।</em></strong></div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-46983191970398641892017-02-17T15:17:00.001-08:002017-02-17T15:17:08.423-08:00आजादी पर गर्व हमें है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="post-title" style="background-color: white; border: 0px; color: #666666; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDPAux0CWlS-d9TDOkIm2bXnKxpXT-Y1qZeGx1AAuviBvaaEpGxi3DHiyBO6hA3t1xDULKwUXN9ppU-ZtzfOumY0BiN-e0dnY5KXg2e5Rn38ZsWZ8cIliGYCbyFzj7VsAGDfGr7cEi_24/s1600/images+%252826%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDPAux0CWlS-d9TDOkIm2bXnKxpXT-Y1qZeGx1AAuviBvaaEpGxi3DHiyBO6hA3t1xDULKwUXN9ppU-ZtzfOumY0BiN-e0dnY5KXg2e5Rn38ZsWZ8cIliGYCbyFzj7VsAGDfGr7cEi_24/s1600/images+%252826%2529.jpg" /></a></div>
<h1 class="entry-title" style="border: 0px; color: #333333; font-family: "PT Sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 30px; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: normal; line-height: 1.2; margin: 10px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline; word-break: normal; word-wrap: break-word;">
<br /></h1>
<h1 class="entry-title" style="border: 0px; color: #333333; font-family: "PT Sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 30px; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: normal; line-height: 1.2; margin: 10px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline; word-break: normal; word-wrap: break-word;">
<strong style="border: 0px; color: #222222; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><em style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">मेरे प्रिय देशवासियों</em></strong></h1>
</div>
<div class="post_content entry-content" style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px !important; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: 20px; margin: 10px 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><em style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">मंगलकामना के साथ 70 वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ</em></strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">_________ आजादी पर गर्व हमें है _________</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
आजादी पर गर्व हमें है और सदा तक बना रहेगा,<br />जिन लोगों ने कुर्वानी दी उनका नाम अमर रहेगा,<br />पर अन्तिम जन को आजादी कब तक मिल पाएगी ?<br />दुपहरिया में मजदूरों की मेहनत कब रंग लाएगी ?<br />उनकी सोच बदल जाए तो सच्ची आजादी होगी,<br />भुखमरी पर पाबन्दी ही सच्ची खुशहाली होगी,<br />झुग्गी झोपड़ियों में रहकर आंधी पानी सहते हैं,<br />उनसे भी कुछ पूछो जिनपर जुर्म अभी भी ढ़हते हैं,<br />कुछ लोग अभी भी अपना जिस्म बेचते फिरते हैं,<br />आजादी को अब भी वो “अाधी आजादी” कहते हैं,<br />आस्तीन के साँप अभी भी हिन्द वतन में पलते हैं,<br />भारत माता को लेकर ये खूब सियासत करते हैं,<br />कुछ लोगों को भारत का गौरव गान नहीं भाता,<br />आतंकियों का महिमा मण्ड़न बस इनको खूब सुहाता,<br />अब तो मेरा दिल करता है कि झूमूँ नाचू गाऊँ मैं,<br />देश के अन्तिम जन को सच्ची आजादी दिलवाऊँ मैं,<br />मेरे जीने का यह मकसद् सच्ची आजादी दिलवाएगा,<br />गरीबी, भुखमरी और मन से सबको आजाद कराएगा ।</div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-63076242044277957702017-02-17T15:08:00.001-08:002017-02-17T15:12:37.986-08:00सावधान ! शायद आप सेल्फीटिस की चपेट में हैं !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="clearfix" id="tp-section-wrap" style="background: rgb(255, 255, 255); border: 0px; color: #666666; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 30px 0px 0px; padding: 0px 10px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="thirteen columns post-235277 post type-post status-publish format-standard has-post-thumbnail hentry category-society" id="tp-section-left" style="border: none; display: inline; float: left; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px 15px 0px 0px; vertical-align: baseline; width: 336px;">
<div class="post-content" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<div class="post-outer clearfix" style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<div class="post-title" style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="separator" style="clear: both; font-size: inherit; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhh8y4Sw5xURe6hzgCkwPP4ea5UxT_qXqVSX1tNL39CmSWMld0K1JSR_AmgYv8JvCsZqvDPoJu0kKtl0psZ59QzjvuoivlBJ8kSJiyq_68QTlsrAqhIKrcBzo6Pcf_xy2goUPQl15sOLXw/s1600/download+%25285%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhh8y4Sw5xURe6hzgCkwPP4ea5UxT_qXqVSX1tNL39CmSWMld0K1JSR_AmgYv8JvCsZqvDPoJu0kKtl0psZ59QzjvuoivlBJ8kSJiyq_68QTlsrAqhIKrcBzo6Pcf_xy2goUPQl15sOLXw/s1600/download+%25285%2529.jpg" /></a></div>
<h1 class="entry-title" style="border: 0px; color: #333333; font-family: "pt sans", helvetica, arial, sans-serif; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: normal; line-height: 1.2; margin: 10px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline; word-break: normal; word-wrap: break-word;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></h1>
</div>
<div class="post-meta-blog" style="border-bottom-color: rgb(228, 228, 228); border-bottom-style: solid; border-image: initial; border-left-color: initial; border-left-style: initial; border-right-color: initial; border-right-style: initial; border-top-color: rgb(228, 228, 228); border-top-style: solid; border-width: 1px 0px; color: #707070; font-family: "PT Sans", sans-serif; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 10px 0px; padding: 3px 0px; vertical-align: baseline;">
<span style="font-size: x-large;"><strong style="border: 0px; color: #222222; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">स्व-जा</strong><strong style="border: 0px; color: #222222; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">गृति :</strong></span></div>
<div class="post_content entry-content" style="border: 0px; color: #222222; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 20px; margin: 10px 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<span style="font-size: x-large;">बीती सदियों में जब इंसान सार्थक ज्ञान के सन्निकट पहुँच जाता था तो वह संसारिक झंझावातों से दूर हटकर स्वयं में लीन हो जाता था । जिसे सनातन धर्म में समाधि, जैन धर्म में कैवल्य और बौद्ध धर्म में निर्वाण कहा जाता है । मुख्यतः यह योग का अन्तिम पड़ाव होता है जिसमें इंसान परम-जागृत यानी परम-स्थिर हो जाता है । इसे हम आधुनिक भाषा में परम स्वतंत्र अतिमानव या सुपरमैन भी कहते हैं । संस्कृत में भी कहा गया है –</span><br />
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><em style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><span style="font-size: x-large;">“तदेवार्थ मात्र निर्भासं स्वरूप शून्यमिव समाधि।।</span></em></strong><br />
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><em style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><span style="font-size: x-large;">न गंध न रसं रूपं न च स्पर्श न नि:स्वनम्।</span></em></strong><br />
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><em style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><span style="font-size: x-large;">नात्मानं न परस्यं च योगी युक्त: समाधिना।।”</span></em></strong><br />
<span style="font-size: x-large;">आशय यह है कि ध्यान का अभ्यास करते- करते साधक ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है कि उसे स्वयं का ज्ञान नहीं रह जाता और केवल ध्येय मात्र रह जाता है, तो उस अवस्था को समाधि कहते हैं।</span></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><span style="font-size: x-large;">आत्म-केन्द्रियता का आधुनिक रूप है सेल्फी :</span></strong><br />
<span style="font-size: x-large;">दौर बदला, आज हम इंसानों ने स्व-जागृति की परिभाषा ही बदल ड़ाली । हम स्वयं से इतने सन्निकट हो गए कि हमारी समूची आत्म-केन्द्रियता महज हमारे बाहरी आवरण पर आ टिकी । यह सिलसिला इतने पर ही नहीं थमा, इस जमाने की अत्याधुनिकता ने हमारी आत्म-केन्द्रियता को सिर्फ और सिर्फ लुभावनें चेहरे पर केन्द्रित कर दिया और इसी थोथी आत्म-केन्द्रियता को ही हमारे समाज नें “सेल्फी” का नाम दे दिया ।</span></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><span style="font-size: x-large;">संकुचित हो रही सोच ही मूल वजह :</span></strong><br />
<span style="font-size: x-large;">पहले हमने अध्यात्मिक ज्ञान को अपनाकर “बसुधैव कुटुम्बकम्” माना, यानी समूची धरा को अपना माना । कालान्तर में धीरे धीरे हमारी सोच राष्ट्र, समाज, परिवार, एकल परिवार और अब स्वयं तक सिमट गई । आज तो हम अन्धी आधुनिकता की लोलुपता में इतने मशगूल हो गए हैं कि हमारी सोच सिर्फ और सिर्फ हम तक ही सिमट गई । दौर सेल्फी का चला तो हम सेल्फी की जद् में आकर इतने सेल्फिस हुए कि हमारी स्वयं को अच्छा दिखाने की चाहत ने प्रभुप्रदत्त रूप को ही बदलना शुरू कर दिया । हेयर इस्टाइल, प्लास्टिक सर्जरी, रंगीन जुल्फें अन्य अन्य तरीके अपनाकर चेहरे पर कुछ पल के लिए बनावटी मुस्कान भी लाने लगे ।</span></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<span style="font-size: x-large;">खैर सार्थक ज्ञान से परे लोगो के लिए यह बिल्कुल समाधि जैसी ही है । सेल्फी की सनक में समय, जगह और स्वयं तक को भूल गए । चलती ट्रेनों, पहाड़ की ऊँची ऊँची चोटियों, गगन चुम्बी इमारतों व अन्य जोखिम भरे स्थानों पर स्वयं को कैमरों में कैद करने लगे । नतीजा भी साफ दिखने लगा, आए दिन सेल्फी मौत का कारण बनती जा रही है । सेल्फिशनेस इस कदर बढ़ी कि पहले हम एक दूसरे के दिलों और विचारों के करीब होते थे मगर अब तो लोग महज एक दूसरों के चेहरों के करीब होने लगे, कन्धों की तरफ झुकने लगे और खूबसूरत दिखने की लत में झूठी मुस्कान भी चेहरे पर सजाने लगे ।</span></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><span style="font-size: x-large;">“सेल्फीटिस” आज का नया रोग :</span></strong><br />
<span style="font-size: x-large;">अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन के मुताबिक, अगर आप दिन में तीन से ज्यादा सेल्फी लेते हैं तो यकीनन आप मानसिक रूप से बीमार हैं और इस बीमारी को सेल्फीटिस का नाम दिया । वास्तव में यह उस बीमारी का नाम है जिसमें व्यक्ति पागलपन की हद तक अपनी फोटो लेने लगता है और उसे सोशल मीड़िया पर पोस्ट करने लगता है । इतना ही नहीं, ऐसा करने से धीरे धीरे उसका आत्मविस्वास कम होने लगता है, निजता पूरी तरह से भंग हो जाती है और वह एंजाइटी का इस कदर शिकार हो जाता है कि आत्महत्या करने की सोचने लगता है ।</span></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><span style="font-size: x-large;">विशेषज्ञों की राय पर एक नजर :</span></strong><br />
<span style="font-size: x-large;">शोधकर्ताओं की माने तो जरूरत से ज्यादा सेल्फी लेने की चाहत “बॉड़ी ड़िस्मॉर्फिक ड़िसऑर्ड़र” नाम की बीमारी को जन्म दे सकती है । इस बीमारी से लोगों को एहसास होने लगता है कि वो अच्छे नहीं दिखते हैं । कॉस्मेटिक सर्जन का भी यही कहना है कि सेल्फी के दौर ने कॉस्मेटिक सर्जरी कराने वालों की सँख्या में जोरदार इजाफ़ा किया है, जो बेहद चिन्तनीय है ।</span></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><span style="font-size: x-large;">हैरान करने वाले सच :</span></strong><br />
<span style="font-size: x-large;">ऑक्सफोर्ड़ के मुताबिक, सेल्फी शब्द साल 2013 में अंग्रेजी भाषा के अन्य शब्दों की तुलना में 1700 बार ज्यादा इस्तेमाल किया गया । जब सेल्फी शब्द सुर्खियों में आया तो ऑक्सफोर्ड़ ड़िक्सनरी की सम्पादकीय प्रमुख जूरी पियरसल ने यह भी कहा कि फोटो शेयरिंग वेबसाइट फ्लिकर्स द्वारा साल 2004 से ही सेल्फी को हैशटैग के साथ इस्तेमाल किया जाता रहा है । मगर साल 2012 तक इसका इस्तेमाल बहुत नहीं हुआ था ।</span><br />
<span style="font-size: x-large;">टाइम मैगजीन ने सेल्फी स्टिक को साल 2014 का सबसे बढ़िया आविस्कार बताया था । अप्रैल 2015 में समाचार एजेंसी पी टी आई की एक खबर के मुताबिक सेल्फी स्टिक का आविस्कार 1980 के दशक में हुआ था । यूरोप की यात्रा पर गए एक जापानी फोटोग्राफर ने इस तरकीब को जन्म दिया । वो अपनी पत्नी के साथ किसी भी फोटो में आ ही नही पाते थे । एक बार उसने अपना कैमरा किसी बच्चे को दिया और वो लेकर भाग गया । इस दर्द ने एक्सटेंड़र स्टिक का जन्म दिया, जिसका साल 1983 में पेटेंट कराया गया और आज के दौर में इसे सेल्फी स्टिक कहा जाने लगा ।</span></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"><span style="font-size: x-large;">आपको अब गुनना ही होगा :</span></strong><br />
<span style="font-size: x-large;">बदलाव के दहलीज पर खड़े हम सब कहीं इस कदर न बदल जाए कि जब हमें वास्तविकता का पता चले तो वापस भी न लौट सकें । हमें अपने वर्तमान और भविष्य को सँजोनें के लिए दूरदर्शिता की दरकार है । हमें अपने साथ साथ दूसरों को जागरूक करना ही होगा, क्योंकि जब तक समाज का अन्तिम जन रोजमर्रा की समस्याओं से वाकिफ़ नहीं होगा तब तक हम एक सुदृढ़, समृद्ध राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते । इसलिए सेल्फी की संक्रामकता से हमें स्वयं को बचाना बेहद जरूरी हैं, वरना परिणाम तो दुख:दायी ही होगा ।</span></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-63907871489069846792017-02-17T15:02:00.001-08:002017-02-17T15:02:40.415-08:00सकारात्मक बदलाव की आधारशिला है शिक्षा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="post-title" style="background-color: white; border: 0px; color: #666666; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1-mrx_gQkriHPObg0ftDn4AVK_3phEWYzucSlnnbtM-4-VAx_OtOm6QwhgU2Bm9eJniwwvZX-35Iydb8lQTWWEB5H1thvl0XxFKBL5BiepOLlnsOhEZuOS0nJiAqdwK1l9Y6mLIG3CfM/s1600/images+%252825%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="133" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1-mrx_gQkriHPObg0ftDn4AVK_3phEWYzucSlnnbtM-4-VAx_OtOm6QwhgU2Bm9eJniwwvZX-35Iydb8lQTWWEB5H1thvl0XxFKBL5BiepOLlnsOhEZuOS0nJiAqdwK1l9Y6mLIG3CfM/s320/images+%252825%2529.jpg" width="320" /></a></div>
<h1 class="entry-title" style="border: 0px; color: #333333; font-family: "PT Sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 30px; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: normal; line-height: 1.2; margin: 10px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline; word-break: normal; word-wrap: break-word;">
<br /></h1>
</div>
<div class="post-meta-blog" style="background-color: white; border-bottom-color: rgb(228, 228, 228); border-bottom-style: solid; border-image: initial; border-left-color: initial; border-left-style: initial; border-right-color: initial; border-right-style: initial; border-top-color: rgb(228, 228, 228); border-top-style: solid; border-width: 1px 0px; color: #707070; font-family: "PT Sans", sans-serif; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 10px 0px; padding: 3px 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; color: #222222; font-family: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">ब</strong><strong style="border: 0px; color: #222222; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">दलाव के मायने :</strong><span style="color: #222222; font-family: inherit; font-size: inherit; font-style: inherit; font-variant-caps: inherit; font-variant-ligatures: inherit; font-weight: inherit;"> </span></div>
<div class="post_content entry-content" style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px !important; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: 20px; margin: 10px 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<span style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 1.5; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">सकारात्मक बदलाव यानी ऐसा बदलाव जो जीव, प्रकृति और पर्यावरण के वर्तमान एवं भविष्य के लिए सार्थक के साथ-साथ तीनों में सौहार्दपूर्ण सामंजस्य स्थापित करने में समर्थ हो। बदलाव तो अवश्यंभावी है। सिर्फ बदलाव हो जाना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु बदलाव के साथ-साथ हमारी मानवता, नैतिकता और भौतिकता समग्र रूप से अग्रेसित होनी चाहिए।</span><br />गौरतलब है कि वर्तमान सदी में बदलाव की गति अवश्य तेज हुई है, चौतरफ़ा ‘देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है’ के नारे गूंज रहे हैं परन्तु क्या यह सच नहीं है कि भौतिकता में हम जितना आगे बढ़ रहे हैं उतना ही हम प्रकृति, पर्यावरण और स्वयं की सामंजस्यता से भी परे होते जा रहे हैं? वजह भी साफ़ है कि हम भौतिकता की लोलुपता में इतने मशगूल हो चुके हैं कि हमारी अन्तर्दृष्टि और दूरदृष्टि एक संकुचित दायरे में सिमटकर निरर्थक बदलाव की मूक साक्षी बन चुकी है।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: 1.5; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">सार्थक शिक्षा : </strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा के ‘शिक्ष’ धातु से बना है। जिसका अर्थ है- सीखना और सिखाना। अंग्रेजी भाषा में शिक्षा को “Education (एजुकेशन)” कहा जाता है, जो कि लैटिन भाषा के E (ए) एवं Duco (ड्यूको) शब्द से मिलकर Education (एजूकेशन) बना है। “E (ए)” शब्द का अर्थ ‘अन्दर से’ और “Duco (ड्यूको)” शब्द का अर्थ है ‘आगे बढ़ना’ अर्थात Education शब्द का शाब्दिक अर्थ “अन्दर से आगे बढ़ना” है। दूसरी स्वीकरोक्ति यह है कि लैटिन भाषा के “Educare (एजुकेयर)” तथा “Educere (एजुशियर)” शब्द को भी “Education” शब्द के मूल रूप में स्वीकार किया जाता है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि आंतरिक शक्तियों को बाहर लाने अथवा विकसित करने की क्रिया शिक्षा कहलाती है। कई अन्य विद्वानों की परिभाषाएं निम्न हैं-</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<br /></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
* स्वामी विवेकानन्द- “मनुष्य में अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है।”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
* महात्मा गांधी- “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक या मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क या आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्तम विकास से है।”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
* सुकरात- “शिक्षा का अर्थ है कि प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में अदृश्य रूप से विद्यमान संसार के सर्वमान्य विचारों को प्रकाश में लाना।”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
* मैकेंजी– “व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवनपर्यंत चलती है तथा जीवन के प्रत्येक अनुभव से उसमें वृद्धि होती है।”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">आध्यात्मिक चिंतन : </strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
जब हम अपनी अंतर्रात्मा से निकलने वाले भावों को शब्दों में पिरोकर परमात्मा को समर्पित करते हैं तो भी शिक्षा का एक यथार्थ स्वरूप झलक उठता है-</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
“असतो मा सद्गमय,<br />तमसो मा ज्योतिर्गमय,<br />मृत्योर्मामृतङमय।”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(हे प्रभु ! हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु के भय से अमृत्व की ओर ले चलो।)</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;"> </strong><br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">सन्मार्ग दिखाता गांधी का एकादश चिंतन :</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
महात्मा गांधी ने जिस एकादश व्रत का प्रतिपादन किया, वह हम सबके लिए भी अनुकरणीय है। बापू की शिक्षाओं में ग्यारह प्रकार की बातें सिखलाई जाती हैं—<br />“अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह।<br />शरीर श्रम, अस्वाद, सर्वत्र भयवर्जनम।।<br />सर्वधर्म-समानत्व, स्वदेशी भावना।<br />हीं एकादशा सेवावीं नम्रत्वे व्रतनिश्चये।।”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
अर्थात शिक्षा का लक्ष्य उपरोक्त श्लोक की बातों को हम सबके जीवन में धारण करना सिखलाना है ताकि हम सब अपने जीवन में सर्वांगीण विकास कर सकें। इस श्लोक में निम्न बातों की शिक्षा दी गई है —</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(1) अहिंसा अर्थात किसी को दुख न देना।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(2) सत्य अथवा सच्चाई।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(3) अस्तेय अर्थात चोरी न करना।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(4) ब्रह्मचर्य अर्थात मन-वचन-कर्म की पवित्रता।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(5) असंग्रह अर्थात लोभवश अधिक वस्तु, धन इकट्ठा न करना।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(6) शरीर श्रम अर्थात परिश्रम से जी न चुराना।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(7) अस्वाद।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(8) सब प्रकार के भयों को समाप्त करना ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(9) सभी धर्मों में समानता का भाव रखना ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(10) स्वदेशी अर्थात अपने देश की चीजों से प्रेम करना।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
(11) स्पर्श-भावना बनाए रखना।<br />अस्पृश्य या स्पर्श का मतलब अछूत से है। बापू इस तरह की भेदभावपूर्ण भावनाओं को अच्छा नहीं मानते थे। इसलिए उन्होंने स्पर्श-भावना या घुलमिलकर रहने की प्रवृत्ति पर जोर दिया। आदर्श शिक्षा हम सबको ये बातें सिखाती हैं। मगर अब हमें स्वयं से यह पूछना ही होगा कि क्या हम और हमारी नवनिहाल पीढ़ी ऐसी शिक्षा ग्रहण कर पा रही है जो हमें अन्दर से विकसित कर सके? शायद नहीं।<br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">सच की पड़ताल जरूरी : </strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
गुजरते वक्त के साथ-साथ राष्ट्रीय सामाजिक परिवेश में भी बदलाव आया। हां, यह जरूर है कि यह बदलाव समरूप न होकर वैचारिक, भागौलिक, प्राकृतिक, राजनीतिक, अनुसंधानिक आदि रूपों में देखने को मिला। खैर, यह भी परम सत्य है कि गतिशीलता के साथ-साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है। परिस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान हर क्षण बनते भी हैं और बिगड़ते भी। परन्तु आज अत्याधुनिक संसार के इस हर क्षण बनते-बिगड़ते प्रतिमान एवं सामाजिक उठापटक के मूल में जाकर सच को टटोलने की जरूरत है और यह देखना बेहद जरूरी है कि यह व्यापक परिवर्तन हम भारतीयों के वर्तमान और भविष्य के लिए कितना सार्थक है?</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
क्या कहीं ऐसा तो नहीं कि हम परिवर्तन की प्रकिया एवं परिणामों को परखे बिना अवचेतन रूप से अपना रहे हों? कई बार हम परिवर्तनों के मूक साक्षी बनकर या तो स्वतः परिवर्तन को अपना लेते हैं या फिर परिस्थितियों की विवशतावश हम शनैः शनैः अपनाकर उसी में रम जाते हैं। कुल मिलाकर यदि हम सकारात्मक बदलाव का मूल समझें तो वह है, शिक्षा।<br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">तब से अब तक : </strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
सदियों से भारतीय शिक्षण परंपरा और पद्धति समूचे विश्व में ज्ञान, कौशल और आदर्श की छाप छोड़ती रही है। प्राचीनकाल में गुरुकुलों, आश्रमों व मठों में शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था होती थी। मध्यकाल में नालन्दा, तक्षशिला, वल्लभी आदि प्रख्यात विश्वविद्यालयों को शिक्षा का गढ़ माना जाता था। समयोपरान्त मदरसे, मकतब और विद्यालय शिक्षा के केन्द्र बने। मुगलकाल में प्रारम्भिक शिक्षा ‘मकतब’ और उच्च शिक्षा ‘मदरसों’ में दी जाती थी। प्रारम्भ में शिक्षा के दो ही रूप थे- प्रारम्भिक शिक्षा एवं उच्च शिक्षा। भारत में आधुनिक व पाश्चात्य शिक्षा की शुरुआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल से हुई। लोक शिक्षा के लिए स्थापित समान्य समिति के दस सदस्यों के दो दल बनाए गए थे। एक आंगल या पाश्चात्य विद्या के समर्थक थे तो दूसरे प्राच्य विद्या के।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
“अधोमुखी निस्पादन सिद्धान्त” जिसका अर्थ था- शिक्षा समाज के उच्च वर्गों को दी जाए। ‘वुडडिस्पैच’ के पहले तक इस सिद्धांत के तहत भारतीयों को शिक्षित किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य था कि भारत के उच्च वर्ग और सक्रिय समाज को पाश्चात्य शिक्षा देकर उनके मूलभूत विचारों को बदलना। खैर, वो अपने इस उद्देश्य में काफी हद तक सफल भी रहे, जिसका नतीजा आज साफ दृष्टव्य है। आज न तो हम भारतीय संस्कृति के अनुगामी रह गए हैं और न ही पाश्चात्य संस्कृति के, जो कि हमारे मानवीय नैतिक पतन की मुख्य वजह भी दिख पड़ती है। ‘बोर्ड ऑफ कंट्रोल’ के प्रधान चार्ल्स वुड ने 19 जुलाई 1854 को भारतीय शिक्षा पर एक व्यापक योजना प्रस्तुत की। जिसे ‘वुड का डिस्पैच’ कहा जाता है।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
समय बदलता गया, साथ ही साथ शिक्षण पद्धति और उसका उद्देश्य भी संकुचित होता गया। सन् 1937 में गांधीजी द्वारा एक बार पुनः प्राच्य भारतीय शिक्षण पद्धति, कौशल विकास एवं सर्वांगीण विकास को जीवित करने हेतु बर्धा नामक स्थान पर एक नई शिक्षण योजना का सूत्रपात किया गया। इसमें सर्वांगीण विकास एवं स्वदेशी नीतियों को मद्देनजर रखकर हस्त उत्पादन कार्यों को महत्व दिया गया। इसमें बालक अपनी मातृभाषा में 7 वर्ष तक अध्ययन करके अपने कौशल को सकारात्मक दिशा में निखारता था।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
सन् 1944 में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार मंडल ने ‘सार्जेंट योजना’ के नाम से एक शिक्षा योजना प्रस्तुत की, जिसमें 6 से 11 वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था थी। धीरे-धीरे शिक्षा व्यवसायीकरण और बाजारीकरण में तब्दील हो गई। लोगों ने मूल्यपरक शिक्षा को उसके मूल उद्देश्यों से भटकाकर मोटी कमाई का जरिया बना लिया। पैसों से विद्यालय की मान्यता मिलने लगी, शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट के साथ-साथ महज अत्याधुनिक दिखावटों में सिमट गई। इसके जिम्मेदार न केवल वो मोटी कमाई वाले लोग हैं बल्कि हम-आप भी पूर्णरूपेण जिम्मेदार हैं।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
हमारे अन्दर से सामाजिक दायित्व बोध की ऊर्जा अब सिर्फ एकाकी परिवार के रोटी, कपड़ा और मकान की उलझन में व्यय हो रही है। यह भी कटु सत्य है कि बदलाव हर कोई चाहता है परन्तु स्वयं न करना पड़े। जरा सोचिए, क्या ऐसे बदलाव संभव हैं, शायद कभी नहीं..? खामियाजा भी सामने है- शिक्षा अब सिर्फ एक संकुचित उद्देश्यों में सिमट गई है, जिससे प्रारम्भ से ही अधिकतर नवनिहाल इस संकुचन का शिकार हो जाता है और जीवनभर वह मानवता और सामाजिक दायित्व बोध से परे रहकर सिर्फ और सिर्फ पारिवारिक झंझावातों में उलझा रह जाता है। वास्तव में अब यह संकुचित शिक्षण व्यवस्था ही राष्ट्र उन्नति, सामाजिक बदलाव और सद्भाव के लिए यह एक प्रश्नचिन्ह बन चुकी है।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">विरासत को संजोना होगा : </strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
शिक्षा ही एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिससे कोई भी समाज, वर्ग और राष्ट्र सकारात्मक दिशा में अग्रसित होकर यथोचित बदलाव लाकर भविष्य की एक समृद्धशाली संकल्पना को साकार कर सकता है और इसके विपरीत समर्थ शिक्षा के अभाव में अवनति के गर्त में भी जा सकता है। शिक्षा के माध्यम से ही हम अपने रहन-सहन, मूलभूत सकारात्मक सोच व प्राच्य मानवीय नैतिकता को पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुंचा सकते हैं। जो कि आगे चलकर यही पीढ़ियां ही राष्ट्र की दिशा तय करती हैं।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
गौरतलब यह है कि प्रदान की जाने वाली शिक्षा समग्रता, सर्वांगीणता और संस्कारयुक्त होनी चाहिए, न कि किसी निश्चित दायरे में सिमटी संकुचित। समयानुसार सामाजिक, राजनीतिक, वैचारिक परिवर्तन होने तो स्वाभाविक हैं परन्तु आने वाली पीढ़ियों को एक सकारात्मक राह दिखाना हम सबका दायित्व है।<br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">लोकव्यापारीकरण का खामियाजा :</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
विशेष ध्यातव्य यह है कि सदियों से लेकर आज तक समाज में होने वाले सामयिक परिवर्तनों ने अपने संकुचित उद्देश्य प्राप्ति हेतु शिक्षा की दिशा को ही परिवर्तित कर दिया। प्राचीनकाल में शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य था- आत्म ज्ञान। वह समाज स्वयं महापुरुषों की सान्निध्यता में रहकर आत्मा को परमात्मा से जोड़ने व सच्ची आध्यात्मिक अनुभूति के साथ-साथ अन्तर्निहित शक्तियों के विकास को ही सार्थक शिक्षा समझता था और समाज व राष्ट्र को एक नई सकारात्मक दिशा प्रदान करने हेतु संकल्पित भी होता था। मगर समय के बदलाव ने तो शिक्षा की जमीनी धुरी की दिशा ही बदल डाली। शिक्षा का लोकव्यापारीकरण और बाजारीकरण शुरू हो गया।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
इस व्यवस्था ने तो शिक्षा को सिर्फ सर्टिफिकेशन की खोखली सतह पर ला खड़ा किया। लोकव्यापारीकरण के आंकड़े सिर्फ एक बेहतरीन रिकॉर्ड बनकर दफ्तरों की फाइलों की शोभा जरूर बढ़ा रहे हैं। इतना ही नहीं, तंग गलियों के दो-चार कमरों और कुछ गिने-चुने अध्यापकों में सिमटे महाविद्यालयों से जेब भी सीधी की जा रही है। इसके वर्तमान और दूरगामी परिणाम भी हमारे सामने हैं, जो कि बेहद चिंतनीय हैं। गर हम गौर करें तो यह पाएंगे कि यदि ऐसी शिक्षण व्यवस्था कुछ दिनों तक चलती रही तो यह न केवल हमारी युवा पीढ़ी को समर्थ ज्ञान से वंचित कर देगी, अपितु राष्ट्र को भी जड़ से खोखली कर देगी।<br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">दायित्व बोध से बदलाव संभव :</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
हममें से कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि मनुष्य की चेतना जगाने का सर्वोत्तम माध्यम है- शिक्षा। स्वतंत्रता प्राप्ति के लंबे अर्से के बाद भी हम कोई सफल शिक्षण नीति निर्धारित नहीं कर पा रहे हैं। कुछ गिने-चुने सत्तारुढ़ राजनीतिक लोग अपने निजी स्वार्थ हेतु लुभावने सपने दिखाकर शिक्षण व्यवस्था में फेरबदल करके जनता को गुमराह कर रहे हैं और अपना उल्लू सीधा करने में जुटे हुए हैं। समस्या यह भी है कि आम लोगों को इतना अहसास भी नहीं हो पा रहा है कि वास्तव में शिक्षा का क्या उद्देश्य होना चाहिए और उसके विपरीत क्या होता जा रहा है।<br /><strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">नतीज़ा भी साफ है : </strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
सर्टिफिकेट की भरमार के साथ-साथ बेरोजगारी और समर्थ ज्ञान की कमी। कुछ लोगों का कहना यह भी है कि बदलते वक्त के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा भी जरूरी है। चलो हम उनकी बात भी मानते हैं, मगर जब हम शिक्षा को उसके मूलभूत उद्देश्य से बदलकर व्यावसायिक उद्देश्य पर ला खड़ा किए तो फिर भी इतनी बेरोजगारी क्यूं? क्या यह सच नहीं कि हममें से हर कोई इन दूरगामी परिणामों को देखते हुए भी सकारात्मक बदलाव की अलख जगाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने से हिचक रहा है। हमें अपने दायित्व को समझकर दूरगामी परिणामों को मद्देनजर रखते हुए सकारात्मक बदलाव में एक सक्रिय हिस्सेदारी निभानी ही पड़ेगी। वरन हम अब भी नहीं चेते तो भविष्य में काल का विकराल रूप हमें चेताएगा ही।</div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-80227654972555030572017-02-17T14:54:00.003-08:002017-02-17T14:54:48.891-08:00देशवासियों के नाम खुला खत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="post-title" style="background-color: white; border: 0px; color: #666666; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOsxl0NwnDAJBD4BZZZIbkZ8LZ1h0GIBQWx9bLKuD7usddPS7IPOecT96atVmZoEXjBGJmHughdbZg-CebUClgcudWbYLFAIQEKOc7TQkvImni5IFOYoKL7L0VpWnC2gZEq9NICEUUo8E/s1600/images+%252824%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOsxl0NwnDAJBD4BZZZIbkZ8LZ1h0GIBQWx9bLKuD7usddPS7IPOecT96atVmZoEXjBGJmHughdbZg-CebUClgcudWbYLFAIQEKOc7TQkvImni5IFOYoKL7L0VpWnC2gZEq9NICEUUo8E/s1600/images+%252824%2529.jpg" /></a></div>
<h1 class="entry-title" style="border: 0px; color: #333333; font-family: "PT Sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 30px; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: normal; line-height: 1.2; margin: 10px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline; word-break: normal; word-wrap: break-word;">
<br /></h1>
</div>
<div class="post-meta-blog" style="background-color: white; border-bottom-color: rgb(228, 228, 228); border-bottom-style: solid; border-image: initial; border-left-color: initial; border-left-style: initial; border-right-color: initial; border-right-style: initial; border-top-color: rgb(228, 228, 228); border-top-style: solid; border-width: 1px 0px; color: #707070; font-family: "PT Sans", sans-serif; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 10px 0px; padding: 3px 0px; vertical-align: baseline;">
<span style="color: #222222; font-family: inherit; font-style: inherit; font-variant-caps: inherit; font-variant-ligatures: inherit;">देश</span><span style="color: #222222; font-family: inherit; font-size: inherit; font-style: inherit; font-variant-caps: inherit; font-variant-ligatures: inherit; font-weight: inherit;">वासियों के नाम एक ऐसा खुला खत, जो प्रत्येक भारतीय को अपनी भारतीयता से रूबरू कराकर गौरवान्वित कर देगा और साथ ही साथ गर्त की ओर बढ़ रहे कदम पर भी विराम लगाने को मजबूर कर देगा ।</span></div>
<div class="post_content entry-content" style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px !important; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: 20px; margin: 10px 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
मेरे प्रिय देशवासियों,</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
हम सबको पता है कि हममें से अधिकतर लोग या तो पाश्चात्य संस्कृति को पूर्णरूपेण अपना चुके हैं या फिर अपनानें की प्रक्रिया में गतिशील हैं । मुझे भली भाँति यह भी पता है कि आप हमारे इस खुले खत को पढ़कर या तो मेरा मजाक उड़ाएगे, गालियाँ देंगे या फिर पुराने विचारों वाली कहेंगे, परन्तु इसका ड़र हमें कतई नहीं है । शायद हम सब यह भूल चुके हैं कि सदियों पहले भारत अपनी भारतीय सभ्यता एवं श्री संस्कृति के बदौलत ही विश्व गुरू था और यही भारत समूचे विश्व में अपने ज्ञान, कौशल और अध्यात्म के लिए एक नज़ीर भी था । किसी ने बिल्कुल ठीक कहा था कि “नष्टे मूले नैव फलं न पुष्पम्” यानी जिस देश को मिटाना हो तो उस देश की सभ्यता, संस्कृति एवं साहित्य को मिटा दो। साहित्य तथा उसकी वास्तविक संपत्ति- चरित्र को मिटा दो। धीरे धीरे वह देश स्वतः मिट जाएगा ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
हम सब भारतीय संस्कृति से भली भाँति परिचित हैं । भारतीय संस्कृति विश्व में सबसे प्राचीन और सभ्य मानी जाती है और यह सभी संस्कृतियों की जननी भी कही जाती है । भारतीय संस्कृति में वेदो, उपनिषदों तथा पुराणों का विपुल भण्ड़ार है, जरूरत है तो सिर्फ इसे आत्मसात् करने की । यदि हमारे छात्र एवं युवा वर्ग इस ज्ञान का कुछ अंश भी ग्रहण कर लें तो उनके चरित्र का सर्वांगीण विकास स्वतः ही हो जाएगा फिर पाश्चात्य संस्कृति हम सबका चरित्र निर्माण क्या करेगी ?</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
मै पूछना चाहूँगी कि क्या पाश्चात्य संस्कृति आने से पहले हमारे यहाँ अच्छे विद्वान नहीं थे ? हमारे देश ने तो आर्यभट्ट, चरक जैसे महान वैज्ञानिक दिए हैं । भारतीय संस्कृति जिसमें कहा गया है – “अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः, चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम् ” अर्थात जो नित्य प्रति माता पिता का आदर सम्मान एवं बड़े बुजुर्गों की सेवा करते हैं उनकी आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है परन्तु पाश्चात्य संस्कृति में तो यह दूर दूर तक नहीं दिखता ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
पाश्चात्य सभ्यता साइबेरिया से आने वाली उन ठण्ड़ी हवाओं के समान हैं, जो चलती तो हैं परन्तु हिमालय जैसे व्यक्तित्व से टकराकर घुटनें टेक देती हैं या फिर यूँ कहें कि पाश्चात्य संस्कृति उस चमकती हुई वस्तु के समान है जो दूर से तो सोना दिखती है परन्तु पास आने से भ्रम दूर हो जाता है । तो ऐसी संस्कृति हमारे छात्रों का चरित्र निर्माण क्या करेगी जिसका स्वयं का कोई आधार ही न हो ?</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
हमारी श्री संस्कृति में शादी-विवाह को एक पवित्र बन्धन माना जाता है । यहाँ जो स्त्री एक बार इस बन्धन में बँध जाती है, वह जीवन भर अपने पति का साथ निभाती है या फिर यूँ कहें कि भारतीय स्त्री मिट्टी के उस प्याले के समान है जो सिर्फ एक व्यक्ति के होंठो में समाती है और फिर टूटकर उसी मिट्टी में वापस मिल जाती है, जबकि पाश्चात्य संस्कृति में महिलाएँ होटल के उस काँच के गिलास के समान हैं, जो आज किसी के होंठो में तो कल किसी और के होंठो में । वे अपने जीवन साथी उसी प्रकार बदलती है जिस प्रकार लोग अपना कपड़ा बदलते हैं । मगर अफ़सोस है कि आज हमारे छात्र, छात्राएँ भी इस सभ्यता को अपनाकर पवित्र बन्धन को तोड़ ड़ालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं । इस प्रकार की संस्कृति छात्रों का चरित्र निर्माण नहीं बल्कि उनके चरित्र का विनाश कर रही है ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता ” अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं परन्तु आज उसी नारी के साथ बलात्कार, दहेज प्रताड़ना जैसी घिनौनी घटनाएँ आम हो चुकी हैं । यह उस पाश्चात्य संस्कृति की ही देन है जहाँ ये रंग-रलियाँ खुले आम होती हैं । आज गर्भ से ही पता लगा लिया जाता है कि पैदा होने वाली संतान लड़का है या लड़की । यदि लड़की है तो उसे इस दुनियॉ में कदम तक नहीं रखने दिया जाता है ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
यदि हम इतिहास के पन्ने को पलटकर देखें तो हम सीता, सावित्री, अहिल्याबाई, कुन्ती, अपाला, गार्गी, पन्नाधाय, झाँसी की रानी लझ्मी बाई एवं इंदिरा गाँधी जैसी वीरांगनाओं के चरित्र से रूबरू होंगे, जिनका लोग आज भी उदाहरण दिया करते हैं और आज उसी नारी को अपमानित होना पड़ रहा है । इसकी वजह सिर्फ पाश्चात्य संस्कृति ही है, जिसका अनुशरण करके भारतीय नारी भी अंग प्रदर्शन, वेश्यावृत्ति जैसे दलदल की ओर अपने कदम बढ़ा रहीं हैं ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
आज बात करें भारतीय रहन- सहन, खान-पान, व वेशभूषा की तो यहाँ लोग सादगी पूर्ण जीवन जीने में खुश थे, लेकिन आज हालत ये बन गई है कि अगर पहनने को जीन्स-टीशर्ट न मिले तो अपने आपको हीन महशूस करने लगते हैं ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
लोग बार बार यही कहते हैं कि पाश्चात्य संस्कृति ने हमें अंग्रेजी दी, जिसके सहारे हम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं और उन्नति की ओर अग्रसर हुए हैं । हम उन्नति की ओर अग्रसर तो हो सकते है लेकिन जरूरी नहीं कि चरित्रवान ही हों, क्योंकि उन्नति एक चरित्रवान भी कर सकता है और चरित्रहीन भी । यह जरूरी नहीं कि अंग्रेजी बोलने वाला हर व्यक्ति चरित्रवान ही हो, क्योंकि हमारा चरित्र वही रहता है जो हमारे माता पिता और समाज से मिला है । अगर हम गौर करें तो पाएगें कि पाश्चात्य संस्कृति हमारा चरित्र निर्माण कर ही नहीं सकती । जब हमारी संस्कृति खुद उन्नति साधक एवं चरित्र निर्णायक है तो पाश्चात्य संस्कृति अपनाने की कोई आवश्यकता ही नहीं हैं ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
बीते जमानें में पाश्चात्य देशो के मैगस्थनीज, ह्वेनसांग जैसे महान दार्शनिकों ने भी भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ बताया था । तो भी क्यों आज भारतीय ही पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने में अड़े हुए हैं ? सच तो यह है कि हमें अतीत को कभी भूलना ही नहीं चाहिए ।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
अन्त में समूचे देशवासियों से हमारी यही विनती है कि पाश्चात्य उद्दाम भोगवादी संस्कृति से ऊपर उठकर हम सब अपने भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के गौरव को समझकर इसे अपने चरित्र, कर्म और अन्तःस्थल में उतारें । ताकि एक बार पुनः हमारा राष्ट्र सोने की चिड़िया बने और विश्व गुरू बनकर समूचे विश्व में भारतीयता का परचम लहराए ।<br />धन्यवाद्</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
जय भारत, जय संस्कृति</div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-47590286952177573762017-02-17T14:48:00.001-08:002017-02-17T14:48:36.921-08:00यह तो भारतीय संस्कृति नहीं है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="post-title" style="background-color: white; border: 0px; color: #666666; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMe1kDp06VaTLakx_czUVjjh4MK2vxkaiCqQrdRmxaT2To_DjtB9EPQ2sK7_lLIahFXOcF5JLOvdFWcUnnQKjKQqfH21cKhk-afvzsdqQ93Cl2M0-Y2DBri-T1B6zvPidLuC3ck2S6Iug/s1600/download+%25283%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMe1kDp06VaTLakx_czUVjjh4MK2vxkaiCqQrdRmxaT2To_DjtB9EPQ2sK7_lLIahFXOcF5JLOvdFWcUnnQKjKQqfH21cKhk-afvzsdqQ93Cl2M0-Y2DBri-T1B6zvPidLuC3ck2S6Iug/s1600/download+%25283%2529.jpg" /></a></div>
<h1 class="entry-title" style="border: 0px; color: #333333; font-family: "PT Sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 30px; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: normal; line-height: 1.2; margin: 10px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline; word-break: normal; word-wrap: break-word;">
<br /></h1>
<h1 class="entry-title" style="border: 0px; color: #333333; font-family: "PT Sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 30px; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: normal; line-height: 1.2; margin: 10px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline; word-break: normal; word-wrap: break-word;">
प्रकृति यानी एक ऐसी कृति जो पहले से ही अस्तित्व में है । कभी लोप न होने वाले इस अस्तित्व के कारण ही सभी जड़-चेतन एक सामंजस्य के साथ गतिमान है; यहां तक कि समूचे ब्रह्माण्ड की गतिशीलता का मूल भी प्रकृति ही है। प्रकृति की इस महत्ता को जानने के बावजूद, आज हम प्रकृति रूपी वरदान का अति दोहन करने से हम चूक नहीं रहे। कहने को तो भारत के निर्माता, दुनिया के विकसित कहे जाने वाले देशों के साथ-साथ कदम ताल करने की कोशिश कर रहे हैं, किंतु वे पलटकर यह देखने की कोशिश नहीं कर रहे कि यह कदम-ताल कितनी सार्थक है, कितनी निरर्थक ? इसका उत्तर भविष्य स्वतः दे ही देगा, किंतु तब तक अपनी अस्मिता को वापस हासिल करना कितना मुश्किल हो जायेगा; यह समझना अभी संभव है।</h1>
</div>
<div class="post_content entry-content" style="background-color: white; border: 0px; color: #222222; font-family: "Open sans", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px !important; font-stretch: inherit; font-variant-numeric: inherit; line-height: 20px; margin: 10px 0px; padding: 0px; position: relative; vertical-align: baseline;">
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">प्रकृति प्रेम : भारतीय गुरुत्व का मूलाधार </strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
भारतीय समाज के आधुनिक हिस्से के पास आज स्वयं के बारे में चिंतन-मनन करने का वक्त नहीं है, तो फिर उनके पास आगे चलकर जीवनदायिनी प्रकृति के संरक्षण के लिए वक्त होगा; यह उम्मीद भी शायद झूठी ही है। हम भूल गये कि यदि भारत कभी विश्वगुरु था, तो अपने प्राकृतिक, सांस्कृतिक ज्ञान और उसके पुरोधा ऋषि-मुनियों के कारण ही। समूची दुनिया में भारतीय संस्कृति ही एक ऐसी है कि जो प्रकृति को प्रभु प्रदत्त वरदान मानकर उसके प्रति पूजनीय भाव रखने का निर्देश देती है। भारतीय संस्कृति में हर जन को उसकी इच्छा मुताबिक किसी भी वृक्ष, नदी और रज को पूजने, अपनाने एवं भावनात्मक रूप से उससे जुड़ने की खुली आज़ादी है। क्या कभी हमने सोचा कि हमारी भारतीय संस्कृति, प्रकृति प्रेम को इतना तवज्जो क्यों देती रही है ?</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">सुविधा संपन्न के प्रकृति जुङाव की संस्कृति</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
अतीत के एक ख़ास दौर में मानव, प्रकृति के बेहद करीब था। कृषि और पशुपालन के साथ-साथ हमारा रिहायशी कुनबा अस्तित्व में आया। प्रकृति से हमारी नजदीकियां बढ़ती गईं। वनवासी और सुविधा संपन्न समाज के बीच विरोध के बजाय सौहार्द्र को होना भारतीय संस्कृति की विशेषता रही। इस विशेषता की खास वजह थीं सुविधा संपन्न नगर समाज का समय-समय पर जंगलों में जाकर तप करना, आश्रम बनाकर गुरुकुल चलाना। जड़ी-बूटी आधारित पारंपरिक चिकित्सा पद्धति और पौराणिक आख्यानों और कथानकों का पर्वतां, नदियों एवं जंगलों के इर्द-गिर्द बुना जाना। आज क्या है ? आज बच्चों के स्क्रीन पर प्रकृति की बजाय, फाइटर गेम और कार रेस हैं।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">शोषक बनाता वैश्वीकरण</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
सभ्यतायें, पानी की देन हैं। संस्कृतियां, नदियों से पोषित हुई हैं। सभ्यता, संस्कृति और समूल चेतन को पोषण देने का श्रेय प्रकृति को ही है। वह आज भी अपना धर्म निबाह रही है। नई सामाजिक व्यवस्थाओं का गढ़ना कोई नई बात नहीं है। उनका संचालन हुआ । ऐसे नित् नूतन प्रयासों का नतीजा यह हुआ कि मानव ने स्वयं को एक छोटे से कुनबे से निकालकर विश्व छितिज पर ला खड़ा किया। यह अच्छा ही हुआ। किंतु क्या वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा वाले भारत नये तरह के वैश्वीकरण की चपेट में आ जाना अच्छा हुआ ? वैश्वीकरण ने जिस प्रतिद्वंदिता को जन्म दिया। उसी के कारण आज हम भारतीय भी सिर्फ शोषण पर अमादा है। क्या यह अच्छा है ??</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">बिकाऊ संवेदनाओं वाला देश बनता भारत</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
कहना न होगा कि बदले स्क्रीन और प्रतिद्वंदिता की दौङ में आगे निकल जाने की कुचाल ने प्रकृति की सुन्दरता, जंगलों की सघनता, जीवों की विविधता, हम इंसान की शालीनता और दूरदर्शिता को निगल लिया है। दलाल संस्कृति का खामियाजा यह है कि प्रकृति की बेहाल अस्मिता को वापस लौटाने का दावा करने वाले मौकापरस्त और भोगवादी लोग, सरकार और जनता के मध्यस्थ बनकर मालामाल हो रहे है । उनका यह पुनीत कार्य सिर्फ जुमलों, भाषणों, दफ्तर की फाइलों और सजावाटी दस्तावेजों तक ही सीमित होता जा रहा है। अपना पैर जमाने के घमण्ड में हमने प्रकृति को एक खुला बाजार बना डाला है – हवा, पानी और धरा … सबका खुल्लम-खुल्ला मोलभाव होने लगा है। निवेशकों से आग्रह करता बोर्ड लग गया है – ”प्रकृति के प्रति हमारी संवेदनायें बिकाऊ हैं। बोलो, खरीदोगे ?”</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">दूरदृष्टि दोष </strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
हमारी मरती संवेदनाओं की मूल वजह असल क्या है ? असल में बदलते वक्त के साथ आज हमने अपनी मूल भावनाओं, संवेदनाओं और समग्रता की समझ को ही बदल डाला है। हमारी बदली हुई नज़र में समग्रता और दूरदृष्टि में कमी का दोष आ गया है। नतीजा भी सामने है। हम पर प्राकृतिक आपदाओं का पहाङ टूटने का सिलसिला तेज हो गया है। आए दिन कहीं सूखा, कहीं बाढ़, तो कहीं तूफान और कहीं भूकंप।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">वनवासी नहीं वन के दुश्मन</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
इस रज के मूल बासिन्दे, प्रकृति के असली संरक्षक आदिवासियों का उत्थान करने की बजाय, खोखली मानसिकता वाली हमारी सरकारें उन्हे हाशिये पर ठेलने में लगी हैं। जंगलों के विनाश का ठीकरा भी वनवासियों के सिर फोडकर उन्हे जंगल से बाहर निकालने के प्रयास में लगी हैं। यह बेहद खोखला दावा है। आप ही गुनिए कि अत्याधुनिकता की इस दौङ में भी जो स्वयं को प्रकृति की गोद में समेटे हुए है, वह प्रकृति का विनाशक कैसे हो सकता है ? यदि वनवासी, वन में रहने दिए गये होते, तो क्या उत्तराखण्ड के वनों की आग बेकाबू होने पाती ? सोचिए, यह नीतिकारों के भी सोचने का प्रश्न है।</div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
<strong style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; line-height: inherit; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">वक्त की आवाज़ सुनें</strong></div>
<div style="border: 0px; font-family: inherit; font-size: inherit; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit; line-height: 22px; margin-bottom: 15px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">
पौराणिक आख्यान और तथ्य भारत की रज, मां गंगे के जल और वनस्पतियों को विकृति विनाशक मानते है। निःसन्देह ये हैं भी। किंतु क्या ऐसा मानने वाला भारत तद्नुकूल व्यवहार कर रहा है ? दीर्घकालिक समस्याओं का समाधान क्या कभी तात्कालिक लाभ के उपाय हो सकते हैं ? नहीं; फिर भी निजी लोभ व लालच की पूर्ति की अंधेपन में हम सच से मुंह मोङ रहे हैं। शिझा एवं जन जागरूकता ऐसे प्रबल माध्यम हैं, जिनके जरिये कोई व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा अध्यात्मिक परिपक्वता अर्जित कर सकता है । हमें समझना होगा कि प्रकृति की समृद्धि के बगैर किसी व्यक्ति, समाज व देश की समृद्धि ज्यादा दिन टिक नहीं सकती। प्रकृति संरक्षण, मानव के खुद के संरक्षण का कार्य है। हमें यह करना ही होगा। इस वक्त की यही सबसे बड़ी दरकार है।</div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-41543601371650255172017-02-17T14:40:00.001-08:002017-02-17T14:40:10.341-08:00प्राइमरी स्कूल ख़ामोश हैं !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLdg1v5TsWqSsLKM4x87RcnCNlFuKgTEXNZx2FzyMduPif-4pDO6aO8KrvQ4TN33wZD2S-y1RhB3whsbPsM40vNlRo0yJoUTyeYGCVwdeMjPc5Q6Bh8OKymdv_Xxxhzi0CAh31dxCmi68/s1600/images+%252823%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="242" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLdg1v5TsWqSsLKM4x87RcnCNlFuKgTEXNZx2FzyMduPif-4pDO6aO8KrvQ4TN33wZD2S-y1RhB3whsbPsM40vNlRo0yJoUTyeYGCVwdeMjPc5Q6Bh8OKymdv_Xxxhzi0CAh31dxCmi68/s320/images+%252823%2529.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
दास्तान:<br />
आज भारत के अधिकतर क्षेत्रों में निःस्वार्थ भाव से समाज को प्राथमिक शिक्षा बाँटता हुआ प्राइमरी स्कूल गाँवों, कस्बों या शहरों के एक कोने में तन्हा दिखाई दे रहा है. कई दशक पुराना प्राइमरी स्कूल गाँव में बसा होने के बावजूद गाँव से ही अलग-थलग पड़कर अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है. स्कूल पल हरपल टकटकी लगाए विद्यार्थियों का इंतजार कर रहा है. परन्तु आज के बदलते मंजर ने उसके नेक इरादों पर पानी फेर दिया है. जी हाँ, सचमुच प्राइमरी स्कूल अपनी किस्मत कोसता हुआ बद्हाली की मर्म कहानी सुना रहा है. मगर आज की आपाधापी भरी जिन्दगी में भला किसके पास इतना वक्त है कि वह उसके करीब जाकर उसकी ख़बर ले, ख़ामोशी की वजह पूछे और दशकों पहले दिए हुए अतुलनीय योगदान की सराहना करे, यानी उसके वजूद को याद करे. यह वही प्राइमरी स्कूल है जिसने बीते समय में समाज को वैज्ञानिक, क्रान्तिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासक और राजनीतिज्ञ तक सौपें हैं.<br />
<br />
बेहाली का हाल:<br />
बद्हाली का आलम यह है कि आज प्राइमरी स्कूल शिक्षकों की कमी, मिड़ ड़े मील की अव्यवस्था, बच्चों की गिरती संख्या, सरकारी गैर-जमीनी नीतियाँ और खास तौर पर शासन सत्ता एवं समाज के गैर जिम्मेदाराना रवैया की वजह से मायूस हैं. जमीनी हकीकत तो यह है कि प्राइमरी स्कूलों में कहीं बच्चे हैं तो मूलभूत सुविधाएँ नहीं, कहीं सुविधाएँ है तो बच्चे नहीं. जनता की नुमाइंदगी करने सत्ता के गलियारे तक पहुँचें अधिकतर नेता , ऊँचे ओहदेदार अधिकारी एक बार ओहदा हथियानें के बाद पीछे मुड़कर देखते तक भी नही, बस यें सब लोक लुभावनीं नीतियाँ बनाने में मशगूल रहते हैं और इनका इससे दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं रहता कि ये नीतियाँ जमीनी स्तर पर कैसे उतारी जाए कि जरूरतमंद लोगों को लाभ मिले. समय के साथ साथ नीतियाँ बनती हैं, चलती हैं और अन्ततः दफ्तरों की फाइलों में ठीक ठाक ढ़ंग से सुपुर्द भी हो जाती है. चुनाव आने पर सरकार अपनी पीठ थप-थपाकर इनका श्रेय भी लेती है.<br />
<br />
सार्थक परिणाम से कोसों दूर नीतियाँ :<br />
विशेष गौरतलब है कि आजादी के दशकों बीत जानें के बाद भी आज शिक्षा और उसकी गुणवत्ता का हाल बेहाल है. संविधान के अनुच्छेद-45 में राज्य नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत यह व्यवस्था बनाई गई थी कि संविधान को अंगीकृत करके 10 वर्षों के अन्दर 6-14 वर्ष के सभी बालक/बालिकाओं के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी. किन्तु कई दशक गुजर जाने के बाद भी इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका. सरकार द्वारा प्रारम्भिक शिक्षा को लेकर प्रत्येक पंचवर्षीय में अहम फैसले लिए जाते है. वर्तमान में कक्षा 1 से 8 तक सभी बालक/बालिकाओं के लिए निःशुल्क पाठ्य- पुस्तक , मध्यान्ह पोषाहार और छात्रवृत्ति की अधिकाधिक व्यवस्था है. विद्यालय को लेकर तरह तरह के अन्य मानक भी बनाए गए है. प्राथमिक विद्यालय की स्थापना हेतु तकरीबन 1 किमी तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना हेतु 2 किमी की अनुमानित दूरी निर्धारित की गयी है. इतना ही नहीं, सरकार का करोड़ों का बजट प्रतिवर्ष प्राथमिक शिक्षा हेतु व्यय किया जाता है. फिर भी आज ऐसी हालत क्यूँ ..... ??<br />
<br />
सोचने वाली बात:<br />
जरा गौर कीजिए, आज से 50 वर्ष पूर्व समाज के अधिकतर लोग इन्हीं प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते थे, आगे बढ़ते थे और अलग अलग क्षेत्रों में पहुँचकर परिवार एवं समाज का नाम रोशन करते थे. स्कूल आज भी वही हैं, इनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों के चयन का मानक शायद तब से आज कहीं ज्यादा बेहतर है, मूलभूत सुविधाएँ अधिक है, प्राथमिक विद्यालय की सँख्या तब से कई गुना आज ज्यादा है. यहाँ तक कि आज तकरीबन प्रत्येक कस्बों में प्राइमरी स्कूल मिल ही जाएगें. परन्तु अहम सवाल यह है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद भी प्राइमरी स्कूलों की हालत दिन प्रतिदिन क्यूँ बिगड़ती जा रही है...?<br />
<br />
एक अहम कारण यह भी:<br />
मुख्य बात यह है कि आज के कुछ दशक पहले समाज के अधिकतर लोग इन्हीं प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते थे. जहाँ से छात्र अपनी अपनी बुद्धिमत्ता के अनुसार अलग अलग क्षेत्रों में सफल भी होते थे. परन्तु आज समाज का अधिकतर बच्चा प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहा है , इसके विपरीत कुछ गिने चुने सामाजिक दबे कुचले गरीब लोगों के ही बच्चे आज प्राइमरी स्कूलों में आ रहे हैं. यकीनन हम यह कह सकते हैं कि प्राइमरी स्कूलों के अभिभावकों का अधिकांश तबका गैर-जागरूकता के साथ साथ गरीबी और भुखमरी से जूझ रहा है. यह तो वही बात हो गयी कि किसी को पूर्णतय: मक्खन निकाला हुआ दूध दिया जाए और कहा जाए कि अब तुम इससे मक्खन निकालों. आज के प्राइमरी स्कूलों की हालत यही है. पहले प्राइमरी स्कूलों में शुद्ध दुग्ध रूपी छात्र आते थे, जिनसे घी, मक्खन, दही, मट्ठा ( ड़ाँक्टर, इँजी०, नौकरशाह...) सब बनाए जाते थे और आज पहले से ही दूध से सब कुछ निकालकर प्राइमरी स्कूलों को अशुद्ध दूध दिया जा रहा है और कहा जा रहा है कि अब तुम इससे घी, मक्खन, दही और मट्ठा निकालों. क्या यह जमीनी तौर पर सम्भव है ? शायद कभी नहीं.<br />
<br />
सामाजिक लगाम की कमी:<br />
दूसरी अहम बात यह है कि दशकों पहले जब समाज के प्रत्येक तबकों के बच्चे इन्हीं प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते थे, तो समाज की लगाम भी इन प्राइमरी स्कूलों पर रहती थी. हर अभिभावक प्राइमरी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान रखते था, क्योंकि उनके पास ये स्कूल ही शिक्षा प्राप्ति के मुख्य विकल्प हुआ करते थे. सामाजिक सहभागिता के चलते ही शिक्षक भी अपने अध्यापन कार्य को पूर्ण इमानदारी और निष्ठा पूर्वक करते थे. आज दिशाहीन सत्ता ने शिक्षा का व्यवसायीकरण करके समाज के मध्यम एवं उच्च तबकों के लिए कई प्रकार के विकल्प तैयार कर दिए. रईसों और सुविधा सम्पन्न घरानों के बच्चे बड़ी बड़ी अकादमियों, पब्लिक स्कूलों और प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने लगे. अत्याधुनिकता भरे दौड. भाग वाले दौर में स्वकेन्द्रित समाज आज कस्बों की इन प्राइमरी स्कूलों की तरफ देखता भी नहीं है. खैर किसी से मतलब ही क्या है ? उनका बच्चा तो आलीशान स्कूल में पढ़ ही रहा है. शेष गरीब, अशिक्षित और गैर जागरूक समाज दो वक्त की रोटी में इतना व्यस्त है कि यदि एक दिन भी मजदूरी न करे तो खाए क्या ? लाजमी है कि इस तबके को शिक्षा में कोई खासी रूचि नहीं है. एक बार जैसे तैसे करके बच्चे का दाखिला प्राइमरी स्कूल में करा दिया, सर का भार उतार लिया और यह मान बैठा कि अब तो सरकार कापी-किताब, ड़्रेस, मिड़ ड़े मील और छात्रवृत्ति देगी ही. परिस्थितियों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि आज प्राइमरी स्कूलों से सामाजिक लगाम पूर्णरूपेण हट चुकी है, जिसका नतीजा हमारे सामने है. शिक्षक भी भयहीन होकर स्वयं को सरकारी दमाद समझ बैठे हैं. देर से विद्यालय आना , जल्दी जाना और कई बार तो बिना छुट्टी ही विद्यालय से नदारद रहना अपनी दिनचर्या समझ बैठे है. खैर मास्टर साहब ! आप स्वयं विचारिए कि यदि आप दूसरे के बच्चे का भविष्य गर्त में ढ़केलेगें तो आपके बच्चे का भविष्य कितना अच्छा होगा, इसको आप स्वयं सोच सकते हैं ?<br />
<br />
जन जन की जिम्मेदारी :<br />
अभी हाल में ही मै व्यक्तिगत रूप से प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के कई प्राइमरी स्कूलों में गई और वहाँ के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों से अपने विचारों का आदान प्रदान की. कुछ शिक्षकों जिनमें ड़ा विष्णु मिश्रा, कैलाश नाथ मौर्या, नागेश पासी, अमित लाल वर्मा समेत अन्य कई शिक्षकों से खास बातचीत भी की, प्राइमरी स्कूलों की बदहाली के सम्बंध में कुछ नए पहलू भी सामने उभरकर आए. जो निम्नवत् हैं-<br />
1- शिक्षा का व्यवसायीकरण होना.<br />
2- समाज का प्राइमरी स्कूलों से अंकुश हटना.<br />
3- वर्तमान में समाज के सिर्फ दबे, कुचले , निम्न वर्ग के बच्चों का प्राइमरी स्कूलों में जाना.<br />
4- प्राइमरी स्कूलों और शिक्षकों पर सत्ता एवं शासन तंत्र का कानूनी लगाम लचीला होना.<br />
5- समाज के अधिकतर लोगों की सोच का स्वकेन्द्रित होना.<br />
6- भ्रष्टाचार के चलते नीतियों का ठीक ढ़ंग से जमीनी स्तर पर संचालन न होना.<br />
7- बदलते आधुनिक जमाने के मुताबिक प्राइमरी स्कूलों और उससे जुड़ी नीतियों में सकारात्मक बदलाव न होना.<br />
<br />
आइए बदलाव करें :<br />
अहम बात यह है कि किसी भी चीज की बेहतरीकरण में जन जन की सहभागिता अति आवश्यक है और देश भी आगे तभी बढ़ेगा, जब समाज का अन्तिम जन आगे बढ़ेगा. हम अधिकतर इंसान स्वयं के विषय में दिन रात सोचते रहते हैं, आप ही बताइए की क्या यह सच्ची मानवता है ? आप की थोड़ी सी भागीदारी समाज को एक नई दिशा दे सकती है. बस आवश्यकता सिर्फ शुरूआत करने की है, आप देखेंगे कि स्वयं सेवा का कारवां बढ़ता जाएगा, समाज बदलता जाएगा, देश खुद-बखुद आगे बढ़ता जाएगा. सच मानिए , उस वक्त हमें 'देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है' जैसे नारों की ढ़िढ़ोरा पीटने की जरूरत ही नही रहेगी. देर मत कीजिए, आप भी अपने कस्बे के प्राइमरी स्कूलों में जाइए, उन पर नज़र रखिए और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने हेतु हर सम्भव प्रयास कीजिए. शायद इससे बड़ी देश सेवा आपके लिए कुछ भी नहीं हो सकती है. सो रहे सरकारी तंत्र और समाजिक नुमाइंदों को जगाइए. सरकार भी गली मुहल्लों में थोक के भाव चल रहे प्राइवेट स्कूलों को तय मानक के मुताबिक न होने पर उनकी मान्यता रद्द करे और उन पर नकेल कसे. कुछ नई पहल ऐसी भी प्रारम्भ करे, जिससे समाज के प्रत्येक तबके के बच्चे प्राइमरी स्कूलों में विद्यार्जन करना ज्यादा पसन्द करें. प्राइमरी स्कूलों को अत्याधुनिक बनाने पर बल दिया जाए, नवोदय और केन्द्रीय विद्यालय जैसे ही कई और विद्यालयों की स्थापना की जाए. प्राइमरी स्कूलों की ही तर्ज पर प्राइमरी अंग्रेजी माध्यम स्कूल भी खोले जाए. निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि देश की दिशा दशा तय करने वालें इन प्राइमरी स्कूलों के साथ जन जन जुड़कर अन्तिम जन को अग्रसित करने में अपना बहुमूल्य योगदान दें, ताकि राष्ट्र समग्रता की ओर बढ़े और गौरव का परचम लहराए.<br />
<br /></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-35855833855136111742017-01-22T03:03:00.000-08:002017-01-22T03:03:48.545-08:00नज़र नहीं, नज़रिया बदलिए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTkgLHgiocB94sXjKDTo3YJQoljEqK9Q0atR-PRemdswuj7-JfrUG_Eh_IlW4GGVNnMLtWce3JJPHWiwNdJ5Gsd_u9TGDuXgqglV_kQEoVUKBnGBovaDrFPMEhj7dmisPLR3b0K9RoYuw/s1600/images+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="224" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTkgLHgiocB94sXjKDTo3YJQoljEqK9Q0atR-PRemdswuj7-JfrUG_Eh_IlW4GGVNnMLtWce3JJPHWiwNdJ5Gsd_u9TGDuXgqglV_kQEoVUKBnGBovaDrFPMEhj7dmisPLR3b0K9RoYuw/s320/images+%25281%2529.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
वास्तव में हम सबके पास प्रभु प्रदत्त अतुलनीय सुन्दर काया और अद्वितीय चिन्तनशील मस्तिष्क है. इसके लिए हम सबको उस परमपिता परमेश्वर को शुक्रिया अदा करना चाहिए. जीवन, मरण, यश, अपयश यह सब तो निश्चित ही है, परन्तु जरा विचार कीजिए कि हमारा जन्म माँ भारती के इस पावन गोद में ही क्यूँ हुआ ? पृथ्वी के अन्य सुदूर देशों में भी तो हो सकता था? पल हरपल भौतिकता की होड़ में स्वयं को अग्रसित पाने हेतु हम लोग अपना एक एक बहुमूल्य पल व्यतीत करते जा रहे हैं. मगर क्या हमने कुछ वक्त निकालकर इस पर विचार किया कि जो भी पल व्यतीत हो रहा है, इसका हम कितना सार्थक उपयोग कर रहे है ? आखिर ऐसा क्यूँ होता है कि हममें से ही कुछ लोग अपने सीमित जीवनकाल में प्रतिपल का सदुपयोग करके माँ भारती के गौरव का परचम लहराकर अपने किए हुए कार्यों को आदर्श रूप में समाज के सामने प्रस्तुत कर जाते हैं ? मगर अधिकतर लोग इस जीवन के मर्म को समझ तक भी नहीं पाते हैं.<br />
<br />
गौरतलब है कि जीवन की सार्थकता और दूरदर्शिता से जुड़े अधिकांश सवालों का जवाब ढ़ूढ़ने पर अधिकतर लोग परिस्थितियों को दोषी ठहराकर आसानी से सही जवाब देने से बच निकलते हैं. कुछ एक लोग ऐसे भी मिलते है जो अधिकतर बातों को जानते तो है मगर स्वयं को उसके अनुरूप ढ़ाल नहीं पाते. हमें उन लोगों पर गर्व है, जो लोग लोक-लज्जा, घृणा, कुविचार, व्यसन, लोभ को त्यागकर अपने प्रतिपल का सदुपयोग करके मानव, मानवता व माँ भारती के अखण्ड़ सेवक बनकर सतत् आगे बढ़ते जाते है. हममें और उनमें फर्क इतना ही है कि वो दूरदर्शिता और सुविचारों के माध्यम से जीवन के मर्म को समझ लेते है और हम अधकचरी लोलुप भौतिकता में मशगूल होकर अपना सारा जीवन गवाँ बैठतें हैं.<br />
<br />
विशेष ध्यातव्य है कि यदि हमें इतिहास रचना है तो अपने अवचेतन मन में पागलपन और जिद के कुछ बीज बोने ही पड़ेंगे. कोई भी इंसान जन्म से ही विद्वान और आदर्श नहीं रहता और यदि ऐसा हो जाए तो वह पहले से ही पूर्ण हो जाएगा, फिर तो जीवन में कुछ नया करने की इच्छाशक्ति जागृत होगी ही नही. आपने शिक्षा प्राप्त की है या नहीं ?, धनार्जन किया है या नहीं ?, खुशियाँ समेंटी है या नहीं ?...अब तक आपके साथ क्या हुआ उन सबको छोड़िए, आज से आप एक नई स्फूर्ति के साथ कुछ कर गुजरने की ठान लीजिए. सच मानिए, जैसै जैसे आपके कदम बढ़ते जाएगें, वैसे वैसे आपको एक असीम संभावनाओं वाला संसार नजर आने लगेगा, खुशियाँ दिन दूना रात चौगुना मिलती जाएगी, अनन्त ऊर्जा खुद-बखुद आप में समाहित होती जाएगी. बस आपको स्वयं पर विस्वास रखकर यह अच्छी तरह से जान लेना है कि सपने साकार करने के लिए जिन चीजों की जरूरत है, वह सब आपके पास मौजूद है.<br />
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एक बार एक गाँव में बूढ़ा बैल भटकते भटकते कुएँ में आ गिरा. उसकी मर्म अवाज सुनकर लोग कुएँ तक आते और देखकर चले जाते. उसकी बुढ़ापी अवस्था को देखकर कोई उसको निकालने के लिए सोचता भी नहीं था क्योंकि अब वह उपयोग में लाए जाने योग्य नहीं था, बैल लगातार भूख प्यास से व्याकुल होकर चिल्लाता रहा. धीरे धीरे उसकी आवाज धीमी पड़ती गई. अन्ततः गाँव के मुखिया ने उसको निकालने के बजाय कुएँ में ही दफनाने का निर्णय लिया. मुखिया ने सभी गाँव वालों को फावड़ा लेकर कुएँ के समीप एकत्रित किया. लोग उस कुएँ में एक एक फावड़ा मिट्टी ड़ालने लगे. मिट्टी ड़ालते ड़ालते कुआँ तकरीबन भरने वाला था तभी किसी की निगाह कुएँ में गई तो बैल तो दबा ही नहीं था बल्कि वह ऊपर आ चुका था. जैसे जैसे लोग कुएँ में फावड़े से मिट्टी ड़ाल रहे थे, वैसे वैसे बैल पीठ हिलाकर मिट्टी छाड़कर एक कदम आगे बढ़ जाता था. जैसे ही कुआँ भरने की कगार पर था तो बैल अचानक कूदकर बाहर आ गया. लोग इस वाकये को देखकर दंग रह गए.<br />
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कहानी का निष्कर्ष यह है कि दुनियाँ में अधिकतर लोग आपको निरर्थक समझकर आप पर कीचड़ उछालेंगे, पथभ्रष्ट करेंगे, दबाने का प्रयास करेंगे, यहाँ तक कि आपको गर्त में ढ़केल देंगे. मगर आपको इन कठिनाइयों से गुजरकर कदम दर कदम आगे बढ़ते ही जाना है. परिस्थितियों पर रोना छोड़ना पड़ेगा. एक नई स्फूर्ति, दूरदर्शिता और खुले मस्तिष्क से स्वयं को सत्कर्म हेतु न्यौछावर करना ही होगा. आपको अपार खुशियाँ, अनन्त ऊर्जा और एक नई दुनियाँ मिलेगी, जिसकी आपने अभी तक कल्पना भी नहीं की होगी.<br />
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हम गौर करें तो पाएगे कि वर्तमान परिप्रेझ्य में अपार सम्भावनाएँ हैं. मगर आवश्यकता उनको शीघ्र समझकर अपनी सम्पूर्ण सार्थक ऊर्जा सत्कर्मों के निमित्त न्यौछावर करने की है. मुख्यतः हमें अपने चारो ओर एक सकारात्मक माहौल बनाते हुए बढ़ते जाना है. हाँ यह जरूर है कि थोड़ा वक्त जरूर लग सकता है मगर सफलता जरूर मिलेगी.<br />
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उपरोक्त परिप्रेझ्य में कुछ आवश्यक बिन्दु निम्न हैं-<br />
1 - आत्मचिंतन करें एवं स्वयं को समझें.<br />
2 - स्वयं के प्रति इमानदार बनें.<br />
3 - पुस्तकों को मित्र बनाएँ.<br />
4 - समय की उपयोगिता समझें.<br />
5 - लझ्य निर्धारित करें.<br />
6 - प्रत्येक छण को अन्तिम छण समझकर जियें.<br />
7 - असफलता से सीख लें.<br />
8 - कुसंगति, व्यसनों और कुविचारों से बचें.<br />
9 - आन्तरिक चेतना जागृत करें.<br />
10 - आधुनिकता के साथ साथ अपनी गौरवपूर्ण संस्कृति को समझें.<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-47996641314931939282017-01-22T02:58:00.003-08:002017-01-22T02:58:40.479-08:00 किंनर उपेक्षा नही, सम्मान के पात्र है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7M9pCgnYkUt-uSGDOqevvwc2eZtwp6lCvKS8nruB5E9_XHRJGM_A4GwpTyjE7_uJsLdqBR1h8zaNzxR-IPGT-sWWay-nBku8nMWnnPls6X1yn3qvT7ut4a49VVUGJkNqW_JrBgVr2PqI/s1600/unnamed+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="219" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7M9pCgnYkUt-uSGDOqevvwc2eZtwp6lCvKS8nruB5E9_XHRJGM_A4GwpTyjE7_uJsLdqBR1h8zaNzxR-IPGT-sWWay-nBku8nMWnnPls6X1yn3qvT7ut4a49VVUGJkNqW_JrBgVr2PqI/s320/unnamed+%25281%2529.jpg" width="320" /></a></div>
किं + नर, यानी जिनकी योनि और आकृति पूर्णतः मनुष्य की न मानी जाती हो. इनकी उत्पत्ति के सम्बंध में भिन्न भिन्न अध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक मत है. यदि हम ऐतिहासिक तह में जाएँ तो किंनर हिमालय के आधुनिक कन्नौज प्रदेश की पहाड़ी पर निवास करने वाले लोगो का समूह था, जिनकी भाषा कन्नौरी थी. मुख्यतः ये हिमालय में रहने वाले ऐसे लोग थे, जिनमें भागौलिक और रक्तगत विशेषताओं के कारण स्त्री-पुरूष भेद आसानी से नही किया जा सकता था. अध्यात्म इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा की छाया या उनके पैर के अगूँठे से उत्पन्न हुआ मानता है और अरिष्टा एवं कश्यप को इनके आदिजनक के रूप में स्वीकार करता है. आज यदि हम ऐतिहासिक एवं पौराणिक आख्यानों का इनके मूल में जाकर एक साथ अवलोकन करें तो आसानी से समझ सकते है कि हिमालय में निवास करने वाले भगवान शिव के अवतार अर्द्धनारीश्वर के उपासक, गायन-नर्तन-वादन में पारंगत एवं प्रभु प्रदत्त अद्वितीय कला एवं गुणों वाले लोगो का समूह किन्नर था.<br />
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<b>वर्तमान स्थिति : </b><br />
आज किंनर समाज की स्थिति अत्यन्त उपेक्षित एवं दयनीय है. मुख्य धारा से बिल्कुल अलग-थलग गुजर बसर करने पर यह समाज मजबूर है. सवाल शायद आपको पसन्द न आए, पर फिर भी इसका जिम्मेदार कौन है ....???. कोई और नही, बल्कि हम लोग स्वयं ही है. यहाँ तक कि जन्म दिया हुआ माँ-बाप भी करूणा, मोह और इंसानियत को ताक पर रखकर उनको अस्वीकार कर देता है. यद्यपि हम गौर करें तो पाएगें कि इस अखिल ब्रह्माण्ड़ का प्रत्येक जीव एक पारिवारिक माहौल में पलता, बढ़ता और रहता है. मगर परमात्मा की अद्भुत कृति किंनरों के साथ बिल्कुल इसका विपरीत ही देखने को मिलता है. ऐसा क्यूँ....???<br />
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<b>मूल का अवलोकन:</b><br />
गौरतलब है कि इस अखिल ब्रह्माण्ड़ का कारण तो परमपिता परमेश्वर ही है. हम सब यहाँ निमित्त मात्र हैं. हाँ यह जरूर है कि चेतन जीव होने की वजह से हम किसी के जन्म का माध्यम तो बन सकते है, परन्तु जन्म देने वाला नहीं. जरा गौर कीजिए कि किसी का जन्म अत्यंत गरीब घर में तो किसी का अत्यंत धनवान के घर में , किसी का जन्म भारत में तो किसी का दुरूह देशों में, कोई स्त्री तो कोई पुरूष या फिर कोई किंनर आदि आदि भिन्नता में जन्म लेते हैं, तो इसमें जन्म लेने वाले की क्या गलती है ? जब हम जन्म देने वाले नहीं हैं तो किंनर होने का ख़ामियाजा देने वाले कौन है हम ...??? वास्तव में हम इसके अधिकारी हैं ही नहीं.<br />
<b><br /></b>
<b>किंनर के अद्वितीय गुणों की एक झलक:</b><br />
पौराणिक मतानुसार किंनरों को आशिर्वाद देने का अद्वितीय वरदान प्राप्त है. यही वजह है कि मांगलिक कार्यों में इनके आशिर्वाद को विशेष महत्वता दी गई है. इतना ही नहीं, इनके गायन-नर्तन-वादन की अद्वितीय कला ही समय समय पर लंकापति रावण से लेकर दरबारी राजाओं तक को आकर्षित करती रही है. ऐसा कहा जाता है कि प्रतापी एवं प्रकाण्ड़ विद्वान रावण के दरबार में जब किंनरों की सुर साधना गूँजती थी तो रावण अपने इष्टदेव को भी भूल जाता था.<br />
<b><br /></b>
<b>कुछ विशेष रोचक तथ्य :</b><br />
1- अध्यात्मिक विद्वानों का कहना है कि शायद ही ऐसा कोई पुराण हो जिसमें किंनरों की चर्चा न की गई हो. इतना ही नही, श्रीमद्भागवत महापुराण में 22 बार और श्री रामचरित मानस में 7 बार किंनर शब्द की आवृत्ति हुई है.<br />
2- श्री विष्णु सहस्त्रनाम में एक बार किंनर शब्द आता है, यानी विष्णु जी का एक नाम किंनर भी था.<br />
3- पुरूषोत्तम श्री राम चन्द्र जी के विवाह में मंगल कामना हेतु किंनरो ने भी अपना आशिर्वाद समर्पित किया था. जिसका वर्णन मानस में तुलसी दास जी ने किया है-<br />
"सुर किंनर नर नाग मुनीसा, जय जय जय कहि देहिं असीसा"<br />
4- महाभारत काल में भीष्म का काल बना शिखण्ड़ी और अपने अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने भी किंनर रूप धारण किया था. अज्ञातवास के दौरान अर्जुन की मुलाकात एक विधवा राजकुमारी से हुई. प्रेम सम्बंध की वजह से विवाह भी करना पड़ा. जिससे अरावन नाम की एक संतान हुई. जिसे आज भी किंनर समाज अपना पति मानता है.<br />
5- दक्षिण भारत में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला अट्ठारह दिवसीय विवाह पर्व, जिसे 'थाली' कहा जाता है. जिसमें किंनर अरावन को अपना पति मानकर व्याह रचाते है और एक दिन बाद ही अपना सुहाग तोड़कर स्वयं को विधवा मान लेते है.<br />
6- ज्योतिष की माने तो वीर्य की अधिकता से पुरूष तथा रक्त (रज) की अधिकता से स्त्री और जब वीर्य एवं रज समान हों तो किंनर की उत्पत्ति होती है.<br />
7- ज्योतिष का यह भी दावा है कि कुण्ड़ली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योग से व्यक्ति नपुंसक या किंनर भी हो सकता है.<br />
8- किंनर समाज मंगलमुखी कहा जाता है क्योंकि ये सिर्फ मांगलिक कार्यों में ही हिस्सा लेते है.<br />
9- इनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया गोपनीय है.<br />
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<b>किंनरों की आधार है सच्चाई:</b><br />
कहा जाता है कि जब किसी का सच्चाई आधार हो तो वास्तव में वो दुनियाँ की भीड़ से हटकर होता है. हाल ही में मुम्बई में आयोजित किंनरों को समर्पित श्रीराम कथा में किंनर अखाड़े के महामण्ड़लेश्वर श्री लझ्मी नारायण त्रिपाठी जी ने बताया कि किंनर समाज में चोरी को सबसे घोर अपराध माना जाता है और उन्होने इतिहास का जिक्र करते हुए यह भी बताया कि पंजाब स्थित गोल्ड़न टेम्पल की अस्मिता को बचाने में सैकाड़ो किंनर स्वयं सेवक बनकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, जिसका आज भी वहाँ प्रमाण मिलता है.<br />
<br />
<b>बदलाव की एक नज़र:</b><br />
सत्य, प्रेम, करूणा रूपी रस से जन जन को सिंचित करने वाले पूज्य श्री मोरारी बापू जी ने भगवान शिव के अवतार अर्द्धनारीश्वर स्वरूप के उपासक किंनर समाज को उनकी प्राच्य प्रतिष्ठा दिलाने के लिए निम्न बातों की पहल की.<br />
मुख्य धारा समाज-<br />
1- पारिवारिक परित्याग न हो.<br />
2- सामाजिक स्वीकार हो.<br />
3- राजकीय स्वीकार हो.<br />
4- धार्मिक स्वीकार हो.<br />
किंनर समाज-<br />
1- अधिकाधिक शिक्षा ग्रहण करें.<br />
2- आशिर्वाद रूपी प्रभुप्रदत्त वरदान को धन से न बेंचे और अनावश्यक जिद कम करें.<br />
3- गायन-नर्तन-वादन कलाओं का भरसक विकास करें.<br />
4- समता और एकता बनाए रखें.<br />
किसी किंनर ने यह बिल्कुल ठीक कहा था कि साहब ! किंनर का कोई मज़हब नहीं होता, हम सब उस परमात्मा की अद्वितीय संतान हैं.<br />
निष्कर्षतः हम कह सकते है कि यदि हम सब किंनर समाज को अपनाना शुरू कर दे तो यह समाज भी हमें पूर्ण सहयोग करेगा.<br />
<b><br /></b>
<b>नज़रिया बदलना होगा:</b><br />
आज हमारे समाज की सबसे बड़ी बिड़म्बना यह है कि बदलाव हर कोई चाहता है, परन्तु इस बदलाव की शुरूआत स्वयं को न करनी पड़ें. मैं आप सब से यह पूछना चाहती हूँ कि जिस कार्य को सदियों सदियों से किसी ने न किया हो, ऐसा कार्य करने में बुराई ही क्या है ...? यदि आप सचमुच बदलाव चाहते हैं तो पहले स्वयं को तो बदल कर देखिए, ज़माना न बदलने लग जाए तो कहना, हाँ यह जरूर है कि राह में अड़चनें तमाम आएँगी, अपमान का घूँट पीना पड़ेगा परन्तु हार न मानिएगा, एक दिन यही लोग आपको अपना आदर्श भी बनाएगें.<br />
आज सिर्फ हमारी वजह से हमारा किंनर समाज उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर है. यह कितने शर्म और दुःख की बात है. खैर आज तक जो हुआ सो हुआ, अब हमें अपने बीते कल को छोड़कर सम्मान की नज़रों से किंनर समाज को अपने साथ जोड़ने का हर सम्भव प्रयास करना होगा. भला इतना इमानदार और प्रभुप्रदत्त अद्वितीय गुणों वाला समाज आज तक उपेक्षित है, ऐसा क्यूँ....?? जरा सोचिए, उन्होंने किंनर योनि में जन्म लेकर ऐसी क्या गलती की, जिसका खाँमियाज़ा आज तक उन्हे भुगतना पड़ रहा है ? विनम्र निवेदन बस इतना है कि हम सब अपनी मानसिकता बदलकर किंनर समाज को अपनाएँ, तभी इस राष्ट्र का समग्र विकास सम्भव होगा.<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-21587324733900168042017-01-22T02:46:00.000-08:002017-01-22T02:46:22.170-08:00याद कीजिए ! आप अद्वितीय हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSIj6TJBgnPDYanrCZxrg90-8Sjc0kraI1HG8xeMHvsgAdzu_zaJ0BAyqPVOXCw1pyLJ7viG7s9FhqRdbWfJdFrGpO8-BZHmhLFpyH-V6LGJuOgQQ9ukwKVCwgI164wkW89zuR86N9gRI/s1600/images+%252818%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSIj6TJBgnPDYanrCZxrg90-8Sjc0kraI1HG8xeMHvsgAdzu_zaJ0BAyqPVOXCw1pyLJ7viG7s9FhqRdbWfJdFrGpO8-BZHmhLFpyH-V6LGJuOgQQ9ukwKVCwgI164wkW89zuR86N9gRI/s1600/images+%252818%2529.jpg" /></a></div>
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अद्वितीय यानी जिसके जैसा दूसरा न हो. इसे ही अंग्रेजी में यूनिक ( Unique ) भी कहा जाता है. खैर यह बिल्कुल सच भी है कि दुनियाँ का प्रत्येक प्राणी अद्वितीय है. यकीन मानिए आप जैसा न कोई इस दुनियाँ में हुआ है और आने वाले वक्त में न होगा ही. जरा गौर कीजिए, क्या इस दुनियाँ के सम्पूर्ण जड़ चेतन में कभी भी दो चीजें पूर्णतः एक जैसी दिखाई दी हैं ...?? शायद नहीं. परमात्मा ने प्रत्येक को एक अद्वितीय सामर्थ देकर अलग अलग कार्य के लिए भेजा है. कुल मिलाकर जीवन के मर्मों को समझने के लिए हमें अपनी अन्तःचेतना को केन्द्रित करना ही होगा. शायद यही वजह है कि सदियों से आज तक योग साधना में ध्यान को विशेष महत्वता दी गई है. अर्थात जब हम स्वयं से रूबरू हो जाएगें तो हमें जीवन में भौतिक लझ्य तलाशने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. हम स्वतः जीवन के मूल उद्देश्य को समझकर सन्मार्ग की ओर अग्रसर हो जाएगें.<br />
<br />
गौरतलब है कि आज अत्याधुनिकता के दौर में हम सारी दुनियाँ को जानने समझने की बात करते हैं और उसके लिए हर सम्भव प्रयास भी करते हैं. इतना ही नहीं, सच यह भी है कि समूची दुनियाँ गूगल-मय हो गयी है. मानो गूगल नाम के परिन्दें ने समूचे जड़ चेतन को अपने आप में समेट लिया है. यकीनन हम सब गूगल उपयोग करने में बड़ा फ़क्र महसूस करते हैं परन्तु उसके मूल को जानने की कभी कोशिश ही नहीं करते, जिसने ऐसे अनोखे गूगल का इज़ात किया. निश्चित रूप से वह भी हम जैसा मानव ही होगा. परन्तु उसमें और हममें खास फर्क यह है कि उसने स्वयं की क्षमता और ऊर्जा को समझा है. न जाने आज हम लोग क्यूँ दिन प्रतिदिन वास्तविकता से परे होकर काल्पनिक और क्षणिक भौतिकता में मशगूल होते जा रहे हैं....??<br />
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एक हास्यास्पद बात यह है कि जो स्वयं को नहीं समझ सकता, वो दुनियाँ को कितना समझ पाएगा...?? असल में हमारे जीवन यात्रा की शुरूआत स्वयं को समझने से होनी चाहिए. कई बार हमने देखा है कि जब लोग झगड़ते है तो कहते हैं कि तू मुझे नही जानता कि मै कौन हूँ और क्या कर सकता हूँ ? इसके जवाब में सामने वाला भी यही कहता है . वास्तविकता तो यह है कि वो दोनो स्वयं को नहीं जानते हैं और न ही जानने की कोशिश करते हैं.<br />
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जरा दिमाक की रील को पीछे चलाइए, कुछ वर्ष पहले आप एक पराक्रमी योद्धा थे और आपने अपने पराक्रम से वह युद्ध जीता भी था. वो भी आपकी जिन्दगी का एक पल था जब आप स्वयं को चौतरफा मुसीबतों से घिरा पा रहे थे. उस वक्त आपके सारे मौकापरस्त हम-दर्दियों ने आपसे दूरी बना ली थी. इन सबके बावजूद आप रण में अकेले खड़े थे. यह वही पल था, जिस वक्त आप खुद को क्षण मात्र के लिए समझ पाए थे. नतीजा भी साफ रहा कि आप विजयी हुए. घबराइए नही, अड़िग रहिए, कुछ नया सीखते हुए आगे बढ़ते जाइए, मुसीबतें जीवन में अन्तःशक्तियों को जागृत कर स्वयं को समझने का मौका देती हैं. शायद अगर आप आज उन पलों को याद करेंगे तो सहम उठेंगे और यह सोचनें पर मजबूर हो जाएगें कि वह मै ही था जो जिन्दगी की इतनी कठिन परीक्षा पास किया था. लेकिन अब आप उन परिस्थितियों से उबर चुके हैं. इससे सिद्ध होता है कि आप में अटूट सामर्थ्य है. बस एक बार फिर स्वयं की शक्तियों को समझना पड़ेगा.<br />
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यक़ीन मानिए, विश्व के सबसे सुपर कम्प्यूटर का मालिक अमेरिका नहीं बल्कि आप हैं. आपके दिमाक में लगा कम्प्यूटर हरपल आपका साथ देता है, रचनात्मकता लाने की पुरजोर कोशिश करता है. फिर भी आप इतने लाचार एवं बेवस क्यूँ .. ? क्यूँकि हमें दिमाक के सुपर कम्प्यूटर को आपरेट करना नहीं आता. क्या आपनें कभी गौर किया है कि अत्याधुनिकता के दौर में हमारे सुपर कम्प्यूटर को हम नहीं बल्कि कोई और चला रहा है. यहाँ तक कि हमारे इस कम्प्यूटर को समाज, भय, कल्पना आदि शक्तियाँ चला रहीं हैं.<br />
अब आपका समय है, जागिए, खड़े होइए और चलते ही जाइए. परमात्मा आपको कुछ नए मुकाम रचनें के लिए भेजा है. मुझे पूरा यकीन है कि आप वैसा सब कुछ कर जाएगे, जैसा और दूसरा कोई नहीं किया होगा. क्यूँकि आप अद्वितीय हैं.<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-67395074814543704962017-01-20T23:14:00.004-08:002017-01-20T23:14:49.830-08:00अण्ड़मान निकोबार द्वीप समूह : भौगोलिक झलक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBlolMPyJmNFSWr6NFIzb_oEKOwgvjcKZ6z78RkwuvogQbuJjdZpt2CBnvy9asgZCL8oo6jYEGY6GECdlCg5WtZ17b-cvEyfhAsa7kO1QjlyM0i97Fjt2IXG1j4pPvGTLkpQiizvewLlE/s1600/images+%252817%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBlolMPyJmNFSWr6NFIzb_oEKOwgvjcKZ6z78RkwuvogQbuJjdZpt2CBnvy9asgZCL8oo6jYEGY6GECdlCg5WtZ17b-cvEyfhAsa7kO1QjlyM0i97Fjt2IXG1j4pPvGTLkpQiizvewLlE/s1600/images+%252817%2529.jpg" /></a></div>
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उत्तर पूर्व दिशा से दक्षिण पूर्व बंगाल की खाड़ी तक तकरीबन 572 छोटे बड़े द्वीप समूहों को स्वयं में समेटे हुए अण्ड़मान निकोबार द्वीप समूह 8249 वर्ग किमी में पसरा हुआ है. इतना ही नहीं, उत्तर पूर्व से दक्षिण पूर्व तक तकरीबन 780 किमी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराये हुए है. वास्तव में अण्ड़मान निकोबार द्वीप समूह हिमालय पर्वत की श्रृंखला बनकर बंगाल की खाड़ी तक बिखरकर अराकन योमा पर्वतमाला के रूप में विश्व क्षितिज पर प्राकृतिक सौन्दर्यता के लिए विख्यात है. प्राकृतिक सौन्दर्यता से भरा पूरा एवं धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला यह द्वीप समूह अपनी अद्वितीय सौन्दर्यता से हर एक को आकर्षित कर ही लेता है. चन्द्रमा की कोर नुमा बिखरे एवं समन्दर की गोद में समाये हुए इन टापुओं की खूबसूरती प्रत्येक की नग्न आँखों में एक नई ताज़गी भर देती है. यही वजह है कि साल 2004 में टाइम मैगजीन की ओर से राधानगर को एशिया का बेस्ट बीच बताया गया था।<br />
समूचा अण्ड़मान निकोबार द्वीप समूह तीन जिलों में विभाजित है-<br />
1 - साउथ अण्ड़मान<br />
2 - निकोबार<br />
3 - नार्थ एवं मिड़िल अण्ड़मान<br />
साउथ अण्ड़मान के अन्तर्गत दक्षिणी अण्ड़मान एवं लिटिल अण्ड़मान आते हैं. निकोबार जिला कारनिकोबार, नानकौरी, ग्रेट निकोबार व समन्दर में बिखरे अन्य कई द्वीपों को समाहित किए हुए है. नार्थ एवं मिड़िल अण्ड़मान जिले में दिगलीपुर मायाबन्दर , रंगत, कदमतला और बाराटाँग द्वीप समूह आते हैं.<br />
क्रान्तिवीरों की पुण्य भूमि कहा जाने वाला पोर्टब्लेयर, अण्ड़मान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी है. भारत के सबसे नजदीकी चेन्नई छोर से तकरीबन 1200 किमी दूर बंगाल की खाड़ी में शोभायमान यह द्वीप समूह सुमात्रा (इंड़ोनेशिया) से तकरीबन 137 किमी एवं पड़ोसी मुल्क वर्मा, थायलैण्ड़, बग्लादेश से भी अत्यंत करीब है. यह द्वीप समूह जहाँ एक ओर सदाबहार घनें जंगलों एवं प्राकृतिक सौन्दर्यता से भरा पूरा है, वहीं दूसरी ओर यहाँ के जंगल सभ्य मानव समाज के लिए किसी अजायबघर से कम नही है. ये द्वीप समूह ऊँचे नीचे होने के साथ साथ विभिन्न जयवायु एवं 85% से अधिक वन क्षेत्रों से सुसज्जित है. मई से अक्टूबर तक यहाँ भारी बरसात यानी तकरीबन 3180 मि.मी. जल वृष्टि होती है. अनेकों मूल्यवान वनस्पतियों से परिपूर्ण होने की वजह से ही यहाँ पर आयुर्वेदिक दवाओं के लिए बड़े पैमाने पर अनुसंधान चल रहा है.<br />
निग्रोव नस्ल के सेंटीनल, जरावा, ओंगी, ग्रेट अण्ड़मानी, मंगोली नस्ल के शोम्पेन तथा निकोबारी आदिम जनजाति एक साथ निवास करके विविधता में एकता कायम रखे हुए हैं. जिनमें आज भी पाषाणयुगीन मानव की झलक देखने को मिलती है. पर्यावरणीय दुर्लभता के साथ साथ कई विशेष प्रकार के पशु पक्षी एवं जीव जन्तु भी यहाँ पाए जाते है, जोकि विश्व में अन्यत्र कहीं नही मिलते हैं. यह भी एक खास वजह है कि ये द्वीप समूह शोधकर्ताओं को लगातार आकर्षित करते रहते हैं.<br />
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार देश के इन लोकप्रिय द्वीपों की आबादी 380381 है और इसका घनत्व 46 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर का है। यहां का लिंग अनुपात 1000 पुरूषों के मुकाबले 878 महिलाओं का है.<br />
इन द्वीपों की मुख्य भाषा निकोबारी है. हालांकि आधिकारिक भाषाएं जैसे हिंदी, बंगाली, तमिल, तेलुगु और अंग्रेजी भी यहां व्यापक रूप से बोली जाती हैं।<br />
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बैरन द्वीप पर भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। यह द्वीप लगभग 3 किमी. में फैला है। यहां का ज्वालामुखी 28 मई 2005 में फटा था। तब से अब तक इससे लावा निकल रहा है। भारत में मड-वोल्केनो (कीचड़ ज्वालामुखी) भी सिर्फ अंडमान में ही पाए जाते हैं. पंक (कीचड़) ज्वालामुखी सामान्यतया एक लघु व अस्थायी संरचना हैं जो पृथ्वी के अन्दर जैव व कार्बनिक पदाथों के अपक्षय से उत्सर्जित प्राकृतिक गैस द्वारा निर्मित होते हैं। गैस जैसे-जैसे अन्दर से कीचड़ को बाहर फेंकती है, यह जमा होकर कठोर होती जाती है। वक्त के साथ यही पंक ज्वालामुखी का रुप ले लेती है, जिसके क्रेटर से कीचड़, गैस व पत्थर निकलता रहता है।<br />
अंडमान और निकोबार के 572 द्वीपों का समूह अपने स्वच्छ पर्यावरण और पानी की साफ धाराओं के चलते किसी भी प्रकृतिवादी के लिए स्वर्ग से कम नहीं है. सैलानियों के लिए इस जगह के कुछ खास आकर्षणों में हरे भरे जंगलों से पटे अलग अलग पहाड़ी इलाके और समुद्री तट हैं. ये द्वीप अपनी एडवेंचर गतिविधियों जैसे स्कूबा डाइविंग, ट्रेकिंग, स्नाॅर्कलिंग, केंपिंग और अन्य जलक्रीड़ाओं के लिए भी जाने जाते हैं. भारत की मुख्य भूमि से अलग यह जगह तैरते एम्राल्ड द्वीपों और चट्टानों का समूह है. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह नारियल और खजूर की सीमा वाले, पारदर्शी पानी वाले, आकर्षक और खूबसूरत समुद्री तटों और उसके पानी के नीचे कोरल और अन्य समुद्री जीवन के लिए मशहूर हैं. यहां की प्रदूषण रहित हवा, पौधों और जानवरों की नायाब प्रजातियों की मौजूदगी की वजह से आपको इस जगह से प्यार हो जाता है.<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-34513561114643204722017-01-20T09:36:00.000-08:002017-01-20T09:36:51.364-08:00मतदान कीजिए, आपका मत महत्वपूर्ण है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjttnNWxJN2iGvfDFnonW_d8ztZ9HKkqmLGlBgJI3WFwjbqf5ekU6otgs1flOH4WCfSrrU3GzeKkjZ92QJe_UnRUh8_tEsnFkGrBlNwWSgYlGUxz4D2QjAPjo0gqpLvrW_hbR7EL5MgiKE/s1600/images+%25289%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjttnNWxJN2iGvfDFnonW_d8ztZ9HKkqmLGlBgJI3WFwjbqf5ekU6otgs1flOH4WCfSrrU3GzeKkjZ92QJe_UnRUh8_tEsnFkGrBlNwWSgYlGUxz4D2QjAPjo0gqpLvrW_hbR7EL5MgiKE/s1600/images+%25289%2529.jpg" /></a></div>
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किसी भी राष्ट्र के मजबूत लोकतंत्र के लिए उस राष्ट्र के प्रत्येक मत की अहम भूमिका होती है. हमारे द्वारा चुना गया राजनीतिक नुमाइंदा प्रत्यक्ष रूप से लोकतंत्र का एक हिस्सा बनकर सत्ता तक समाज की विषमताओं को उजागर करके उनका हल निकालता है. नतीजन् जनता, जनप्रतिनिधि और सरकार तीनों की भागीदारी से एक व्यवस्थित, आदर्श और श्रेष्ठ समाज का निर्माण होता है, जोकि हमारे सुन्दर वर्तमान एवं सुनहरे भविष्य के विकास में मील का पत्थर साबित होता है.<br />
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राष्ट्र के प्रत्येक नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने हेतु अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को मताधिकार कहते है. जनतांत्रिक प्रणाली में मताधिकार को विशेष महत्वता दी गई है, हम यह भी कह सकते है कि मताधिकार ही जनतंत्र की नीव है. अच्छी जनतांत्रिकता की परख भी इसी से होती है कि किस देश को कितना अधिक मताधिकार प्राप्त है. बड़े गौरव की बात यह है कि समूचे विश्व में भारतवर्ष सबसे बड़ा जनतांत्रिक देश है, क्योंकि हमारे यहाँ मताधिकार प्राप्त नागरिकों की संख्या सबसे अधिक है.<br />
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विशेष ध्यातव्य है कि मताधिकार प्रत्येक नागरिक की एक प्रकार की अद्वितीय स्वतंत्रता है. जिससे प्रत्येक नागरिक प्रत्यक्ष रूप से समाज और राष्ट्र के निर्माण में सहभागी होता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 325 व 326 के अनुसार "प्रत्येक वयस्क नागरिक को, जो पागल या अपराधी न हो, मताधिकार प्राप्त है". सबसे अहम बात यह है कि अनेकता में एकता की मिशाल पेश कर रहे देश में प्रत्येक नागरिक को मताधिकार प्राप्त है, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ण, सम्प्रदाय अथवा लिंग का ही क्यूँ न हो.<br />
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वह भी अपना एक अतीत था, जब हम अंगेजी हुकूमतों के चंगुल में फंसे हुए थे. उस वक्त मताधिकार प्राप्त करना एक बड़े गौरव का विषय होता था, क्योंकि आम आदमी को मताधिकार प्राप्त नहीं होता था. कुछ चुनिन्दा लोग, जो अंग्रेजी हुकूमतों के धनकुबेर, चम्चे और जयकार करने वाले लोग होते थे, उन्ही को मताधिकार प्राप्त होता था. इसका मुख्य यह था कि इन्हीं कुछ चुनिन्दा लोगों के बदौलत ही अंग्रेज फूट ड़ालकर हम पर हुकूमत चलाते थे. एक आकड़ा यह भी कहता है कि सन् 1935 के " गवर्नमेंट ऑफ इंड़िया ऐक्ट" के अनुसार महज 13 प्रतिशत जनता को ही मताधिकार प्राप्त था. अभी भी कुछ देश ऐसे है, जहाँ पर मताधिकार में रंग एवं जाति भेद बरता जाता है.<br />
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आमतौर पर हम लोग लोकतंत्रिक ढ़ाचें को लेकर तमाम बड़ी बड़ी बाते करते हैं. परन्तु यह अक्सर गौर नहीं करते कि इसका मूल क्या है. वास्तव में किसी भी राष्ट्र के लोकतंत्र की पूर्ण सार्थकता तभी है, जब शत प्रतिशत मतदान से जन प्रतिनिधि चुने जाए. परन्तु यह वही भारत देश है, जहाँ अभी तक कुछ हिस्सों में न्युनतम 20 प्रतिशत तो कुछ में अधिकतम 70 प्रतिशत मतदान हुए हैं. खैर एक बात यह साफ है कि शत प्रतिशत मतदान तभी हो सकता है, जब मतदान को अनिवार्य और आसान बनाया जाए. बुनियादी तौर पर अहम यह भी है कि लोग शिक्षित हों और जागरूक भी बनें.<br />
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बेल्जियम, स्विटजरलैण्ड़, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, अर्जेंटीना, आस्ट्रिया, साइप्रस, पेरू, ग्रीस, बोबीलिया, समेत दुनियाँ के तकरीबन 33 प्रजातांत्रिक देश ऐसे भी हैं, जहाँ मतदान शत प्रतिशत अनिवार्य है. इतना ही नहीं, कुछ देश तो ऐसे भी हैं जहाँ मतदान न करने पर सजा तक का प्रावधान है. सन् 1842 में मतदान को अनिवार्य कर बेल्जियम ने इस दिशा में पहला कदम उठाया था. 1924 में आस्ट्रेलिया नें इसे लागू किया. आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, सिंगापुर, तर्की, बेल्जियम अन्य तकरीबन 19 देशों में चुनाव प्रक्रिया लगभग भारत जैसी है. हाँ, इसके इतर यह जरूर है कि कुछ देशों में 70 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को अनिवार्य रूप से मतदान न करने की छूट मिली है.<br />
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यह बिल्कुल साफ है कि यदि हम मजबूत लोकतंत्र और राष्ट्र को उम्दा बनाना चाहते हैं तो प्रत्येक मतदाता को अपने मत का प्रयोग करना ही पड़ेगा. सन् 2005 में भाजपा के एक सांसद लोकसभा में 'अनिवार्य मतदान' सम्बंधी विधेयक लाए भी थे, परन्तु विपक्षी दलों ने यह कहते हुए नकार दिया था कि मतदान किसी को दबाव ड़ालकर नहीं कराया जा सकता और यह लोकतंत्र एवं उनकी स्वतंत्रता का हनन होगा.<br />
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मतदान के परिप्रेझ्य में एक अहम सवाल यह भी है कि हमारे देश में मतदाता सूची के खा़मियों के चलते लाखों लोग मतदान नहीं दे पाते हैं और लाखों लोग ऐसे भी होते है जिनका मतदाता सूची में नाम तो होता है परन्तु मतदाता पहचान पत्र नहीं होनें की वजह से वे मतदान नहीं दे पाते हैं. कई बार तो ऐसी खा़मिया भी पायी जाती हैं कि 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों का भी नाम मतदाता सूची में रहता है.<br />
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एक सीधा सा हल यह है कि हम सब अपने प्रत्येक मत की अहमियत समझें और दूसरों को भी समझाएँ. यह भी ध्यान रहे कि आपका यही एक मत राष्ट्र की दशा एवं दिशा तय करनें में महत्वपूर्ण साबित होगा. यदि आप के द्वारा चुनें हुए रहनुमा स्वच्छ छवि, इमानदार और योग्य होंगे तो देश का कोई भी नागरिक मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित नहीं रहेगा, नए नए आयाम रचे जाएगें, जो देश के गौरव को बढ़ाएगें. भ्रटाचार में कमी आएगी, जिससे राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था मजबूत रहेगी और राष्ट्र समग्र विकास की ओर अग्रसित रहेगा.<br />
<b><br /></b>
<b>आओ हम सब अलख जगाएँ लोकतंत्र के शान की,</b><br />
<b>जन जन को जागरूक बनाकर महत्वता बताए मतदान की,</b><br />
<b>लोकतंत्र मजबूत बनेगा शासन सत्ता सब सुधरेगा,</b><br />
<b>जन जन को आगे बढ़ने का निश्चित ही अधिकार मिलेगा,</b><br />
<b>गरीब, किसान और अन्तिम जन भी आगे बढ़ते जाएगें,</b><br />
<b>जागरूकता को हथियार बनाकर देश बदलते जाएगें,</b><br />
<b>बस अब एक विकल्प यही है जन जन अब मतदान करो,</b><br />
<b>योग्य, श्रेष्ठ और कर्मठ नेता को ही अपना प्रतिनिधि चुनो,</b><br />
<b><br /></b>
<b>वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्.....</b><br />
<b><br /></b>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-57268207208060144002017-01-17T07:44:00.000-08:002017-01-17T07:44:03.062-08:00दागी नेताओं की स्वच्छ राजनीति<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioHCQiWl50SMmQKDns7MfiD1VBxKLx54JwNT-FEJqUPpwrkKm-PPR8t5eVnHBWuNs0C8DLwqWfL4aSkgsnLlcK8IUDI8P-mMKn-IqLryeOKOY_kh1IEP-GzuvE3541A1tvYO48pOfeXEo/s1600/images+%25287%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioHCQiWl50SMmQKDns7MfiD1VBxKLx54JwNT-FEJqUPpwrkKm-PPR8t5eVnHBWuNs0C8DLwqWfL4aSkgsnLlcK8IUDI8P-mMKn-IqLryeOKOY_kh1IEP-GzuvE3541A1tvYO48pOfeXEo/s1600/images+%25287%2529.jpg" /></a></div>
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<b>एक नजरिया यह भी:</b><br />
राजनीति ( पॉलिटिक्स ) यूनानी भाषा के 'पोलिस' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है - समुदाय, जनता या समाज .आमतौर पर हम लोग जनता की नुमाइंदगी करके सत्ता तक पहुँचने, बड़ा ओहदा हथियाने , जनता और सरकार का बिचौलिया बनकर अपने छल बल से जनता का पैसा अपने खाते में पहुँचाने या फिर जनता को लुभावने सपने दिखाकर गुमराह करने को ही राजनीति समझते हैं. परन्तु यदि हम अतीत पर गौर करें तो पाएगें कि बीते जमानें में अफलातून ( प्लूटो ) और अरस्तु ( एरिस्टोटल ) जैसे महान चिंतको ने ऐसे प्रत्येक विषय को राजनीति कहा, जिसका सम्बंध पूरे समुदाय को प्रभावित करने वाले सामान्य प्रश्नों से है. खैर यह भी सत्य है कि प्रत्येक मानव प्राणी की आत्म-सिद्धि के लिए समाजिक जीवन में सहभागिता आवश्यक है. गर हम बुनियादी तौर पर कहें तो मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है. इसका मतलब यह है कि हमारे रोजमर्रा की जिन्दगी में किया जाने वाला कार्य भी राजनीति का एक हिस्सा होता है. फर्क बस इतना है कि हमारे राजनीतिक कार्य राष्ट्र राजनीति न होकर स्वयं के लिए आत्म राजनीति होती है, जो हमें दिन प्रतिदिन सम्भालती है, सँवारती है और एक अच्छा इंसान बनाकर बेहतर जीवन की ओर अग्रसित करती है.<br />
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<b>कुछ प्रेरक विचार :</b><br />
1- बर्नार्ड़ क्रिक - राजनीति ऐसा क्रिया कलाप है जिसके द्वारा शासन के किसी खास इकाई के अन्दर आने वाले अलग अलग हितों को, सम्पूर्ण समुदाय की भलाई और अस्तित्व के लिए उनके अलग अलग महत्व को ध्यान में रखते हुए, उसी अनुपात में सत्ता में हिस्सा देकर उनके बीच सामंजस्य स्थापित किया जाता है.<br />
2- उदारवादी दृष्टिकोण - राजनीति सामंजस्य की खोज की एक प्रक्रिया है.<br />
3- राबर्ट ए. डैड्ल - राजनीति वह व्यवस्था है जिसका सम्बंध नियंत्रण, प्रभाव शक्ति और प्राधिकार से होता है.<br />
4- रैफेल के अनुसार - राजनीति वह है, जिसका सम्बंध राज्य से होता है.<br />
5- पाल जैनेट के अनुसार - राजनीति समाज का वह अंग है जिसमें राज्य का आधार तथा सरकार के सिद्धान्तों पर विचार करके जनता के बीच सुचारू रूप से लागू किया जाता है.<br />
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<b>मौजूदा हालात:</b><br />
यकीनन् हम यह कह सकते हैं कि आज आजाद भारत में राजनीति को अपना हथियार बनाने वाले जनता के चुने हुए अधिकतर नुमाइंदें ओछी राजनीति करके अपना उल्लू सीधा करने में दिन रात लगे हुए हैं. इन्होनें अपने काले करतूतों से स्वच्छ राजनीति की परिभाषा ही बदल ड़ाली है. आज तो राजनीति को साम्प्रदायिकता का जामा पहनानें का नया दौर चल रहा है. राजनीति में अपने को प्रबुद्ध वर्ग मानने वाला तबका भी निजी स्वार्थ के लिए सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़नें के लिए तैयार बैठे हैं. जिधर देखिए, उधर बस भाषा, परिधान व नये नये वादों को हथियार बनाकर भारत की भोली भाली जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. हर एक राजनीतिक व्यक्ति सेक्युलर बनने की होड़ में "अल्पसंख्यक राजनीति " का सहारा ले रहा है. नतीजन आज स्थिति अत्यन्त भयावह है, साफ़ सुथरी छवि वाले राजनीतिक लोगो की सँख्या हाशिए पर आ खड़ी है. जरा सोचिए , जिस देश में जनता के चुने हुए नुमाइंदे ही दागदार हों, तो उस देश की राजनीति कितनी स्वच्छ होगी......???<br />
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<b>जरा शर्म करो : </b><br />
अपने उस वक्त को याद कीजिए, जब आप जनता को गुमराह करके सत्ता के गलियारों में पहुँचने में सफल हो जाते हैं. हत्या, चोरी, भ्रष्टता आदि आरोपों में घिरे होने के बावजूद भी जनता ने आपको एक मौका दिया है. वह आप ही तो थे, जो जाति धर्म को दरकिनार करके अपने निजी स्वार्थ के लिए लोगों की चरण वन्दना करते दिख रहे थे. उस वक्त क्या आपको शर्म नहीं आती है, जब आप सरपंच, विधायक, सांसद या ओहदेदार पद के लिए निष्ठा, इमानदारी व देशप्रेम की शपथ ले रहे होते हैं ? आपका अतीत और भविष्य दोनों इसके विपरीत ही रहने वाला है. क्या यह बापू या फिर मिसाइल मैन के सपनों का भारत है ? मंत्री, अफसर, धन्नासेठ सब अर्थजगत के शीर्षस्थ स्वामियों के हाथ की कठपुतली नज़र आते है. जनता के खून पसीनों के पैसों से मौज मस्ती व पानीदारी दिखाने वाले दागी नेताओं को शर्म से ड़ूब मरना चाहिए. आपका शायद एक सूत्री एजेण्ड़ा है कि अन्याय व अत्याचार से धन इकट्ठा करके चुनाव लड़ना, साम-दाम-दण्ड़-भेद अपनाकर कुर्सी हासिल करना और फिर घोटाला करके पैसों को स्विस बैंकों में भरना. याद रखिए ! नेता जी इसका हिसाब आप ही चुकता करोगे, जनता तो जवाब देगी ही, उससे कहीं अधिक वक्त बखूबी आपको सबक सिखाएगा. परन्तु मुझे यकीन है कि आप फिर भी जस के तस रहोगे, क्योंकि आप निर्लज्य हो. ऐसे भ्रष्ट नेताओं पर हमें धिक्कार है, धिक्कार है....!!<br />
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<b>अतीत कुछ यूँ था:</b><br />
वह भी एक वक्त था, जब लोग राष्ट्र को सही दिशा में ले जाने हेतु जान की बाजी खेलने तक को तैयार थे. इसके एक नहीं , सैकड़ो उदाहरण हमारे सामने हैं. राष्ट्र प्रेमी नेताओं के मन में एक अटल संकल्प था कि हम वतन के गौरव को शीर्ष पर पहुँचा कर ही दम लेंगे. ये वही क्रान्तिकारी राजनेता थे जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता को बेड़ियों से मुक्त कराया. 'तुम मुझे खून दो, मै तुम्हें आजादी दूँगा', ' जय जवान जय किसान', 'हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान', ' भारत माता अमर रहें , हम दिन चार रहें न रहें'..... के नारे और संकल्पों को साकार करने वाले नेताओं के बाद देश में उनके जैसा दूसरा नेता न होना बड़े दुर्भाग्य और दुःख की बात है. आज भारत माता अन्याय व अत्याचार से लाचार होकर चीख़ रहीं हैं कि कहाँ गए वो महात्मा गाँधी, सुभाष चन्द्र बोष, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, चाचा नेहरू, अटल बिहारी वाजपेयी, ड़ा अब्दुल कलाम... जिन्होंने अपने समूचे जीवन को भारत माता के चरणों में न्यौछावर करके सार्थक राजनीति की एक मिशाल पेश की थी.<br />
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<b>फिर ऐसा क्यूँ :</b><br />
आजादी के कई दशक गुजर जाने के बाद भी रोटी के लाले क्यूँ ? नतीजन हजारो हजार लोग भुखमरी से मर रहें हैं.आम आदमी आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित क्यूँ ? बेरोजगारी का आलम इस कदर है कि कुछ लोगों को मजबूरी में अपनी रोजमर्रा चलाने के लिए वतन छोड़ना पड़ता है. अन्नदाता कहा जाने वाला किसान आत्म हत्याएँ कर रहा है, गरीबी से जूझ रहा है , फिर भी अपना खून पसीना एक करके हमारे लिए अन्न पैदा करता ही है. परन्तु अन्नदाता की स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है, ऐसा क्यूँ ? इस मुल्क के अधिकारी, राजनेता, कर्मचारी, व्यापारी, उद्योगपति यहाँ तक कि न्यायाधीश पर भी बिकने का आरोप लगा हो, इतना ही नहीं, यहाँ कुछ लोग ऐसे भी है जो दो वक्त की रोटी के लिए अपना खून बेचते फिरते है, आखिर ऐसा क्यूँ ? यह विशेष गौरतलब है कि मुल्क की अर्थव्यवस्था महज कुछ एक लोगों के हाथों सिमटती जा रही है, जोकि भविष्य के लिए बेहद चिंतनीय है.<br />
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<b>कुछ आप ही विचारिए:</b><br />
यह सर्वमान्य हैं कि व्यक्ति से बड़ा परिवार, परिवार से बड़ा समाज, समाज से बड़ा राष्ट्र होता है. आवश्यकता पड़ने पर परिवार के लिए स्वयं को, समाज के लिए परिवार को और राष्ट्र के लिए समाज को प्रत्येक पल समर्पित रहना चाहिए. मगर आज का मंजर बिल्कुल विपरीत है, लोग स्वयं को परिवार , समाज और वतन से भी ज्यादा ऊपर समझने लगे हैं. "वसुधैव कुटुम्बकम" की व्यापक विचारधारा वाला देश महज व्यक्ति विशेष तक सिमटता नज़र आ रहा है.<br />
यही वजह है कि राजनेता, अधिकारी , कर्मचारी, व्यापारी सब के सब भ्रष्टता में लिप्त दिख रहें हैं. स्वयं को इमानदार और गाँधीवादी बताने वाले लोग जनता की गाढ़ी कमाई से गुलछर्रे उड़ा रहे हैं. जिधर देखो उधर सिर्फ अवसरवादी, लोलुप, धूर्त लोगों का बोलबाला नज़र आ रहा है. स्थिति यह है कि सत्ता के गलियारों तक पहुँचने वाले अधिकतर राजनेता, राजनीतिक शुचिता और राजधर्म पालना से कोसों दूर नज़र आते है.<br />
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<b>स्वयं के विचार बदलिए:</b><br />
एक बात तो साफ है कि सत्ता की लौ में रोटी सेंकने वाले लोग स्वयं को नहीं बदल पाएगें, इसलिए आप ही उनको बदल दीजिए. वास्तविकता तो यह है कि इन नेताओं ने तो राजधर्म की परिभाषा ही बदल ड़ाली है. आलम यह है कि अधिकतर नेता राजधर्म को जानते तक नहीं हैं तो राष्ट्र सेवा ही कितना कर पाएगें ...?? रामचरित मानस में बाबा तुलसी दास जी ने बिल्कुल सटीक लिखा है कि "राजा वही हो सकता है, जो प्रजा को त्रिताप से मुक्त करे". चारो ओर परिवर्तन की अलख जग रही है, देर मत कीजिए, स्वयं के विचार बदलिए, नज़रिया तो स्वतः बदल जाएगा. स्वच्छ छवि, इमानदार, जुझारू, योग्य नेता चुनिए, जो समाज की विषमताओं को हुक्मरानों तक पहुँचाकर उसका निवारण करें, भारत माँ के गौरव को बढ़ाए और एक नई क्रान्ति लाए.<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-75645431854042369582017-01-06T20:53:00.002-08:002017-01-06T20:53:27.708-08:00ओछी आधुनिकता मानवीय मूल्यों की विध्वंसक है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgG37P0VVN1jHaNQpPSJdcgXCLlLPDxBR_QpdLyneBUKZ9xwr6rtju20i9gTzifDS9XMT_MdyI2oRO2oJyqEySobAuOhnkV5St3J6MRasbb-iQW6IJZYBYDgw6BuaBvKpRgW-F3jB6Edy4/s1600/images+%252813%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgG37P0VVN1jHaNQpPSJdcgXCLlLPDxBR_QpdLyneBUKZ9xwr6rtju20i9gTzifDS9XMT_MdyI2oRO2oJyqEySobAuOhnkV5St3J6MRasbb-iQW6IJZYBYDgw6BuaBvKpRgW-F3jB6Edy4/s1600/images+%252813%2529.jpg" /></a></div>
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आधुनिकता का अतीत:<br />
'अधुना' यानी यूँ कहें कि इस समय जो कुछ है, वह आधुनिक है. कुछ विचारकों की माने तो आधुनिक शब्द की व्यत्पत्ति पॉचवी शताब्दी के उत्तरार्ध में लैटिन भाषा के 'माँड़्रनस' ( Modernus ) शब्द से हुई, जिसका प्रयोग औपचारिक रूप से तत्कालीन समय में इसाई और गैर-इसाई रोमन अतीत से अलग करने हेतु किया गया था. उसके बाद इसका प्रयोग प्राचीन की जगह वर्तमान को स्थापित करने हेतु किया गया, जो यूरोप में उस समय उत्पन्न हो रहा था, जब नए युग की चेतना प्राचीन के साथ नए सम्बंध के माध्यम से नया आकार ग्रहण कर रही थी. अधिकतर विद्वान इस मान्यता पर एकमत दिखायी देते है कि आधुनिकता की शुरूआत यूरोप में हुई. इसलिए अक्सर आधुनिकता को 'पश्चिमीकरण का पर्याय' माना जाता है. लोगो को सचेत करते हुए अमृतराय जी लिखते है कि "आधुनिकता के लिए हरदम यूरोप और अमेरिका की तरफ टकटकी लगाए रहना बेतुकी बात है, आधुनिकता किसी देश की बपौती नही है".<br />
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अवधारणा :<br />
आमतौर पर हम लोग आधुनिकता का सम्बंध आधुनिक युग से समझते हैं, जबकि यह एक विशिष्ट अवधारणा की निर्णायक है. वास्तव में आधुनिकता हमें अज्ञानता एवं तर्कहीनता से मुक्त कराकर एक प्रगतिशील बौद्धिक मंच प्रदान करती है. इतना ही नहीं, यह हमें एक खुली स्वतंत्रता प्रदान करती है, जिसके द्वारा हम अपने बहुआयामी बौद्धिक विचार आसानी से दुनियाँ के सामने रखकर प्रयोगिक रूप से कुछ सकारात्मक बदलाव ला सकते है. परन्तु आज हमारे सामने अहम सवाल यह है कि क्या हम सब आधुनिकता को सही मायनें में आत्मसात् कर रहें हैं ...?? क्या यह सच नही कि ओछी आधुनिकता मानवीय मूल्यों की विध्वंसक बन गई है...?? आज आधुनिकता महज दिखावा, अश्लीलता, फूहड़पन और अज्ञानता में सिमटती नज़र आ रही है. हम लोग अपने विवेक का प्रयोग किए बिना कुसंस्कृति एवं संस्कार को अपनाने की होड़ में जद्दोजहद कर रहे है. जोकि यह हमारे वर्तमान एवं भावी समाज के लिए अत्यंत घातक है.<br />
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कुछ बौद्धिक चिंतन :<br />
1- महान विचारक एंथोनी गिंड़ेस के अनुसार - आधुनिकता का सम्बंध विश्व के प्रति एक खास दृष्टिकोण से है, मुख्यतः मानव हस्तक्षेप द्वारा ऐसे विश्व का विचार रखना, जो सकारात्मक परिवर्तन के लिए तैयार हो.<br />
2- विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक मार्क्स के अनुसार - Modernity is the emergence of capitalism and the revolutionary bourgeoisie, which led to an unprecedented expansion of productive forces and to the creation of the world market.<br />
3- मार्क्स बेबर - Modernity is closely associated with the processes of rationalization and disenchantment of the world.<br />
4- योग गुरू बाबा रामदेव के अनुसार - आधुनिकता के साथ साथ अध्यात्मिकता के समग्र समन्वय से ही सार्थक बदलाव सम्भव है.<br />
5- वर्तमान युवा लेखक एवं समाजिक चिंतक शिवम तिवारी के अनुसार- अध्यात्मिकता ही आधुनिकता की मूल है.<br />
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विशेष गौरतलब है कि वो भी एक दौर था, जब अंग्रेज हमारी भारतीय संस्कृति और मूलभूत सोच को बदलने के लिए ओछी आधुनिकता का लुभावना देकर अंग्रेजी और कुसंस्कृतियों का बीज बो रहे थे, तो आधुनिक भारत के महान चिंतक, समाज सुधारक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने लोगों को 'वेदों की ओर लौटो' का नारा देकर सच्ची आधुनिकता दिखाने का श्रेष्ठ कार्य किया था. राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी जी ने भी स्वदेशी पद्धति द्वारा आधुनिकता अपनाने पर बल दिया था.<br />
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वर्तमान स्थिति :<br />
बिड़म्बना यह है कि आज का मानव आधुनिकता को महज स्वच्छंदता ही समझ बैठा है. जरा कल्पना कीजिए कि भौतिक स्वच्छंदता हमारे मूलभूत विचार, रहन-सहन और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण को उस हासिए पर ला खड़ा किया है, जिसका परिणाम हमारे सामने है और खाँमियाज़ा भी भुगतना पड़ रहा है. मानसिक कुवृत्तियों के शिकार हुए स्वच्छंदवादी कहलाने वाले लोग एड्स जैसी भयानक बीमारी से जूझ रहे हैं, जिसका आकड़ा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है. नतीजन भारतीय परम्परा एवं संस्कृति बिल्कुल लुप्त होती चली जा रही है और लोग पारस्परिक सद्भाव व मूल्यपरक सोच त्यागकर खचाखच भरे शहरों में एकाकी जीवन जीनें में गर्व महसूस कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि इस ओछी आधुनिकता ने हमारे चौबीस घड़ी के समय को निगल लिया है, जिससे पूँछो सब यही कहते मिलेंगे - समय कम है. नए युगलों ने तो हद् ही पार कर दी है, इनको तो आधुनिकता का पर्याय महज अश्लीलता और फूहड़ता ही नज़र आती है. प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीड़िया भी धनार्जन हेतु अधिकतर अश्लील, फूहड़ और द्विअर्थी संवादों को बढ़ावा दे रहे हैं. क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि यह सब मानवीय दृष्टिकोण से हमारे भविष्य को गर्त में ढ़केल रहे हैं...?? यही वजह है कि दिन प्रतिदिन सामूहिक दुष्कर्म, महिला उत्पीड़न जैसी घटनाएँ आम हो चली हैं. जरा जवाब दीजिए कि बार बार दिखाए जाने वाले इस फूहड़पन से हम सब अपने नवनिहालों के अन्तर्मन को कब तक बचा पाएगें ...??<br />
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जरा आप ही गुनिए :<br />
आज यह फैसला कौन करेगा कि वास्तविक प्रगति क्या है ? क्योंकि आज की अंधी आधुनिकता ने तो वास्तविक आधुनिकता की मूलभूत परिभाषा ही बदल दी. आज नग्न बदन दिखाना, माँस- मदिरा का सेवन करना, ड़िस्को-बार में मखौल उड़ाना, मानवता भूलकर कुकर्म करना, एकाकी जीवन बिताना, यह सब आधुनिकता का प्रतीक बन चला है. जरा बताइए कि क्या बिना अध्यात्मिकता एवं विवेकशीलता के वास्तविक आधुनिक विकास सम्भव है ..? शायद कभी नहीं.<br />
प्रो० राधाकृष्णन ने बिल्कुल ठीक कहा है " नया संसार आवश्यकताओं, आवेगों, महत्वाकांक्षाओं आदि क्रिया कलापों का एक ऐसी गड़बड़झाला बनकर नहीं रह सकता, जिस पर आत्मा का कोई निर्देशन या नियंत्रण न हो. अन्धविस्वास और उन्नतिमूलक विस्वासों के कारण जो रिक्तता उत्पन्न हुई है, उसको अध्यात्मिकता से भर देना होगा". जरा सोचिए, हमारी सनातन संस्कृति कितनी व्यापक है, जो बुद्धि एवं हृदय को जोड़ती है, काम से मोक्ष को जोड़ती है, विज्ञान, अध्यात्म एवं मानववाद को लेकर आगे बढ़ती है. आज अधिकतर लोग रोटी, कपड़ा और मकान के जंजाल में उलझ गए है. यह ओछी आधुनिकता की ही देन है कि उनके पास जीवन का उद्देश्य ढ़ूढ़ने का वक्त नहीं है. इसका जवाब विज्ञान और भौतिकवाद तो कभी दे ही नही सकती. जब तक हम अध्यात्मिक दृष्टिकोण नही अपनाते तब तक परिपूर्णता की चाहत पूरी नहीं हो सकती. अध्यात्मिकता में ही सम्पूर्ण जीव में एक ईश्वर, मानवीय एकता एवं समता का भाव दिखता है और साथ ही साथ सम्पूर्ण आधुनिक विरोधाभाष की पूर्णाहुति भी हो जाती है.<br />
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उत्तरदायित्व कौन :<br />
आधुनिकता के चलन में आज हमने हास्य, चलचित्र एवं जुम्लों के स्वरूप को ही बदल ड़ाला. ये कैसा हास्य है, जिसमें कभी समलैंगिकता को आधार बनाकर तो कभी अश्लीलता को आधार बनाकर तो कभी स्त्रियों की आबरू को लोगों के सामने बिखेरकर तालियाँ बटोरी जाती हैं...? क्या इसमें चैनलों, कलाकारों, निर्णायक मण्ड़लियों और दर्शकों का कुछ भी उत्तरदायित्व नहीं बनता ? आखिर ऐसी क्या मजबूरी आ गई है कि कलाकार अपनी प्रतिभा को अश्लीलता के तपती ज्वाला में झोंक रहे हैं ? आज युवा पीढ़ी इतनी अत्याधुनिक बन गई है कि जो माँ-बाप बच्चे को पाल पोषकर बड़ा करते हैं, वही बच्चे बड़े होकर एकाकी जीवन बिताते हुए माँ-बाप को 'ओल्ड़ हाउस होम' में छोड़ आते हैं. आज आधुनिक समाज के पास समय और ऊर्जा का अभाव दिखता है. वह अपनी आधारभूत समस्याओं को सुलझानें में ही पूर्णतः उलझ चुका है. आधुनिक समाज का जीवन दर्शन उस गगनचुम्बी इमारत के समान है, जिसके सौन्दर्य दिखने और भार सहने योग्य बनाने के लिए पर्याप्त परिश्रम किया जाता है परन्तु वह चन्द वर्षों में ही आकर्षणहीन हो जाती है, जबकि मध्य युगीन स्मारको का निर्माण कई वर्षों में पूरा होता था परन्तु उनका आकर्षण आज भी जस का तस बरकरार है.<br />
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दूरद्रष्टा बनिए और सम्भल जाइए :<br />
यकीनन मै यह कहना चाहती हूँ कि यदि हम सब आधुनिकता के सही मायने समझकर स्वयं और नवनिहालों के अन्तर्मन को नहीं बदले तो हमारा भविष्य जौहरी के उस स्वर्ण के पानी चढ़े आभूषण की तरह होगा, जो दूर से तो अत्यंत चमकीला नज़र आता है परन्तु पास आने पर भ्रम दूर हो जाता है. अर्थात् हमें भले ही लग रहा हो कि आधुनिकता हमारे भविष्य को सवाँर कर हमें शीर्ष पर पहुँचा देगी परन्तु यह तो वक्त बताएगा कि उस शीर्ष पर हम कितनी देर टिक पाएगें, गिरने में जरा भी वक्त नहीं लगेगा और फिर हम जीवन में किसी काम के काबिल नहीं रह जाएगें. हम सबको आधुनिकता विवेक की तराजू से तोलकर ही अपनानी चाहिए ताकि हम उसकी वास्तविकता से पहले ही रूबरू हो सके. हमे खोखली आधुनिकता छोड़कर बौद्धिक रूप से अग्रसित होने की आवश्यकता है, ताकि हम सब मिलकर राष्ट्र के वैभव को शिखर पर पहुँचा सकें और सही मायनें में स्वर्णिम युग के सपने को साकार कर सकें.<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2042826189898172179.post-17958447032918071112017-01-06T18:07:00.000-08:002017-01-06T18:07:04.596-08:00ऐसा ही कुछ करना होगा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVF3FULwl5ZbNCkLNf_WG-3anbTj34jr_y6JrE-q-e1F-U-v65DqPhyphenhyphenL04Vc3nrlToHjpJZbH2XUp-IgfP_yiOIzELJUYuysTjEQlTsbdsPDGsMwwkELAvIfu7gqz-nyAhEEfNaOmtHt0/s1600/images+%25289%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVF3FULwl5ZbNCkLNf_WG-3anbTj34jr_y6JrE-q-e1F-U-v65DqPhyphenhyphenL04Vc3nrlToHjpJZbH2XUp-IgfP_yiOIzELJUYuysTjEQlTsbdsPDGsMwwkELAvIfu7gqz-nyAhEEfNaOmtHt0/s1600/images+%25289%2529.jpg" /></a></div>
लम्बे अर्से बीत चले हैं,<br />
इनसे कुछ सबक लेना होगा,<br />
उम्मीदों की सतत् कड़ी में,<br />
इस बार नया कुछ बुनना होगा,<br />
अपने समाज के अन्तिम जन को,<br />
अब तो बेहतर करना होगा,<br />
शिक्षित और जागरूक बनाकर,<br />
इनके हक में लड़ना होगा,<br />
कुछ न कुछ पाने का सबका,<br />
अपना अपना सपना होगा,<br />
सूख चुके आँसुओं को अब तो,<br />
मुस्कानों में बदलना होगा.<br />
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सुख समृद्धि सौहार्द्रता का,<br />
दृश्य दिखे तो अच्छा होगा,<br />
गगन चूँमती उम्मीदों को ,<br />
आयाम मिले तो अच्छा होगा,<br />
मेरी बहनें बढ़ चढ़ करके,<br />
इतिहास रचें तो अच्छा होगा,<br />
शोध जगत दुनियाँ को अपना,<br />
लोहा मनवाए तो अच्छा होगा,<br />
भारत की संस्कृतियों को हम सब,<br />
अपनाए तो अच्छा होगा,<br />
भारत माँ के गौरव का परचम,<br />
लहराए तो अच्छा होगा.<br />
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परमपिता से यही आस है,<br />
इस बरस किसी का दिल न दहले,<br />
स्त्री को सम्मान मिले और,<br />
ख़ामोशी मुस्कान में बदले,<br />
कुछ पद्चिह्न छुटे हम सबके,<br />
अड़िग पथिक बन हम सब चल लें,<br />
स्वर्णिम युग का क्रन्दन हो और,<br />
भारत विश्व गुरू में बदले,<br />
हिन्दी के इस पुत्री 'शालिनी' को,<br />
आशिर्वचन अब देना होगा,<br />
नए वर्ष में संकल्पित होकर,<br />
ऐसा ही कुछ करना होगा.<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04287397861640300154noreply@blogger.com0